हर किसी के भीतर छिपा है बचपन। यकीन नहीं आता तो याद कीजिए अपने मैजिकल मोमेंट्स को, जिनमें उम्र के बंधन तोड़ कर की गई कुछ बचकानी हरकतें जरूर शामिल होंगी
सैकड़ों कर्मचारियों वाली फैक्ट्री के मालिक। सफल व्यापार। सामाजिक रूप से सम्मानित। जीवन के हर मोर्चे पर जीत। अकूत धन। मतलब सुख-सुविधा और संपन्नता भरा जीवन। सब कुछ होने के बावजूद भी कभी-कभी लगता है कि हम कुछ मिस कर रहे हैं। जी हां, उम्र के इस पड़ाव पर हम जिस चीज को सबसे ज्यादा मिस करते हैं वह हमारा बचपन और उससे जुड़ी यादें या फिर वह जिसे हम नहीं कर पाए होते हैं!
ये दौलत भी ले लो, ये शोहरत भी ले लो, भले छीन लो मुझसे मेरी जवानी। मगर मुझको लौटा दो बचपन का सावन, वो कागज की किश्ती, वो बारिश का पानी..., जगजीत सिंह की गायी यह गजल हमें उन यादों की ओर ले जाती है जिन्हें तेज दौड़ती जिंदगी की आंधी अपने साथ उड़ा ले गयी होती है। रिमझिम बरसात का मौसम, सावन के झूले, तीज का त्योहार, नाग पंचमी का मेला, गुडिय़ा, रक्षाबंधन, दशहरा-दीवाली; और इसी के साथ इन त्योहारों से जुड़ी यादों में गुम हो कर हम फिर समय के उसी दौर में लौट जाना चाहते हैं। शायद यही कारण है कि हम भले ही सामाजिक रूप से कितने स्थापित हों, सफलता के शिखर पर रहें, नामी-गिरामी हों, धन-दौलत-यश वाले हों, इन्हीं यादों के चलते कहीं न कहीं, कभी न कभी; उम्र, सफलता, पद और रुतबे के बंधनों को तोड़ कर मन बचपन की उन सुनहरी यादों के साथ उन्हीं हरकतों को करने का होता है, जिन्हें वक्त की धूल ने ढंक लिया होता है।
आप अपने बच्चों द्वारा अपनी गुडिय़ा के लिए आयोजित पार्टी में उनसे ज्यादा उल्लास के साथ जुटते हैं, बच्चों के लिए खिलौने खरीदते समय उनकी (बच्चों) चाहत से विपरीत आप अपनी पसंद का ही खिलौना खरीदते हैं (इसके पीछे यह बहाना काम करता है कि यह खिलौना तुम्हें नुकसान पहुंचा सकता है), पार्क में बच्चों के साथ आप भी घास पर लोटने लगते हैं और गली के मोड़ पर गुजरते हुए बच्चों के साथ कंचे खेलने लगते हैं। बारिश के बहते पानी को देख पुरानी कॉपी-किताबों के नहीं तो अपनी डायरी के पन्नों से ही उसमें नाव बना कर डालते हैं तो कभी इन पन्नों से हवाई जहाज बना कर उड़ाते हैं।
आज यह सर्वविदित तथ्य है कि बच्चों के खिलौनों की खरीददारी में बच्चों से ज्यादा उत्सुकता माता-पिता दिखाते हैं। दुकान पर खरीददारी के वक्त यह माता-पिता ही हैं जो बच्चे से पहले किसी खिलौने से जी भर कर खेलते हैं और फिर खरीदते हैं। गाडिय़ों को दौड़ाते हैं, बंदूक से गोली चलाते हैं और टेडी बियर को सहलाते हैं और वही खिलौना खरीदते हैं जो (बच्चे को नहीं) उन्हें पसंद होता है।
शहर के एक प्रतिष्ठित स्कूल के मालिक सुमित मखीजा इस बारे में कहते हैं, ''हर किसी के भीतर बचपना और बचपन से जुड़ी यादें जीवन भर बनी रहती हैं। मन की अन्य भावनाओं की तरह ही यह भी कभी न कभी किसी न किसी रूप में बाहर भी निकल आती हैं। पिछले दिनों मैं दो दोस्तों के साथ हिल स्टेशन पर गया था। शाम को घूम कर लौटते समय रास्ते में एक बारात जा रही थी, बस बारात को देखते ही हम तीनों को शरारत सूझ गयी और हमने 'बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना' की तर्ज पर बारात में डांस करना शुरू कर दिया। काफी देर से हमें जम कर नाचते देख बारातियों को हम पर शक होने लगा तो हम धीरे से वहां से खिसक आए।''
बचपन और इससे जुड़ी यादें लोगों को इतनी लुभाती है कि बाजार पर भी इसका जादू साफ दिखाई देता है। आज कई विज्ञापनों में बच्चों और बचपने से जुड़ी यादों को इस तरह से दिखाया जाता है कि उस कंपनी का उत्पाद बिक्री की नयी ऊंचाइयों को छूने लगता है। जिस समय आप टीवी पर एक मोबाइल सेवा प्रदाता कंपनी का बारिश में भीगते हुए बच्चे का अपने पिता को फोन करना और पिता का बचपन की यादों में डूब जाना देख रहे होते हैं; उसी समय देश में कहीं एक नया व्यक्ति उस कंपनी का उपभोक्ता बन रहा होता है। 'जी ललचाए रहा न जाए' या फिर 'जब मैं छोटा बच्चा था, गोली खाकर जीता था' पंच लाइन वाले विज्ञापन तो आपको याद ही होंगे।
बचपना हर किसी के भीतर होता है और इसकी यादें हर समय बसी रहती हैं। आज भी जगजीत सिंह के कंसर्ट में सबसे ज्यादा फरमाइश यदि किसी गजल की होती है तो 'वह यह दौलत भी ले लो' ही है। यदि मुंशी प्रेमचंद्र ने अपने बचपन की यादों पर आधारित 'ईदगाह' नामक कहानी गढ़ी थी, तो यकीन मानिए हर आदमी के दिल में एक ईदगाह बसती है। यदि आप इस लेख को पढ़ रहे हैं तो भी इसीलिए कि कहीं न कहीं यह लेख आपको बचपन की सुनहरी यादों को ताजा करवा रहा है। ऐसा नहीं है क्या?
सच है की बचपन सबके अन्दर छुपा होता है . लेकिन भिश्ती मियां को ना खरीदकर चिमटा खरीदने वाली बात विलुप्त हो गयी है .
जवाब देंहटाएंjane kaha gaye wo dinnnnnnnnnn
जवाब देंहटाएंBACHPAN TO LAJAWAAB HOTA HAI.
जवाब देंहटाएं............
ब्लॉdग समीक्षा की 12वीं कड़ी।
अंधविश्वास के नाम पर महिलाओं का अपमान!
बचपन काश....... एक बार फिर लौट आये
जवाब देंहटाएंसुंदर पोस्ट
जवाब देंहटाएंविवेक जैन vivj2000.blogspot.com