कानपुर विश्वविद्यालय:भ्रष्ट विश्वविद्यालय दिनांक २५ मार्च से कानपुर विश्वविद्यालय की परीक्षा प्रारंभ हुयी जिसमे पहला पेपर कला स्नातक संकाय की तीनो वर्षो में समाजशास्त्र का था।परीक्षा शुरू होने से पहले कानपुर विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो- सहगल ने परीक्षा में नक़ल रोकने के लिए अनेक नियम बनाये जिनका सीधा सम्बन्ध छात्र,अध्यापक और प्रिंसिपल तथा प्रबंधक से है। जिनका पालन परीक्षा के समय होना है यदि कॉलेज में सामूहिक नक़ल पकड़ी जाती है या छात्र नक़ल करते हुए पकड़ा जता है तो उपरोक्त सभी व्यक्ति अर्थ दंड के भागीदार होगे जिससे नक़ल विहीन परीक्षा संपन्न हो सके.पर परीक्षा शुरू होने के पहले दिन से ही समझ में आने लगा की ये सारे नियम व्यर्थ के बने हुए है .असल में परीक्षा में इन नियमो से कोई लेना देना नहीं है ।कानपुर विश्वविद्यालय की परीक्षा शुरू होते ही कानपुर विश्वविद्यालय की परीक्षा की हकीकत खुल के सामने आने लगी.इस सत्र में संस्थागत और व्यतिगत दोनों प्रकार छात्रो की परीक्षाये साथ साथ हो रही है व्यक्तिगत छात्रो की परिक्षाए स्ववित्त पोषित महाविद्यालय में भी परीक्षा सेंटर बनाये गए है जबकि पिछले सत्र में संस्थागत और व्यक्तिगत छात्रो की परीक्षाये अलग अलग समय पर हुई थी .इस वर्ष कानपुर विश्वविद्यालय की परीक्षा में धांधली और भ्रष्टाचार अधिक देखने को मिल रहा है.पिछली साल जिन वित्तविहीन महाविद्यालय ने नक़ल विहीन परीक्षा करवाई थी इस साल ये महाविद्यालय भी नक़ल की दौड़ में शामिल हो गए है .अब आप इसका कारण जानना चाहेगे तो इसका कारण यह की इस साल वित्तविहीन कॉलेज की छात्र संख्या में आई गिरावट है क्योंकि आज हर माँ बाप यह चाहते है कि उसका बच्चा अच्छे अंको से पास हो कोई भी छात्र या उसके माँ बाप ये नहीं चाहते कि उसका बच्चा फेल हो और इस सब बातो में स्ववित्तपोषित महाविद्यालय अहम् भूमिका निभाते है तथा बहुत से वित्तविहीन कॉलेज नक़ल विहीन परीक्षा कराते थे जिसका नुकसान इन कॉलेज को इस बार भुगतना पड़ा .नतीजा ये निकला कि वित्तविहीन कॉलेज कि काफी सीट खाली बनी रही और स्ववित्तपोषित कॉलेज कि लगभग सभी सीट समय से पहले ही फुल हो गयी है.कानपुर विश्वविद्यालय कि चल रही परीक्षायो में इस साल दोनों प्रकार के महाविद्यालय ने नक़ल विहीन परीक्षा ना कराने कि कसम खा रखी है .इस सत्र में कानपुर कि परीक्षायो में जम के नक़ल करायी जा रही है.किसी कॉलेज में बोल के नक़ल कराई जा रही है तो कही पर छात्र किताब रख कर नक़ल कर रहे है .हद तो यहाँ तक हो गयी गलत विषय के प्रश्न पत्र तक छात्रो में बांटे गए जिसके कारण ३0 मार्च का कला स्नातक प्रथम वर्ष का शिक्षाशास्त्र का पेपर लीक होने की बजह से रद्द हो गया.भ्रष्टाचार का दूसरा उदाहरण देखिये कानपुर विश्विद्यालय ने इस साल नक़ल रोकने के लिए जो सचल दल गठित किये है उन में से बहुत से लोग वे शामिल है जिनका खुद का महाविद्यालय है या फिर इनके रिश्तेदार महाविद्यालय चला रहे है.शायद इन लोगो ने ले दे के सचल दल में अपना नाम पडवा लिया है .अब ज़रा इस सचल दल कि हकीकत जाने कानपुर विश्वविद्यालय द्वारा गठित सचल दल के अधिकांश व्यक्ति स्ववित्तपोषित महाविद्यालय के प्रबंधको से मिले हुए है जो कॉलेज में आने से पहले ही फोन द्वारा अपने आने कि सूचना कॉलेज के प्रबंधक को पहले से ही दे देते है जिससे सचल दल के आने से पहले ही कॉलेज से नक़ल को साफ़ कर दिया जाता है.कानपुर विश्वविद्यालय से सम्बध्द स्ववित्त पोषित महाविद्यालय कि हालत बहुत भी खराब है पहली बात तो यह ही इन कॉलेज के मानक केवल कागजो में ही सीमित होते है .कॉलेज कि वास्तविक हकीकत कुछ और ही होती ही.कॉलेज कि वास्तविक तस्वीर यह होती हैं कि साल भर इन स्ववित्त पोषित कॉलेज में ना तो टीचर होते हैऔर ना ही छात्र होते ही ये दोनों ही केवल परीक्षा के समय ही देखे जाते ही.हां इसमें भी एक और घोटाला भी है वो यह है कि विश्वविद्यालय के मानक के अनुरूप टीचर केवल कॉलेज कागज में होते है बाकि के परीक्षा कराने के लिए टीचर माफ़ करना इनको टीचर तो नहीं कहा जा सकता अगर इनको दैनिक मजदूर कहे तो , तो शायद उचित रहेगा,इन को बाहार से बुलाबाया जाता है जो स्ववित्तपोषित कॉलेज में परीक्षा में नक़ल की व्यवस्था संभालते है।स्ववित्तपोषित कॉलेज के प्रबंधक के आदेश पर परीक्षा में नक़ल कराने में ये लोग ही अहम भूमिका निभाते है.ये दैनिक मजदूर ही स्ववित्त पोषित कॉलेज के प्रबंधको आदेश पर नक़ल कराते है.बहुत से स्ववित्तपोषित महाविद्यालय इस प्रकार से नक़ल कराते है कि परीक्षा के अंत में ३० मिनट पहले से नक़ल करवाना शुरू करते है और परीक्षा ख़त्म होने के १५ मिनट बाद तक नक़ल कराते रहते है यानी परीक्षा १० बजे ख़त्म होनी है तो नक़ल ९.३० बजे से शुरू होती है और १०.१५ बजे तक चलती रहती है.१०.१५ पर नकलचियो कॉपी जमा कराई जाती है.हद तो तब हो गयी जब प्रिंट और इलेक्ट्रोनिक मीडिया भी कानपुर विश्वविद्यालय की नक़ल विहीन परीक्षा कराने का झूटा दावा जनता के सामने पेश करने लगी.कानपुर विश्वविद्यालय की परीक्षा की वास्तिविक तस्वीर तो ये है.
कानपुर मात्र उद्योगों से ही सम्बंधित नहीं है वरन यह अपने में विविधता के समस्त पहलुओ को समेटे हुए है. यह मानचेस्टर ही नहीं बल्कि मिनी हिन्दुस्तान है जिसमे उच्चकोटि के वैज्ञानिक, साहित्यकार, शिक्षाविद राजनेता, खिलाड़ी, उत्पाद, ऐतिहासिकता,भावनाए इत्यादि सम्मिलित है. कानपुर ब्लोगर्स असोसिएसन कानपुर के गर्भनाल से जुड़े इन तथ्यों को उकेरने सँवारने पर प्रतिबद्धता व्यक्त करता है इसलिए यह निदर्शन की बजाय समग्र के प्रति समर्पित है.
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राजेश जी
जवाब देंहटाएंआपने पोल खोल दी है
ये कुलपति तो चापलूसों से घिरा रहता है खुद को बड़ा भरी अकेदेमिशियन समझता है पर अकेडमिक की ऐसी की तैसी कर डाली है. रही बात नक़ल कराने पर तो विश्वविद्यालय की आधी क्या तीन चौथाई कमाई तो इसी नक़ल के बूते होती है. उड़नदस्ते भरी मात्रा में इन कालेजों से वसूली करते है फिर उसमे कुलसचिव से लेकर उड़नदस्तों के संयोजक का हिस्सा लगता है. सारी गुणवत्ता महज कागजो पर दिखती है. मै खुद इस व्यस्था में चार साल काम कर चुका हूँ. यह कहानी अकथ है. इसका जितना वर्णन जितना करे उतना कम है.
मगर हमारा नाकारापन है की हम चिल्लाने के अलावा और कुछ नहीं कर पा रहे है.
तभी तो देश का यह हाल है कि corruption मैं दुनिया मैं ४थे स्थान पे है
जवाब देंहटाएंयहाँ सब पैसा खाने लगे है
जवाब देंहटाएंअगर सही मायनो देखा जाय तो एक वेश्यालय और इस विश्वविद्यालय में ज्यादा अंतर नही है वहा भी पैसे देकर शरीर से खेला जाता है यहाँ भी पैसे देकर शिक्षा से खेला जा रहा है.. कुलपति मनमोहन सिंह बना हुआ है. बाकी सब नोचने खसोटने में लगे हुए है. कूटा के पदाधिकारी गण अपनी अपनी जेबें भर रहे है कुलसचिव की तो बल्ले बल्ले है. सरे गुंडे मवाली धनपशु लोग कालेज खोल कर बैठ गए है और शिक्षा व्यवस्था का बलात्कार कर रहे है
उच्च शिक्षा की ऐसी स्थिति के लिए जिम्मेदार कौन?
जवाब देंहटाएंशिक्षा से ही मनुष्य महान बनता है| एक शिक्षित मनुष्य पुरे समाज को शिक्षित कर सकता है और उसे विकास के रास्ते पर अग्रसर कर सकता है| लेकिन पिछले कुछ वर्षों में शिक्षा को भी बाजारू माल में तब्दील कर दिया गया है जो बहुत ही दुखद है| इसकी जद में सबसे ज्यादा उच्च शिक्षा है, इसलिए वर्तमान में उच्च शिक्षा का स्तर लगातार गिर रहा है| अब इसका उद्देश्य चरित्रनिर्माण या मनुष्य निर्माण न रहकर मुनाफा अर्जन करना रह गया है जो वर्तमान ही नहीं आनेवाली पीढ़ियों के लिए भी घातक है| समय रहते अगर इसपर गंभीरता पूर्वक विचार नहीं किया गया तो आने वाले दिनों में बुरे परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं| उच्च शिक्षा के जितने भी केंद्र हैं वो या तो अपने अतीत पर आंसू बहा रहे हैं या किसी चमत्कार की बाट जोह रहे हैं| नालंदा विश्वविद्यालय इसका सबसे बड़ा उदहारण है| विश्वविद्यालयों की स्थिति यह है कि ये सिर्फ़ औपचारिकता बनकर रह गई है| परीक्षाओं में नक़ल आम बात है और दुखद पहलु यह है कि छात्र इसे सिर्फ़ डिग्री पाने की दूकान समझने लगे हैं| ऐसे में भविष्य अंधकारमय दिखाई देता है| ऐसी स्थिति के लिए जिम्मेदार कौन है?
इसके लिए हमें यह सोचना ज्यादा ज़रुरी है कि उच्च शिक्षा में गिरावट की इस वर्तमान स्थिति के लिए कौन जिम्मेदार है और क्यों उच्च शिक्षा से गुणवत्ता गायब है? भूमंडलीकरण और बाजारीकरण का प्रभाव सबसे ज्यादा उच्च शिक्षा पर पड़ा है| कुकुरमुत्ते की तरह उग रहे उच्च शिक्षण संस्थानों से गुणवत्तापूर्ण शिक्षा गायब है और सिर्फ़ व्यापार हावी है| यहां सवाल शिक्षा व्यवस्था पर भी उठना लाजिमी है| हम आज भी १९३५ में बनाये गए लॉर्ड मैकाले की शिक्षा पद्धति का अनुशरण कर रहे हैं जिसका उद्देश्य सिर्फ़ क्लर्क तैयार करना था| जिसकी परिणति आज यह है कि शिक्षण संस्थानों पर सरकार का कोई नियंत्रण नहीं है और इसका नाजायज़ फायदा उठाकर संस्थान के मालिक छात्रों के भविष्य से खिलवाड़ करते हैं और मोटी रकम भी वसूल करते हैं| अब सवाल सिर्फ़ सोचने का नहीं कुछ करने का है| एक ठोस कार्य योजना और मजबूत नीति की ज़रूरत है जो इस समस्या को जड़ से उखाड़ सके|
उदारीकरण का सीधा असर भी शिक्षा पर ही पड़ा है| देश् और विदेश के पूंजीपतियों ने भारत में शिक्षा के रूप में बाजार को देखा और उन्होंने इसमें पूंजीनिवेश करना सुरक्षित समझा| देश में बड़े पैमाने पर खुल रहे निजी उच्च शिक्षण संस्थान इसके उदाहरण हैं, जो दूर दराज़ के भोले-भाले छात्रों को ऊँचे सपने दिखाकर अपनी ओर आकर्षित करते हैं और बदले में उन्हें कुछ नही मिलता| साथ ही सरकारी विश्वविद्यालयों को भी निजी हाथों में सौंपने और उसे ऑटोनोमस बनाने का कुत्सित प्रयास जारी है| उच्च शिक्षा में गिरावट का ये प्रमुख कारण है| आज उच्च शिक्षा आम लोगों की पहुँच से दूर होती जा रही है| गांव में रहने वाले गरीब किसानों के बेटे, मजदूरों के बेटों के सपने, पंख लगने से पहले ही टूट जाते हैं क्योंकि बड़े शिक्षण संस्थानों की मोटी फीस भरने में वो असमर्थ हैं| ऐसे में सवाल यह उठता है कि क्या उच्च शिक्षा पाने का उन्हें कोई अधिकार नहीं है? क्या इंजीनियर और डॉक्टर की पदवी सिर्फ़ पैसे वालों के लिए है? दरअसल इस देश में कीमत, गरीबों को ही चुकानी पड़ती है| इस तथाकथित लोकतान्त्रिक व्यवस्था में कहने को तो जनता का राज चलता है लेकिन असलियत में इसकी चाबी उन चंद मुट्ठीभर पूंजीपतियों के हाथ में रहती है जो इस देश और संसाधनों को अपनी जागीर समझते हैं| इसलिए शिक्षा जैसी चीज़ भी व्यापार बन गया है| शिक्षाविद , बुद्धिजीवी और समाज में उछ स्थान रखने वाले लोगों की चुप्पी आश्चर्यजनक है|
गिरिजेश कुमार
हमको तो ये पता है की आज से २० साल पहले भी जब कोई दूर दराज गांव में स्नातक नहीं हो पाता था तो कानपुर विश्वविद्यालय उसको डिग्री देने की पूरी कूबत रखता था . वही क्रम जारी है . राम ही राखे.
जवाब देंहटाएंनिजी कालेजों में प्रबंधतंत्र की मनमानी तथा शिक्षकों का शोषण करना, स्ववित्त पोषित अधिकंाश कालेजों में शिक्षकों का मानसिक शोषण, उनसे जबरजस्ती नकल करवाना, कम से कम वेतन देना, महाविद्यालयों में शिक्षकों के पदों का फर्जी अनुमोदन चलाना एवं सेवा शर्तो का अनुरंक्षित होना ऐसी समस्याएं है जिनसे शिक्षकों को सामना करना पड़ता है नकल रोकने हेतु स्वकेन्द्र परीक्षा समाप्त की जाये .. स्ववित्त पोषित महाविद्यालयों में अत्यन्त अव्यवस्था है, इनमें मनमानी फीस वसूल कर छात्रों का शोषण किया जाता है। यहां बुनियादी सुविधाओं का अभाव है और न ही योग्य शिक्षक है, अधिकांश महाविद्यालयों में योग्य शिक्षकों का अनुमोदन है परन्तु उनसे पढ़वाया नहीं जाता यहां तक कि अधिकांश महाविद्यालयों में पचास से साठ फीसदी शिक्षकों के अनुमोदन फर्जी है। कानपुर विश्वविद्यालय स्ववित्त पोषित महाविद्यालयों के प्रबंधकों का गुलाम हो गया है .. स्ववित्त पोषित महाविद्यालयों में शिक्षकों की स्थिति बड़ी ख़राब है प्रबंधक लोग शिक्षकों का अनुमोदन करा कर उन्हें जाब से निकाल देते है .. पढ़े लिखे इस वर्ग को अपना अनुमोदन कटवाने का भी अधिकार नहीं है ..शिक्षकों को अपना अनुमोदन कटवाने के लिए उन्ही प्रबंधक लोगो की गुलामी करनी पड़ती है NOC के लिए .फिर भी .. मेरी तो यह समझ में नहीं आता कि कानपुर विश्वविद्यालय को स्ववित्त पोषित महाविद्यालयों में शिक्षक चाहिए या मात्र अनुमोदन ..स्ववित्त पोषित महाविद्यालयों को छात्र सिर्फ़ डिग्री पाने की दूकान समझने लगे हैं|...."कानपुर विश्विद्यालय ने इस साल नक़ल रोकने के लिए जो सचल दल गठित किये है उन में से बहुत से लोग वे शामिल है जिनका खुद का महाविद्यालय है या फिर इनके रिश्तेदार महाविद्यालय चला रहे है.शायद इन लोगो ने ले दे के सचल दल में अपना नाम पडवा लिया है .अब ज़रा इस सचल दल कि हकीकत जाने कानपुर विश्वविद्यालय द्वारा गठित सचल दल के अधिकांश व्यक्ति स्ववित्तपोषित महाविद्यालय के प्रबंधको से मिले हुए है जो कॉलेज में आने से पहले ही फोन द्वारा अपने आने कि सूचना कॉलेज के प्रबंधक को पहले से ही दे देते है जिससे सचल दल के आने से पहले ही कॉलेज से नक़ल को साफ़ कर दिया जाता है..."
जवाब देंहटाएंविगत २३ वर्षों से विश्वविद्यालय से सम्बद्ध कालेज में शिक्षण कार्य कर रहा हूँ. भ्रष्टाचार, जितनी जानकारी है , का विरोध भी करता हूँ. परन्तु आज इस ब्लॉग को पढकर आँखे खुल गयी. इतनी बेबाक टिप्पणिया देखकर ऐसा लगता है की ये दिल से निकली हुई आवाजें है. अन्य से तो नहीं परन्तु आइ ए एस वेतनमान पा रहे शिक्षकों से इतना जरुर कहना चाहूँगा कि अपने स्वभिमान को कायम रख किसी भी प्रकार के भ्रष्ट तंत्र से जहाँ तक हो संभव हो अपने को विरत रखें. किसी प्रणाली में सुधार एक लम्बी अंतहीन प्रक्रिया है. एक रात में परिवर्तन नहीं हो सकता. परन्तु सतत सामूहिक प्रयास से सब संभव है. ब्लॉग पर साहस पूर्ण अभिव्यक्ति के लिए सभी सदस्यों को बधाई एवं धन्यवाद. "कौन कहता है कि असमान में सुराख़ नहीं हो सकता, एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारों"---डॉ बी डी पाण्डेय .
जवाब देंहटाएंकानपूर ब्लोगर्स असोसिएसन ब्लॉग के लोग कायर है .... इसी लिए मेरी सच्ची बात ब्लॉग से मिटा दिए है ...
जवाब देंहटाएंफालतू बकवास लिख रहे है ....... सच्ची बात समाज के सामने न आने देना भी नीचता ही है ...आप सब लोग पहले अपने आप को देखिये फिर समाज सुधर की बात करिए .... और चूड़ियाँ भी पहन लीजिये
ब्लोग्गेर्स असोसिअशन पर अधिकांश लेख लिखने वाले, विश्वविद्यालय में व्याप्त भ्रष्टाचार को उजागर करने वाले वास्तव में बधाई के पात्र हैं ये कायर नहीं, पथ प्रदर्शक हैं, नयी चेतना के सृजक हैं.. जो भी हो एक बात अवश्य है की प्रतिभा जी भी इन सभी बातों से भली भांति अवगत हैं; हाँ उनकी इस मुद्दे पर संवेदन शीलता अधिक है, शायद वे तात्कालिक हल की सभी से अपेक्षा करती है जो कि असंभव है क्योंकि सबसे बड़ी बात यह है कि नक़ल का समाजीकरण हो चुका है. समाज इसको स्वीकार्यता दे रहा है. अपने दो दशकों से अधिक के एक शिक्षक के रूप में अनुभव के दौरान बहुत से मूल्यों का पतन महसूस किया है. वर्तमान में शोर्ट कट से ऊपर उठना और धन प्राप्ति के लिए किसी भी माध्यम को अपना लेना फैशन सा हो गया है. मैंने स्वयं देखा है कि छात्र/छात्रा के घर वाले उसके, भाई, पिता, चाचा आदि उसे नक़ल कराने पर उतारू हैं. और तो और परीक्षा केन्द्रों पर तैनात पुलिस, प्रशासन के अधिकारी तक अगर उनका कोई सगा सम्बन्धी परीक्षा दे रहा है तो उसे नक़ल कराने का प्रयास करते हैं. एक बात गौर करने वाली अवश्य है कि शिक्षक भी उसी समाज का अंग है और उसके स्तर में भी गिरावट आई है वह भी नक़ल करने करवाने में शामिल हो गया. पहले समाज के अन्य लोग फिर शिक्षा विभाग से जुड़े अधिकारी, कर्मचारी और अंत में शिक्षक, धीरे धीरे सभी इसकी चपेट में आते चले गए. आज जो कुछ हो रहा है इसी का परिणाम है. स्ववित्त पोषित कालेजों के प्रबंधकों के धन कमाने क़ी लालसा नें शिक्षा व शिक्षण व्यवस्था का जो हाल किया है वह सबके सामने है. पहले कालेज मंदिर के पर्याय के रूप में स्थापित किये जाते थे परन्तु आज ये अधिकांशतः धन उगाही एवं शोषण के केंद्र हो गए हैं. शिक्षकों का सम्मान खो रहा है. सरकारी गैर समझ नीतियों के चलते समाज में आज देखिये कितने प्रकार के शिक्षक उत्पन्न किये जा रहें हैं--शासकीय महाविद्यालय के शिक्षक, अनुदानित अशासकीय महाविद्यालय के शिक्षक, अशासकीय महाविद्यालय में स्ववित्त पोषित विभागों के शिक्षक, मानदेय शिक्षक , अंशकालिक शिक्षक, एवं स्ववित्तपोषित महाविद्यालयों के शिक्षक.आदि. महाविद्यालयों में इतनीं प्रकार के शिक्षक हैं. सभी के वेतन अलग अलग हैं परन्तु स्ववित्त पोषित महाविद्यालयों के शिक्षकों क़ी स्थिति सबसे ख़राब है. क्योंकि आजतक इतने वर्षो बाद भी इनके लिए कोई एक्ट नहीं बना है. सब कुछ अर्दिनेंस के सहारे चल रहा है. मैंने स्वयं इस संबध में कई ज्ञापन सर्कार को दिए और हाल ही में ९ अप्रैल को शिक्षा मंत्री जी उच्च शिक्षा के क्षेत्रीय कार्यालय का उद्घाटन करने आये तो फिर इस सन्दर्भ में ज्ञापन दिया.
जवाब देंहटाएंऔर भी बहुत सी बातें हैं फिर कभी चर्चा करूंगा. परन्तु इतना मेरा निश्चित रूप से मानना है कि इस ब्लॉग नें शिक्षा में व्याप्त कुरीतियों को उजागर करने को एक नयी दिशा दी है. एक विचार के लोगों को एकत्रित होने को एक मंच दिया है. लाठी गोली से विचार नहीं बदल जाते, मानसिकता नहीं बदलती, चिंतन एवं सकारात्मक सोच से ही विचार बदला करतें हैं, मानसिकता बदलती है . बुद्धिजीवी वर्ग के चिंतन हेतु शिक्षा प्रणाली में व्याप्त भ्रष्टाचार, विसंगतियों को उनके सामने लाने को जो साहस इस ब्लॉग से जुड़े अधिकांश सदस्यों ने किया है वह प्रशंसनीय एवं अनुकरणीय है. बुद्धिजीवी के पास कलम ही उसका हथियार है. बस जरूरत है उसे मौका देखकर ठन्डे दिमाग से उठाने क़ी. सफलता निश्चित है. डॉ. बी. डी.पाण्डेय