दूर हूँ लेकिन हमारा मन तुम्हारे पास है
हो न हो अपना मिलन दिल में अधूरी आस है.
याद की डोरी सहारे आ गए तुम शुक्रिया
लौट न जाना ह्रदय से बस यही अभिलाष है.
खोजने पर इस जहा में कोई तो मिल जाएगा
है नही मुमकिन हमें वो आप जैसा चाहेगा
बस गयी मेरे जेहन तुमसे मिलन की प्यास है
दूर हूँ लेकिन हमारा मन तुम्हारे पास है
चाँद पूनम का बिखेरे है जवानी रात में
आ भी जाओ भीग ले हम प्यार की बरसात में
बिन तेरे मानो लगे ये ज़िंदगी बनवास है
दूर हूँ लेकिन हमारा मन तुम्हारे पास है
ई परिंदों पंख दो मै जाऊँगा प्रीतम शहर
या बता दो हाल उनका जाओ तुम उनकी डगर
याद करते वो मुझे ऐसा मेरा विश्वास है
दूर हूँ लेकिन हमारा मन तुम्हारे पास है
वाह वाह.
जवाब देंहटाएंअच्छा लगा बाँच कर......
सरस कविता !
कानपुर के वरिष्ठ गीतकार श्री शांडिल्य जी कल जब हमारे यहाँ पधारे तो मैंने उनसे अंतरजाल से जुड़ने का आग्रह किया वो सहर्ष मान गए और परिणाम आप सब के सामने है.
जवाब देंहटाएंआपके तीन संग्रह कविताओं के एवं एक खंडकाव्य प्रकाशित हो चुके है.
कविता बहुत सुंदर लगी. सुंदर भावों की सुंदर अभिव्यक्ति ने बाँध लिया
जवाब देंहटाएंअंतरजाल पर आपका स्वागत है बड़े भैया शांडिल्य जी
जवाब देंहटाएंयाद की डोरी सहारे आ गए तुम शुक्रिया
जवाब देंहटाएंलौट न जाना ह्रदय से बस यही अभिलाष है
गोविन्द नारायण शांडिल्य जी बहुत प्यारी रचना -प्रेम और प्रेमी की प्यारी अभिव्यक्ति -विरह से कौन बचा है -लेकिन अब आप के ई परिंदों ने कबूतर से अच्छा काम जो किया कुछ आसान हो गया
धन्यवाद
दूर हूँ लेकिन हमारा मन तुम्हारे पास है
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत जितना आपसे मिलकर खुश हुआ था उससे कहीं ज्यादा आज आपकी कविता पढकर खुशी मिली .............
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