शुक्रवार, 19 जुलाई 2013

गंग प्रेम

इस  गंग प्रेम की प्रखर धार में ,
बह जाता ये चेतन मन ...

होती है पीड़ा कष्ट बहुत ,
पर  मिलता है अदभुत आनंद ..

प्रेम के कारन जग है जीवित ,
प्राण भरे ये है अमृत ..

ये  गूड रहस्यों की  है माला ,
मन के सागर  की उदंड तरंग ...

प्रेम नहीं कोई कोमल पथ ,
 है तप से सिंचित एक उपवन ..
नहीं यहाँ  स्थान   कटुता का ,
भावो का होता  वंदन   ..

करुणा है आधार प्रेम का ,
त्याग है इसके कण कण में ..
मानव भी बन जाये ,देवो के तुल्य
बस जाये जो ये मन में ....

इस  गंग प्रेम की प्रखर धार में ,
बह जाता ये चेतन मन ...

                 जारी  ...
                                         "" aman  mishra  "'