शुक्रवार, 6 अप्रैल 2012

नही रहे बलई काका. काव्य मंच पर ली जीवन की अंतिम सांस


बलई काका से मेरी अन्तिम मुलाकात 18 फरवरी को हुयी थी. कल  के कार्यक्रम की सूचना मुझे थी किंतु किन्ही कारण वश ना जा पाया. आज शांडिल्य जी ने यह दुखद समाचार दिया. दैनिक जागरण की कवरेज ज्यो की त्यो रख रहा हू. कुछ कहने की इच्छा नही है. काका को विनम्र श्रद्धांजली. 
फिल्म जगत के हास्य अभिनेता राजू श्रीवास्तव के 82 वर्षीय पिता रमेश चंद्र श्रीवास्तव उर्फ बलई काका 'साहित्य भारती' के वार्षिक काव्य समारोह में गुरुवार 5 अप्रैल 2012 सायं मंच पर आये तो पूरा मंच ही नहीं श्रोता भी गौरवान्वित हुए। अपने जनपद की सरजमीं में आयोजित कार्यक्रम में आने का बलई काका को कई दशकों बाद यह सौभाग्य मिला तो वह पूरे समय वह स्वयं में बहुत गदगद रहे। हर कोई उन्हें एकटक देखने व सुनने को बेताब रहा। रात लगभग 1.30 बजे काव्य मंच का संचालन कर रही प्रसिद्ध कवियत्री डॉ. कीर्ति काले ने ज्यों ही हास्य अभिनेता राजू श्रीवास्तव के यशस्वी पिता श्री रमेश चंद्र श्रीवास्तव बलई काका को काव्य पाठ के लिये आमंत्रित किया तो माहौल तालियों की गड़गड़हाट में गूंज उठा।
कलम व तलवार के धनी वीर बैसवारा क्षेत्र के प्रथम गद्यकार पं. नंद दुलारे वाजपेयी के गांव मगरायर में अपने ननिहाल में रहकर पढ़े लिखे बलई काका ने पूरे रौ में माइक संभाला और अपनी रचना की शुरूआत ही काव्य मंच के गौरव काकाओं से की। काव्य पाठ में वह बोले, 'काव्य मंच की शान रहे बैसवारे के चार काकाओं में दो रमई काका और बच्चू काका साथ छोड़ गये हैं। दो बचे काका में काका बैसवारी व हम बलई काका आप के बीच हैं।' बलई काका इन व्यक्तियों को दोहरा जिले के कवि सम्मेलन में आने की अतिसय खुशी का अहसास लोगों को बडे़ उत्साह से करा रहे थे। तभी अचानक पल भर के लिए बलई काका के हाथ कपकंपाये और देखते-देखते वह मंच पर ही गिर गये जिसमें सिर मंच के किनारे व पैर मंच पर रहे इस पर मंचासीन कवि व संयोजक सभी में हड़कंप मच गया। साथ रहे लोग बलई काका को रात लगभग 2.30 बजे जिला अस्पताल ले गये जहां मौजूद डॉ. बृज कुमार ने परीक्षण करने के बाद हार्ट अटैक होना बता कानपुर ले जाने की सलाह दी। कानपुर ले जाते समय रास्ते में ही उनकी मौत हो गयी।