इस फोटो मे ध्यान से देखिये नेहरू के शव के पास खडे सुभाष चन्द्र बोस: अब
इस चित्र मे कितनी सच्चाई है शोध का विषय है किंतु यह तो तय ही है कि दाल
मे कुछ काला जरूर है जिसे प्रणव मुखर्जी सहित तमाम कांग्रेसी जानते है.
आज जरूरत कि जनता इन कांग्रेसियो से अपने प्यारे नेताजी के बारे मे सवाल पूछे कि जिस बन्दे ने देश से बाहर आज़ाद हिन्द फौज बनायी वह देश मे कायरो की भांति गुमनामी जिन्दगी क्यो जियेगा?नेताजी सुभाषचन्द्र बोस विमान दुर्घटना मे नही मरे. जवाहरलाल नेहरू की महत्वाकान्क्षा की भेट चढ गये. सिंगापुर से वह सोवियत रूस ले जाये गये और भारत मे एक "गुमनामी बाबा" का किरदार गढा गया. ताकि उनके सोवियत रूस के किसी जेल मे होने की बात दब जाय.सोवियत रूस उस समय मित्र देशो के साथ था.हालात आज भी है कि हिटलर के साथ होने की हिमाकत वर्तमान मे भी कोई देश नही करता तो नेताजी जिन्होने जर्मनी और जापान के साथ हिन्दुस्तान को खडा करने की कोशिश की थी उन्हे मित्र राष्ट्र कैसे छोड सकते थे. नेहरू मित्र राष्ट्रो के सर्वाधिक अनुकूल नेता थे सो असली नेताजी को सोवियत के किसी जेल मे बन्द करके नकली नेताजी को गुमनामी बाबा के नाम से फैजाबाद भेज दिया गया. नेताजी के ज्यादातर भक्त आज ‘दशनामी सन्यासी’ उर्फ ‘भगवान जी’ उर्फ ‘गुमनामी बाबा’ को ही नेताजी मानते हैं। (अनुज धर के ‘मिशन नेताजी’ ने इसके लिए बाकायदे अभियान चला रखा है।) कारण हैं: उनकी कद-काठी, बोल-चाल इत्यादि नेताजी जैसा होना; कम-से-कम चार मौकों पर उनका यह स्वीकारना कि वे नेताजी हैं; उनके सामान में नेताजी के पारिवारिक तस्वीरों का पाया जाना; नेताजी के करीबी रहे लोगों से उनकी घनिष्ठता और पत्र-व्यवहार; बात-चीत में उनका जर्मनी आदि देशों का जिक्र करना; इत्यादि।
जो बातें गुमनामी बाबा के नेताजी होने के समर्थन में जाती हैं, उन्हीं में से कुछ बातें उनके विरुद्ध भी जाती है, मिसाल के तौर पर: सन्यास लेकर जब नेताजी ने पिछले जीवन से नाता तोड़ लिया, तो फिर पुराने पारिवारिक छायाचित्रों के मोह से वे क्यों बँधे रहे? क्या सिंगापुर छोड़ने के समय से ही वे इन छायाचित्रों को साथ लिये घूम रहे थे?
अगर उनके सामान में उनके ही टाईपराईटर और बायनोकूलर पाये जाते हैं, तो यह ‘दाल में काला’- जैसा मामला है। सिंगापुर छोड़ते समय निस्सन्देह वे अपना टाईपराइटर और बायनोकूलर साथ नहीं ले गये होंगे, न ही (सन्यास धारण करने के बाद) सोवियत संघ से भारत आते समय इन्हें लेकर आये होंगे, फिर ये उनतक कैसे पहुँचे? सिंगापुर में उनके सामान को तो माउण्टबेटन की सेना ने जब्त कर सरकारी खजाने में पहुँचा दिया होगा। (एक कुर्सी शायद लालकिले में है।)
माना कि विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में नेताजी पर छपने वाली खबरों की कतरनों को उनके भक्तजनों ने उनतक पहुँचाया होगा, मगर सरकारी खजाने से निकालकर मेड इन इंग्लैण्ड एम्पायर कोरोना टाईपराइटर और मेड इन जर्मनी 16 गुना 56 दूरबीन उनतक पहुँचाना उनके भक्तजनों के बस की बात नहीं है। तो फिर? क्या गुप्तचर विभाग के अधिकारियों ने उनके पास ये सामान पहुँचाये? तो क्या ‘गुमनामी बाबा’ को भारत सरकार के गुप्तचर विभाग ने खड़ा किया था? ताकि वास्तविक नेताजी की ओर लोगों का ध्यान न जाये? या फिर, जनता ‘ये असली हैं’ और ‘वे असली हैं’ को लेकर लड़ती रहे और सरकार चैन की साँस लेती रहे?
आज जरूरत कि जनता इन कांग्रेसियो से अपने प्यारे नेताजी के बारे मे सवाल पूछे कि जिस बन्दे ने देश से बाहर आज़ाद हिन्द फौज बनायी वह देश मे कायरो की भांति गुमनामी जिन्दगी क्यो जियेगा?नेताजी सुभाषचन्द्र बोस विमान दुर्घटना मे नही मरे. जवाहरलाल नेहरू की महत्वाकान्क्षा की भेट चढ गये. सिंगापुर से वह सोवियत रूस ले जाये गये और भारत मे एक "गुमनामी बाबा" का किरदार गढा गया. ताकि उनके सोवियत रूस के किसी जेल मे होने की बात दब जाय.सोवियत रूस उस समय मित्र देशो के साथ था.हालात आज भी है कि हिटलर के साथ होने की हिमाकत वर्तमान मे भी कोई देश नही करता तो नेताजी जिन्होने जर्मनी और जापान के साथ हिन्दुस्तान को खडा करने की कोशिश की थी उन्हे मित्र राष्ट्र कैसे छोड सकते थे. नेहरू मित्र राष्ट्रो के सर्वाधिक अनुकूल नेता थे सो असली नेताजी को सोवियत के किसी जेल मे बन्द करके नकली नेताजी को गुमनामी बाबा के नाम से फैजाबाद भेज दिया गया. नेताजी के ज्यादातर भक्त आज ‘दशनामी सन्यासी’ उर्फ ‘भगवान जी’ उर्फ ‘गुमनामी बाबा’ को ही नेताजी मानते हैं। (अनुज धर के ‘मिशन नेताजी’ ने इसके लिए बाकायदे अभियान चला रखा है।) कारण हैं: उनकी कद-काठी, बोल-चाल इत्यादि नेताजी जैसा होना; कम-से-कम चार मौकों पर उनका यह स्वीकारना कि वे नेताजी हैं; उनके सामान में नेताजी के पारिवारिक तस्वीरों का पाया जाना; नेताजी के करीबी रहे लोगों से उनकी घनिष्ठता और पत्र-व्यवहार; बात-चीत में उनका जर्मनी आदि देशों का जिक्र करना; इत्यादि।
जो बातें गुमनामी बाबा के नेताजी होने के समर्थन में जाती हैं, उन्हीं में से कुछ बातें उनके विरुद्ध भी जाती है, मिसाल के तौर पर: सन्यास लेकर जब नेताजी ने पिछले जीवन से नाता तोड़ लिया, तो फिर पुराने पारिवारिक छायाचित्रों के मोह से वे क्यों बँधे रहे? क्या सिंगापुर छोड़ने के समय से ही वे इन छायाचित्रों को साथ लिये घूम रहे थे?
अगर उनके सामान में उनके ही टाईपराईटर और बायनोकूलर पाये जाते हैं, तो यह ‘दाल में काला’- जैसा मामला है। सिंगापुर छोड़ते समय निस्सन्देह वे अपना टाईपराइटर और बायनोकूलर साथ नहीं ले गये होंगे, न ही (सन्यास धारण करने के बाद) सोवियत संघ से भारत आते समय इन्हें लेकर आये होंगे, फिर ये उनतक कैसे पहुँचे? सिंगापुर में उनके सामान को तो माउण्टबेटन की सेना ने जब्त कर सरकारी खजाने में पहुँचा दिया होगा। (एक कुर्सी शायद लालकिले में है।)
माना कि विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में नेताजी पर छपने वाली खबरों की कतरनों को उनके भक्तजनों ने उनतक पहुँचाया होगा, मगर सरकारी खजाने से निकालकर मेड इन इंग्लैण्ड एम्पायर कोरोना टाईपराइटर और मेड इन जर्मनी 16 गुना 56 दूरबीन उनतक पहुँचाना उनके भक्तजनों के बस की बात नहीं है। तो फिर? क्या गुप्तचर विभाग के अधिकारियों ने उनके पास ये सामान पहुँचाये? तो क्या ‘गुमनामी बाबा’ को भारत सरकार के गुप्तचर विभाग ने खड़ा किया था? ताकि वास्तविक नेताजी की ओर लोगों का ध्यान न जाये? या फिर, जनता ‘ये असली हैं’ और ‘वे असली हैं’ को लेकर लड़ती रहे और सरकार चैन की साँस लेती रहे?
दाल में काफी कुछ कला नज़र आता है...
जवाब देंहटाएंये तो निश्चित है कि नेताजी का निधन विमान दुर्घटना में नहीं हुआ. उनकी आजाद हिंद फौज की सेनानी मानवती आर्या ने ये बात अपनी पुस्तक में लिखी है. वो गुमनामी बाबा कौन थे? या वे नेताजी ही थे इस बारे में निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता है लेकिन कुछ लोग इस बात के साक्षी हें कि वे ही नेताजी थे क्योंकि उनके बहुत अपने लोग उनसे मिलते रहे थे. नेहरु जी के निर्णय के बलि चढ़ गए नेताजी और देश का सबसे जांबाज देशभक्त को गुमनाम जीने के लिए मजबूर कर दिया गया. ये हमें आजाद देश में वे खुल कर सांस भी न ले सके. हमें इस बात पर शर्म आती है.
जवाब देंहटाएंमै अब भी सत्य से दूर हूँ कि वास्तव में क्या हुआ था??
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