छत्रपति शाहू जी महाराज विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो हर्ष कुमार सहगल ने २५ मार्च से चल रही विश्वविद्यालय की स्नातक और परास्नातक की परीक्षायो को नक़ल विहीन कराने का दावा किया है जो अभी तक एकदम से खोखला साबित हुआ है और आगे की परीक्षायो में भी खोखला ही साबित होगा.दरअसल प्रो सहगल की मनसा नक़ल को रोकना तो है ही नहीं बल्कि विश्वविद्यालय के कर्मचारियों और स्ववित्तपोषित कॉलेज की आमदनी में इजाफा करना है.यह बात इस रूप में साबित की जाती है पिछले सत्र तक व्यक्तिगत और संस्थागत परीक्षाये अलग अलग समय पर होती थी पर इस वर्ष व्यक्तिगत और संस्थागत परीक्षाये साथ साथ हो रही है.इस सत्र में बड़ी संख्या में व्यक्तिगत परीक्षा के सेंटर स्ववित्तपोषित महाविद्यालय बनाए गए है.स्ववित्तपोषित महाविद्यालय को व्यक्तिगत परीक्षा का सेंटर मिलने से इन स्ववित्तपोषित महाविद्यालय की कमाई में इजाफा हुआ है.इन स्ववित्तपोषित महाविद्यालय को व्यक्तिगत परीक्षा का सेंटर मिलने से इन महाविद्यालय को विश्वविद्यालय ने कुबेर के खजाने की चाभी दे दी है.जितना कमा सको उतना कमा लो.आज अधिकांश स्ववित्तपोषित महाविद्यालय व्यक्तिगत परीक्षा के परीक्षार्थियों से परीक्षा में नक़ल के नाम पर ५०० रूपया तक प्रति पेपर के हिसाब तक बसूल कर रहे है . हद तो तब हो गयी जब सहगल परीक्षा में बनाए हुए नियम खुद ही भूल गए.बीतो दिनों में सहगल ने खुद कानपुर देहात के स्ववित्तपोषित महाविद्यालय में चल रही परीक्षा का उड़न दस्ते के रूप में खुद दौरा किया जिसमे आप ने कुछ महाविद्यालय में चल रही नक़ल को खुद प्रयत्क्ष रूप से अपनी आँखों से देखा.शायद आपको विदित हो की प्रो सहगल ने इस साल परीक्षा में नक़ल को रोकने को लिए छात्र ,टीचर प्रिंसिपल और प्रबंधक चारो पर अर्थ दंड का प्रावधान किया है पर प्रो सहगल ने जिन महाविद्यालय में खुद नक़ल पकड़ी वहा अभी तक एसा कुछ भी नहीं किया । आपने जो किया वो हमेशा की भांति शायाद वाही पुरानी कार्यवाही थी जो विश्वविद्यालय कभी कभी जब ईमानदारी से काम करता है तब कभी कभी इसी स्थिति के लिए यही कार्यवाही करता है.कुल मिला कर आपने अपने द्वारा बनाए हुए नियमो का ५० प्रतिशत भी पालन नहीं किया.इस साल छात्रपति साहू जी महाराज विश्वविद्यालय ने गत वर्षो के नक़ल के सारे रिकार्ड तोड़ के रख दिए है.आज स्ववित्त पोषित महाविद्यालय में छात्रो एवं उनके अभिभावकों को लुभाने के लिए नक़ल ही होड़ लगी हुई हुयी है.आज स्ववित्तपोषित महाविद्यालय इस प्रतियोगिता में है की इस बार परीक्षा में कौन कितनी नक़ल करवा रहा है .स्ववित्तपोषित महाविद्यालय में नक़ल के पीछे प्रबंधको की यह मंशा होती की अगले सत्र में इस नक़ल का फ़ायदा उनके महाविद्यालय में छात्र संख्या को बढाएगा और यह बात १०० प्रतिशत सत्य भी है.आज जिस महाविद्यालय में छात्र संख्या अधिक है उसका कारण पिछले वर्ष हुयी उस महाविद्यालय में जम के नक़ल का ही नतीजा ही है.इन महाविद्यालय में छात्र सैकड़ो किलोमीटर दूर से प्रवेश ले कर चले जाते है यानी पूरी साल घर पर रहते है परीक्षा के समय पेपरदेने के लिए आ जाते है.पिछले वर्ष जिन महाविद्यालय में नक़ल परीक्षा के आखिरी क्षणों में होती थी आज वे महाविद्यालय के प्रबंधको को जब मालूम पड़ता की आज उड़न दस्ता का दौरा उनके क्षेत्र में नहीं है तो ये महाविद्यालय के प्रबंधक उसका फयादा उठा के पेपर शुरू होते ही नक़ल करवाना प्रारंभ कर देते है और पूरे ३ घंटो तक नक़ल करवाते है जिसका कारण प्रो सहगल के बनाए हुए नक़ल विरोधी कानून है.आज इसविश्वविद्यालय के वित्तविहीन महाविद्यालय भी नक़ल कराने में पीछे नहीं है.इस वर्ष हो रही व्यक्तिगत और संस्थागत परीक्षा के साथ साथ होने से इन महाविद्यालय ने भी दोनों प्रकार के परीक्षार्थियों को खुली छूट दे राखी है.अगर स्ववित्त पोषित महाविद्यालय की बात की जाए तो इस विश्वविद्यालय में स्ववित्तपोषित महाविद्यालय का जन्म होता ही है इन्ही सब लिए,जम के छात्रो को नक़ल करवायो .अगर आप को लिखना आता है तो आप छत्रपति शाहू जी महाराज विश्वविद्यालय से बिना पड़े कोई भी डीग्री प्राप्त कर सकते है.इन स्ववित्तपोषित महाविद्यालय में शायद ही किसी किसी महाविद्यालय में ही पठाई होती है और जिन में होती भी है तो वो भी बिना मानक के टीचरों के द्वारा .बल्कि मेरा यहाँ तक मानना है की इस विश्वविद्यालय का कोई भी स्ववित्तपोषित महाविद्यालय के मानक अपने आप में पूर्ण नहीं है.इस विश्वविद्यालय के स्ववित्तपोषित महाविद्यालय के मानक केवल कागजो पर ही पूरे होते है.आज इस विश्वविद्यालय से सम्बध्द स्ववित्तपोषित महाविद्यालय में इस प्रकार के लोग भी केवल कागजो पर पडा रहे है जो सरकारी नौकरी कर रहे है.जिनमे अधिकंश्ता टीचर सरकारी प्राथमिक विद्यालय में टीचर है या फिर इंटर कॉलेज में सरकारी टीचर है।वास्तविक तौर पर किसी भी स्ववित्तपोषित महाविद्यालय के मानक पूर्ण नहीं है.स्ववित्तपोषित महाविद्यालय के प्रबंधको ने शिक्षा को एक टैक्स फ्री व्यवसाय बना रखा है.इस प्रकार के प्रबंधको का उद्देश्य केवल एक ही होता है और वो है नक़ल.अगर ये कॉलेज नक़ल नहीं करवाते है तो इनकी दूकान का चलना मुश्किल हो जाता है.अब ज़रा प्रो सहगल के द्वारा गठित नक़ल विहीन परीक्षा कराने वाले उड़न दस्तो का रेट भी जान ले तो सुनिए जनाब यदि उड़न दस्ता किसी स्ववित्तपोषित महाविद्यालय में जाता है और नक़ल नहीं मिलाती है तब इनका रेट रहता ६००० रूपये और अगर इनको नक़ल महाविद्यालय में मिलाती है तब इनका रेट अलग होता.अब ज़रा सहगल के दिमाग की बात भी कर ली जाये .सहगल ने जो नक़ल को रोकने के लिए जो अपने कानून बना रखे है उन कानूनों में एक कानून यह है की अगर छात्र नक़ल करते हुए पकड़ा जाता है तो उसे ५००० रुपये का जुरमाना भरना पडेगा.अब ज़रा छात्रो की हकीकत से भी वाकिफ करवाता हु, इस विश्वविद्यालय के अधिकांश महाविद्यालय या तो ग्रामीण क्षेत्रो में है या फिर कस्वो में.ग्रामीण क्षेत्रो के स्ववित्तपोषित महाविद्यालय में पड़ने वाले छात्रो के अभिभावक पूरे साल में महाविद्यालय की फीस तो दे नहीं पते है जो १५०० से ४००० रुपये तक होती तो वे ५००० रुपये की जुर्वाना की रकम कहा से देगे.अब स्ववित्तपोषित महाविद्यालय में काम करने वाले टीचर की भी हकीकत से वाकिफ हो ले .इन स्ववित्तपोषित महाविद्यालय में टीचर केवल कागजो में ही होते है और जो कोई स्ववित्त पोषित महाविद्यालय टीचर रखता भी है तो उसकी मासिक पेमेंट २००० से १०००० तक होती है और वो भी पूरे साल नहीं मिलती है .इस पेमेंट से टीचर का महीने का खर्च ही बहुत मुश्किल से चल पाटा है तो वो सहगल के नक़ल के नियम का अर्थ दंड कहाँ से भरेगा.शायद प्रो सहगल ने इसके लिए भी विश्वविद्यालय में कोई नया कोष बना रखा होगा जिसकी जानकारी देना आपने उचित नहीं समझा वो शायद इसे टीचर और परिक्षार्थियो को नक़ल में पकडे जाने पर मदद इसी कोष से करेगे जो अभी तक आप ने शायद गुप्त रखा है .अंत में एक बात कहना चाहता हु सहगल कितना भी प्रयास कर ले नक़ल नहीं रोक पायेगे जब तक की स्ववित्तपोषित महाविद्यालय में टीचर की व्यवस्था ठीक प्रकार से नहीं होती है और उनका पेमेंट विश्वविधालय से नहीं किया जाता है तथा इन स्ववित्तपोषित महाविद्यालय के टीचर पर इनके प्रबंधको का दबाब ख़त्म नहीं होता है . इस प्रकार निष्कर्ष के रूप में कह सकते है की हर्ष कुमार सहगल के नक़ल विहीन परीक्षा कराने के सरे दावे अभी तक खोखले रहे है और शायद आगे भी खोखले ही साबित होगे .
कानपुर मात्र उद्योगों से ही सम्बंधित नहीं है वरन यह अपने में विविधता के समस्त पहलुओ को समेटे हुए है. यह मानचेस्टर ही नहीं बल्कि मिनी हिन्दुस्तान है जिसमे उच्चकोटि के वैज्ञानिक, साहित्यकार, शिक्षाविद राजनेता, खिलाड़ी, उत्पाद, ऐतिहासिकता,भावनाए इत्यादि सम्मिलित है. कानपुर ब्लोगर्स असोसिएसन कानपुर के गर्भनाल से जुड़े इन तथ्यों को उकेरने सँवारने पर प्रतिबद्धता व्यक्त करता है इसलिए यह निदर्शन की बजाय समग्र के प्रति समर्पित है.
कितने सहगल आये और चले गए कौन रोक पाया है? जब लाखों की संख्या में माफिया इसमें घुसे हैं और उन्हें पनाह हम दे रहे हैं तो एक सहगल की क्या बिसात ? स्ववित्तपोषी विद्यालयों का यथार्थ भी तो देखिये , बेच रहे है ये डिग्री और फिर खरीद रहे है हम, चिंता किस बात की है. सबसे बड़ी तो बी एड पर नजर डालिए. सरकारी नौकरी के लाभों को उठाने के लिए साम दाम दंड भेद इस डिग्री के लिए लोग लालायित हो रहे हैं. फिर क्या नक़ल और क्या असल? विष तो जड़ों में भरा है फल कैसे बदल सकता है? माली को कहाँ तक दोष देंगे? हम खुद तोसुधर कर देखें. एक माली लाखों पौधों को एक नजर देख भी नहीं पता है और क्या पता कि माली भी कितना ईमानदार है?
जवाब देंहटाएंरेखा जी से सहमत . नक्कारखाने में तूती की आवाज़ सुनाई कहा देती है , नगाड़ा बजे तो कुछ बात बने.
जवाब देंहटाएंराजेश जी नगाड़ा बजने के लिए क्या कर रहे है ?
जवाब देंहटाएंशिवलोक स्नातकोत्तर महाविद्यालय मेहरबान सिंह का पुरवा कानपुर में बोल बोल कर नक़ल करायी जा रही है ...मेहरबान सिंह का पुरवा कानपुर के सुखराम सिंह यादव के कालेज नक़ल के बड़े अड्डे मात्र है.सुखराम सिंह यादव के दर से कोई भी वहा नक़ल पकड़ने नहीं जाता है ... विश्वास न हो तो कापिया मिला कर देख ली जाये ... सब दूध का धुध पानी का पानी हो जायेगा
जवाब देंहटाएंशिवलोक स्नातकोत्तर महाविद्यालय मेहरबान सिंह का पुरवा कानपुर में बोल बोल कर नक़ल करायी जा रही है ...मेहरबान सिंह का पुरवा कानपुर के सुखराम सिंह यादव के कालेज नक़ल के बड़े अड्डे मात्र है.सुखराम सिंह यादव के दर से कोई भी वहा नक़ल पकड़ने नहीं जाता है ... विश्वास न हो तो कापिया मिला कर देख ली जाये ... सब दूध का धुध पानी का पानी हो जायेगा सुखराम सिंह यादव के में ह रबान सिंह का पुरवा कानपुर के सभी कालेजों के टीचर्स के अनुमोदन भी ९० प्रतिशत फर्जी हैं ...स्ववित्त पोषित कालेजों में सबसे भ्रस्त कालेज मेहरबान सिंह का पुरवा कानपुर के कालेज हैं ...सबसे भ्रस्त मालिक सुखराम सिंह यादव है ..
जवाब देंहटाएंडॉ आर ० के ० सिंह (dbs ) ,डॉ ऍम ० पी0 सिंह अर्मापुर कॉलेज, डा ० निरंजन सिंह मंधना ,डा ० अलोक सिंह (dbs ) ये सभी शिक्षक राजनीति के नाम पर मॉल बना रहे हैं .कानपूर ब्लोगर्स असोसिएसन के लोगों को सच्ची टिप्पड़ियां मिटने में शर्म भी नहीं आई सब की आत्मा मर गयी है .कुलपति जी बधाई के पात्र हैं, burai ke nahi .
जवाब देंहटाएं. एस ० एस ० डिग्री कालेज मेहरबान सिंह के पुरवा कानपुर वाले स्कूल में बोल बोल कर नक़ल करायी जा रही है ...और आप मेरे कमेंट्स मिटा कर ...सिर्फ कुलपति पर निशाना कर रहे है ...कम से कम यह बन्दा मूल्यांकन में नंबर बढ़ाने के धंधे को रोकने का एक प्रयास तो कर रहा है ... जिससे बाबुओं और टीचरों की काली कमाई रुकेगी .. और पात्र छात्र ही आगे आ सकेंगे .