मंगलवार, 30 नवंबर 2010

एक हडबडिया मुलाकात फुरसतिया जी के साथ

कल  अलस्सुबह मेरे चलभाष की स्वरलहरिया बजने लगी देखा तो बड़े भाई अनूप शुक्ल जी थे । शाम को मुलाकात का प्रोग्राम बन गया ।  कथाकार अमरीक सिंह दीप से भी शाम को मुलाकात करनी थी  साढ़े चार बजे कालेज से आने के बाद मैंने किरण को अपने कार्यक्रम के बारे में बताया तो बोली मै भी इनसे मिलना चाहूगी.जल्दी जल्दी चाय पीकर मैंने मोटरसाइकिल निकाली और निकल पड़े। रास्ते में 'माटी'पत्रिका के सम्पादक श्री गिरीश त्रिपाठी जी से मुलाकात करते हुए जैसे गोविन्द नगर पहुचे पहिया पंक्चर हो गया.।पास  में ही  दूकान थी.मिस्त्री पंक्चर बनाता जाय और बेटे बहू की बाते भी बताता जाय. बाबूसाहब  जब से बहुरिया आय हौ तब ते लरकावा का दमाग फिर गवा ।
अब हम बूढ़ मनई घिस पिट के घर  चलाई रहा हूँ। औरत बड़ी मायावे  है।  मै भी घर घर की  कहानी को सुनता गया हा हूँ करता गया।
बाइक के ठीक होने के बाद गोविन्दपुरी पुल के भीषण जाम से भी लड़ना था।खैर दीप साहब के यहाँ पहुचते पहुचते आठ बज गए। एक शांत सौम्य व्यक्तित्व से यह मेरी दूसरी मुलाकात थी। साहित्य की बातों के दौरान गृहस्थी की बाते भी हो जाती।उन्होंने अपना कप्यूटर दिखाया और कहा कि वह जल्द ही ब्लोगिंग की दुनिया में आयेगे. चलते समय अपनी एक कृति 'काली बिल्ली' सप्रेम भेट की।
अब बाइक का रुख अर्मापुर था। ठंडी हवाओ के बीच अंधेरो से गुजरना एक अजीब किस्म की रोमानियत का अहसास करा रहा था. बीच -बीच में फुरसतिया जी घर के पते के बारे में जानकारी देते रहे।डी टी ५४ तक पहुचते लगभग साढ़े नौ बज चुके थे। गेट पर भाई शुक्ल जी सौम्य मुस्कुराहट के साथ मौजूद थे।उनके घर के इंटीरियर का क्लासिकल लुक मन को लुभाने वाला था। बातो बातो में उन्होंने बताया कि वह १९८३ में  साइकिल से भारत भ्रमण कर चुके है। कानपुर के कई जाने अनजाने लेखको कवियों और इतिहास कारो के बारे में परिचय कराते रहे। मै दत्तचित्त होकर सुनता रहा.इन बातो की चाशनी में  समीर लाल साहब की बाते कन्हैया लाल नंदन जी, गोविन्द उपद्ध्याय जी गिरिराज किशोरजी  इत्यादि के प्रसंग  शामिल थे . ब्लोगिंग को लेकर किरण के अपने विचार थे.वह लिखने से ज्यादा पढने वाली ब्लोगर है भाई शुक्ल जी ने लिखने की सलाह दी.रात का समय ज्यादा हो रहा था.जाते जाते वे अपना कैमरा ले आये बोले जरा फोटू हो जाय.किरण को अपनी फोटो खिचवानी कम पसंद है सो उसने हम दोनों की एक स्नैप खीची.जिसे आज सुबह ही भाई  शुक्ल जी ने मेल द्वारा मुझे भेजी.यह मुलाकात हडबडी वाली थी.लेकिन थी मजेदार.खासतौर से भारतीय ब्लोगिंग से जुड़े तमाम  मुद्दों पर फुरसतिया भैया के अनुभव.

   

सोमवार, 29 नवंबर 2010

किस्सागोई के उस्ताद: अमरीक सिंह 'दीप'

जाने माने कथाकार अमरीक सिंह 'दीप' लेखक ही नहीं एक जिज्ञासु घुमंतू और शौकिया शोधार्थी भी है । उनकी शोध यात्रा में न तो कोई शान आगामी है  न कोई व्यक्ति पराया । जनजीवन में सहजता से घुलमिल जाने की प्रवृति ने ही इन्हें ऐसे विषय चरित्र और परिवेश चित्रित करने की क्षमता प्रदान की है जिन्हें वातानुकूलित कमरों में रहकर नहीं जाना जा सकता ।कानपुर दीप साहब की कर्मभूमि और जन्मभूमि दोनों है । यहाँ की गली कूचो हातो में वह पले बढे है । टाट पट्टी वाले पाठशालाओं में पढ़े है और स्कूल,कालेज से गोला मारकर सिनेमा देखते रहे । यहाँ के घाट बाज़ार पार्क मिलों की चिमनिया यह सब उनके एक बड़े से घर के अलग अलग हिस्से प्रतीत होते है ।
दीप साहब कभी गुलाब बाई कभी विद्यार्थी जी,चन्द्रेश जी या जवाबी कीर्तन से रूबरू होते है । कानपुर की संस्कृति, जनजीवन बोली बानी और ऐतिहासिकता को बड़ी सहजता के साथ पिरोते है. 
दीप साहब का जन्म ५ अगस्त १९४२ में हुआ था । प्रमुख कृतियों में 'कहा जायेगा सिद्धार्थ', कालाहांडी ,चादनी हूँ मै, सर फोडती चिड़िया, आजादी  की फसल, बर्फ का दानव शाने पंजाब, रितुनगर, इत्यादि है । 
दीप साहब की सौ से अधिक कहानिया श्रेष्ठ साहित्यिक पत्रिकाओ में छाप चुकी है । कहानी के अखिल भारतीय कार्यक्रम संगमन के पिछले १५ वर्षो से सदस्य के रूप में कार्य रत है ।

रविवार, 28 नवंबर 2010

कानपुर ब्लोगर्स असोसिएसन आपका हार्दिक स्वागत करता है. ये कानपुर है भैया यहाँ का कड़ा पानी है.........

जहा फिरंगियों को  पडी मुह की खानी है.
ये कानपुर है भैया  यहाँ का कड़ा पानी है...........


 गया प्रसाद शुक्ल 'सनेही' जी के  कड़े पानी  में  हमने  शहद की मिठास घोलते हुए इस मंच का गठन किया है. 
कानपुर के समस्त साहित्यकार ब्लोगर बंधुओ को समर्पित है यह ब्लॉग.
इस ब्लॉग का उद्देश्य मात्र साहित्यिक सम सामयिक या चिंतन ही नहीं वरन भावनाओं को पिरोना है.
कानपुर साहित्य का उर्वर स्थल है. यहाँ के चिंतन को वैश्विक  बनने में इस ब्लॉग का निमित्त निहित है. 

कम्पू की शान कानपुर महोत्सव

ठेठ कनपुरिया अंदाज़ में कानपुर महोत्सव का रंगारंग उदघाटन रविवार को हुआ. कार्यक्रम का मुख्य आकर्षण बुंदेलखंड का 'पाई डंडा तथा दीवारी लोक नृत्य रहा. नानाराव पेशवा तथा लक्ष्मीबाई  द्वार का  उदघाटन जिलाधिकारी द्वारा किया गया यह कार्क्रम एक सप्ताह तक चलेगा. कार्यक्रम का उद्देश्य कानपुर की संस्कृति  को आम लोगो से जोड़ना है.