सोमवार, 27 दिसंबर 2010

कनपुरिया चटखारा ... आह क्या कहने

आप हिंदुस्तान की कितनी ही जगहों की मिठाई और चाट खाए  हो लेकिन  जो मजा कानपुर की  मिठाइयो और चाट  को चाटकर खाने में है वह ना तो बंबई में मिल सकती हिया ना दिल्ली में | खाना खजाना का संजीव कपूर जब भी कानपुर आते है तो उनका ठेका ठग्गू के लड्डू पर ही होता है | बुद्धसेन स्वीट  हाउस से संदेश , खोया, मंदी में हाथरस वाले की इमरतिया किसी श्रृगार रस की कविता की ही भांति रसीली है
आर्यनगर के घोष के रसगुल्लों का कहना ही क्या | मिठाइयो   में कानपुर का टक्कर सिर्फ बनारस ही ले पाता  है भीखाराम महावीर प्रसाद और बिराहना रोड के अर्जुन सिंह  की कचौड़ियाँ
१६ दोनों में तरह तरह की सब्जियों चटनियों और रायते के साथ जब सामने होती है ... आह क्या कहने
कानपुर में जलेबी सुबह हर हलवाई बनाता है जैसे मन्दिर में सुबह पुजारे भगवान् का पूजन करता है वैसे दही जलेबी का कलेवा करना यहाँ नाश्ते में  शुमार  है |
कानपुर में गरीब और मध्यम वर्ग के लोग अधिक रहते है लेकिन यह शहर किसी को भूखा नहीं सोने देता |
यहाँ के कारीगर गरीब हैं इसलिए भूख का दर्द जानते है | इसलिए कम से कम कीमत पर अपना उत्कृष्ट सामान उत्पादित कराते है नयागंजा चौराहे के कुछ दूर खडा होने वाला शंकर पानी के बताशे वाला अब भी दो रुपये में पानी के चार बताशे देता है लेकिन उसका बताशों का पानी अद्भुत होता है | जलतरंग की प्यालियों से सजे बताशों के पानी के मर्तबान | उनमें घुला सोंठ , जीरा , हींग पुदीना , खटाई और न जाने क्या क्या | खाने वाला एक बार खाना शुरू करता है तो गिनती भूल जाता है | क्या खाक  मुबंई की पानी पूरी मुकाबला करेगी इनका.
पिछले बीस बरसों से कानपुर में सर्दियों में झाग  वाला मक्खन खूब बिकता है मिट्टी की प्यालियों में हलके केसरी रंग के मक्खन की झाग    खाना ज़रा मुश्किल  काम है पर यह झागदार  मक्खन इतना स्वादिष्ट होता है कि एक प्याली से मन नहीं भरता | ऐसे  झागदार मक्खन के मुख्य बाजार बीराहाना रोड और नयागंज है |
कानपुर की चाट के लिए स्वाद के विकास में यहाँ के मेस्टन रोड से लेकर बिरहाना रोड तक फैले थोक के व्यापार के आढ़तियो का बड़ा हाथ है | टी टेस्टर की तरह ही ये सब चाट के स्वाद के मर्मज्ञ है | चाट में मसली का अनुपात ज़रा भी गड़बड़ाते   ही ये टोक देते है - गुरु आज तुम्हारा जीरा ठीक से भुना नहीं है | कानपुर में चाट की सबसे बड़ी दुकान पी. रोड पर हरसहाय जगदम्बा सहाय स्कूल के पास है - हनुमान  चाट
भण्डार.  यहाँ चाट खाने के लिय खासे धैर्य की जरूरत है | धनिये वाले आलो, नवीन मार्केट में बिरहना रोड पर उम्दा मिलते हिया रिजर्व बैंक के सामने मुन्ना चाट भंडार , नवीन मार्केट में भोला चाट भण्डार  हटिया का गिरिजा चाटी भण्डार  किदवई नगर का शुक्ला चाट भण्डार  लाजपत  नगर का लल्ला चाट भंडार व पांडू नगर का लूटू चाट भंडार कानपुर के मशहूर चाट भंडार है |
पाठको मुह में पानी आ रहा होगा ना
तो देर किस बात कि
अरे कुछ दिन तो गुजारिये कानपुर में
और  कनपुरिये चटखारे क़ा फुलटाइम लुत्फ़ लीजिये



(साभार अमरीक सिंह 'दीप' और अपर्णा त्रिपाठी"पलाश")

मंगलवार, 21 दिसंबर 2010

पुनर्जन्म प्रक्रिया एव प्रेत अवस्था

पुनर्जन्म की प्रक्रिया सुनिश्चित होती है  जिस में विघ्न  पड़ने पर कुछ समय  प्रेत  अवस्था  भी हो सकती है .पुनर्जन्म की प्रक्रिया समझने के लिए हमें कुछ तथ्य समझने होंगे .
हमारे भाव ही फलीभूत  होते है .इसी लिए एक ही कर्म करने पर भी अलग अलग फल प्राप्त हो सकते है . किसी भा कर्म का फल उस कर्म करने के भाव में निहित होता है . 
 सत्य तो यह की  हमारे भाव का प्रभाव हमारे जीवन के हर क्षेत्र में पड़ता है . क्या आप ने कभी सोच है की हमारे यहाँ   किसी की मृत्यु  के समय  गीता का पाठ क्यों करते है ? क्यों चौथा आश्रम वानप्रस्थ आश्रम है ? 
इस का जवाब प्रकति के एक नियम में छुपा है जो पुनर्जन्म की प्रक्रिया को भी निर्धारित करता है . मरते समय हमारा जो अंतिम भाव होता हम उसी  भाव पर स्थिर हो जाते है .इस के दो कारण है . पहला की हमारी बुद्धि नष्ट हो जाती है जो विवेक के लिए उत्तरदाई   होती है और दूसरा यह की घटनाये समय के सापेक्ष होती है और  घटना  न होना समय  से परे होना ही है अर्थात मरने से जन्म लेने तक का समय  उस के लिए रुक जाता है . इस स्थिति में न तो वह कुछ प्राप्त कर सकता है और नही कुछ खो सकता है . .
मृत्यु  के उपरांत हमारा मन ही हमारे साथ जाता है जिस में हमारे जन्म जन्मान्तर के संस्कार संचित होते है . जन्म तभी संभव है जब की ये संस्कार उस माता पिता के संस्कार से मेल खाए जिस के यहाँ  वह जन्म लेना चाहता है. ये थी उसी प्रकार है जैसे कोई ताला अपनी ही चाभी से खुलता है  . यही कारण है की  साधारण लोग तो जन्म लेते रहते है पर बहुत पुण्य आत्मा और  बहुत दुष्ट आत्मा को जन्म लेने के लिए काफी लम्बा इन्तजार करना पड़ता है क्यों की वे चाह कर भी तब तक जन्म नही ले सकते जब तक की उन के संस्कारो वाले माता पिता उसे न मिल जाये .
ये प्रकति का नियम अवतारवाद  की धारणा को पुष्ट करता है जिसे हमारे ऋषि मुनि मानते थे और विरासत में मिलने पर हम भी मानते है पर बिना कारण जाने . 
विज्ञानं  में  गति विषयक नियम कहता है की 
यदि कोई पिंड गतिशील अवस्था  में  तो वह गतिशील रहेगा और विराम अवस्था में है तो विराम  में ही रहेगा जब तक की कोई वाह्य बल न आरोपित किया जाये .
यही बात म्रत्यु  के उपरांत  लागु होती है अंतिम भाव की ठोकर जिस दिशा की होती है    उसी दिशा जन्म मिलता है .
भरत मुनि की कहानी उस का प्रमाण मानी जा सकती है . भरत मुनि ब्रह्म ज्ञानी थे पर म्रत्यु से कुछ दिन पूर्व उन्हों ने एक अनाथ मृग का बच्चे को आश्रय दिया .और मरते समय उसी से मोह में आसक्त हो गए . फलस्वरूप मोक्ष से पूर्व उन्हें एक और जन्म लेना पड़ा जिस में उन्हें मृग योनी प्राप्त हुई  .
                                                    प्रेत अवस्था 
हमारा शरीर पांच  तत्वों  से निर्मित है .मृत्यु के समय सिर्फ पृथ्वी तत्व अलग  हो जाता है . इस तत्व के अलग हो जाने पर वह स्थूल  जगत में अपना अस्तित खो देता है.
पर जब कोई किसी अत्यंत प्रबल भाव के साथ मृत्यु को प्राप्त होता है कुछ मात्र  में वह सूक्ष्म देह में पृथ्वी तत्व भी आ जाता है और ये अवस्था ही प्रेत अवस्था होती है . ये मात्र इतनी सूक्ष्म होती है के अपना अस्तित्व प्रकट   नही कर सकते .  एक तत्व कम होने पर ये कुछ हद तक भविष्य और पूरा अतीत  देख सकते है . प्रेत विद्या जानने वाले और योग्य व्यक्ति संपर्क कर के जानकारियां  प्राप्त कर  लेते है .
अचानक घटी दुर्घटना में कभी  कभी पृथ्वी तत्व  की थोडा अधिक मात्र में आ जाता है जिए ये प्रयास  कर अपनी धुए  आभासी आकृति कभी कभी प्रकट कर सकते है .
प्रेत अवस्था  को हम उस के बीते काल की प्रतिध्वनी मान सकते है  जिस का समय वही पर रुक चुका  है .   
   
  

गुरुवार, 16 दिसंबर 2010

"संभव हो सके तो कुछ इंसान बनाए"

Previewअसमंजस में हूँ कि कानपुर ब्लॉगर एसोसिएसन पर पहली पोस्ट के रूप में क्या पोस्ट करूँ? बातें बहुत सी हैं कहाँ से शुरू करूँ और कहाँ तक करूँ. ब्लॉग पे एक सदस्य के रूप में आगे भी बहुत सारी बातें होती रहेंगी पर आज कानपुर ब्लॉगर एसोसिएसन  के ब्लॉगर बन्धुवों से कहना चाहूँगा की आजकल मुझे इन्सान और इंसानियत  की कमी सी लग रही है, सब के सब मशीन के से बने हुए दिखते हैं. ऐसे में यदि हम कुछ ऐसा करें की कुछ इन्सान बना सकें तो ??????????????????
                                 मुझे पता है कि आज ब्लोगिंग से जितने भी लोग जुड़े हैं उनके अन्दर प्रेम,भाव,संवेदना और इंसानियत नाम की चीजें हैं, तभी वे यहाँ कुछ लिख पाते हैं. ये वे लोग हैं जो घिसी पिटी जिंदगी से ऊपर उठ कुछ करने का माद्दा रखते हैं और कुछ कर सकते हैं. ये भी पता है की ब्लॉगिंग की इस दुनिया में कुछ ऐसे भी छद्म वेशधारी लोग बैठे हैं जो की कंप्यूटर स्क्रीन के सामने बैठ कीबोर्ड पे उँगलियाँ चला बहुत बड़ी बड़ी बातें लिख जातें हैं लेकिन वास्तविक जीवन में उनका उससे कोई ताल्लुक नहीं. लेकिन सुकून की बात ये है कि यहाँ ऐसे लोगों की संख्या कम ही है. मैंने अपनि बातों को पंक्तियों में प्रस्तुत करने का प्रयास किया है, कुछ ऐसे............

कविता लिखी कहानी लिखी और है ज्ञान बढाया
कभी कुछ   विशिष्ट लिखकर   है नाम    कमाया
आज तेरी    लेखनी को   है   चुनौती   मेरी एक
विजयी कहूँगा तुम्हे   जो कुछ इन्सान   बनाया


क्षमता है तेरी लेखनी में   तेरे ह्रदय  में भाव है
अगर कोरी    कल्पना      से     तुम्हे दुराव है
तो लिखो आज, कल कोई तूफान लाने के लिये
बढ़ो आज कल   को सोचेंगे    कहा    पड़ाव है


चल रही हैं आंधियां     खुद   को     बचाना सीख लें
वक्त जद में न हो   तो    कंधे   झुकाना    सीख    लें
चीख कर कमजोरियां छिपाने वालों से डरते हैं क्यों
शांत रहकर सत्य    से नाता     बनाना     सीख ले


अगर चेहरा ही बताता दिल के अन्दर   की     असलियत
तो फिर   इन    फरेबियों का     ठिकाना     होता    कहाँ
अच्छा है सफल हो जाना इनका कभी कुछ इस कदर की 
इस ज़माने में सही     की   पहचान     भी    होती     रहे 
धन्यवाद"

रविवार, 12 दिसंबर 2010

पुनर्जन्म

बहुत से लोग पुनर्जन्म   की धारणा पर विश्वास  नही करते  क्यों के वे प्रमाण मांगते है और वैज्ञानिक सोच भी प्रमाण पर ही  आधारित  है  . ऐसे बहुत से उद्दहरण पुनर्जन्म के है जिस का  का विज्ञानं के पास कोई जवाब नही है .
हम बहुत की चीजे नही जानते बल्कि बहुत ही कम जानते है ज्ञान के विशाल सागर की तुलना में , पर जिसे हम नही जानते उस का अस्तित्व है और हमारे जानने या न जानने से सत्य पर फर्क नही पड़ता  सिर्फ हम पर ही फर्क पड़ता है .
हम कार्य कारण की की अनन्त श्रंखला में है  और जिस के कारण हम को कर्मो के फल का भोग करना ही पड़ता है .यह श्रंखला स्वचालित है और पुनर्जन्म इसी  कारण होता है . यदि ऐसा न हो तो हम कर्म कर उस के फल भोगने के लिए बाध्ह्य न होते .
पुनर्जन्म इस स्वचालित प्रकति का एक हिस्सा है  .
पुनर्जन्म की प्रक्रिया समझने से पहले हमें  जीव क्या है जानना होगा .
म्रत्यु के साथ हमारा अस्तित्व समाप्त नही होता है क्यों की  म्रत्यु सिर्फ शरीर का जीव से अलग होना  है . जब तक जीव है तब  तक उस का अस्तित्व है . 
                                 जीव क्या है ?
आत्मा और जीव में अंतर है . हमारे तीन शरीर माने गए है  स्थूल , कारण और सूक्ष्म ,  स्थूल शरीर के नष्ट होने को हम म्रत्यु  और सूक्ष्म शरीर के नष्ट होने को हम मोक्ष कहते है . मोक्ष मिलने का अर्थ है हमारे अस्तित्व  का  समाप्त हो जाना  और  शून्य में  विलीन  जाना . 
कभी  बहती हुए नदी में बनते हुए जल भवर को देखिये . उस का अस्तित्व है क्यों हम उस को देख रहे है पर उस में हर पल नई जल धार आ  जाती है . तो क्या उस का अस्तित्व ये जलराशि है कदापि नही क्यों की वह तो प्रति पल बदल रही है . उस का अस्तित्व है वह  गतिज ऊर्जा  जो पुरानी जल राशी नयी को दे देती है .
ठीक यही बात हम पर लागु  होती है . हमारा शरीर  उस जल रही की तरह है तो जीव रूपी ऊर्जा के निकल जाने पर बिखर जाता है .
इस ऊर्जा को हम मन  के  नाम से जानते  है. इस को आप आम बोल चल की भाषा में प्रयोग होने वाला मत समझे . यहाँ  पर ये व्यापक अर्थ  में प्रयोग हुआ है . इस में ही हमारे जन्म जन्मान्तरो के संस्कार संचित होते है और यही हमारे अस्तित्व के लिए उत्तरदाई है .  
 क्यों की हम ईश्वर के अंश है और ये श्रष्टि इश्वर की ईच्क्षा  मात्र  से हुई . अतः हम जो भी चाहते है  वो हमें मिलता जरुर है और यही  हमारे अगले जन्म का  कारण बनता है . 
पुनर्जनम  की निश्चित प्रक्रिया होती है जिस में व्यवधान ही पड़ने पर  कुछ  समय के लिए  प्रेत योनी  प्राप्त हो सकती है .  अगली पोस्ट में  पुनर्जन्म  प्रक्रिया और प्रेत योनी के बारे में  जानकारी साझा करेंगे

रविवार, 5 दिसंबर 2010

ये किधर जा रही शिक्षा ......


शिक्षा का बाजार बने है
ये विघा के मंदिर
शिक्षा छोड के सब मिलता
देखो इसके अंदर

अब पहले से नही रहे
गुरुजन द्रोण के जैसे
ढूढे से भी ना मिलते  
शिष्य भी अर्जुन के जैसे 

हाथ में डिग्री उनके होती 
जिनकी जेब में पैसे 
जिसके पास नही हो पैसा
वो पढने को तरसे

विधार्थी बन रहे कस्टमर 
और टीचर बना इम्प्लाई
स्टूडेंट से कुछ कहे तो समझो 
उसकी जीविका पर बन आई 

बच्चो से ज्यादा रिजल्ट की चिंता 
रोज गुरुवर जी  को है सताती 
एक्साम के दिनों में यही सोच कर
गुरु  जी को नीद भी नहीं आती 

सुबह सवेरे मंदिर जाकर
मन्नत टीचर है  मांगे
और बरगद के पेड़ में जाकर 
मोटे धागे भी बांधे 

बिन शिक्षा के फल फूल रहा
देखो शिक्षा का व्यापार
बिन शिक्षित हुए लोग भी पा रहे 
मेडल नौकरी और उपहार 

शिक्षा का बाजार बने है
ये विघा के मंदिर
शिक्षा छोड के सब मिलता 
देखो इसके अंदर


चित्र के लिए गूगल का आभार
पलाश 

मंगलवार, 30 नवंबर 2010

एक हडबडिया मुलाकात फुरसतिया जी के साथ

कल  अलस्सुबह मेरे चलभाष की स्वरलहरिया बजने लगी देखा तो बड़े भाई अनूप शुक्ल जी थे । शाम को मुलाकात का प्रोग्राम बन गया ।  कथाकार अमरीक सिंह दीप से भी शाम को मुलाकात करनी थी  साढ़े चार बजे कालेज से आने के बाद मैंने किरण को अपने कार्यक्रम के बारे में बताया तो बोली मै भी इनसे मिलना चाहूगी.जल्दी जल्दी चाय पीकर मैंने मोटरसाइकिल निकाली और निकल पड़े। रास्ते में 'माटी'पत्रिका के सम्पादक श्री गिरीश त्रिपाठी जी से मुलाकात करते हुए जैसे गोविन्द नगर पहुचे पहिया पंक्चर हो गया.।पास  में ही  दूकान थी.मिस्त्री पंक्चर बनाता जाय और बेटे बहू की बाते भी बताता जाय. बाबूसाहब  जब से बहुरिया आय हौ तब ते लरकावा का दमाग फिर गवा ।
अब हम बूढ़ मनई घिस पिट के घर  चलाई रहा हूँ। औरत बड़ी मायावे  है।  मै भी घर घर की  कहानी को सुनता गया हा हूँ करता गया।
बाइक के ठीक होने के बाद गोविन्दपुरी पुल के भीषण जाम से भी लड़ना था।खैर दीप साहब के यहाँ पहुचते पहुचते आठ बज गए। एक शांत सौम्य व्यक्तित्व से यह मेरी दूसरी मुलाकात थी। साहित्य की बातों के दौरान गृहस्थी की बाते भी हो जाती।उन्होंने अपना कप्यूटर दिखाया और कहा कि वह जल्द ही ब्लोगिंग की दुनिया में आयेगे. चलते समय अपनी एक कृति 'काली बिल्ली' सप्रेम भेट की।
अब बाइक का रुख अर्मापुर था। ठंडी हवाओ के बीच अंधेरो से गुजरना एक अजीब किस्म की रोमानियत का अहसास करा रहा था. बीच -बीच में फुरसतिया जी घर के पते के बारे में जानकारी देते रहे।डी टी ५४ तक पहुचते लगभग साढ़े नौ बज चुके थे। गेट पर भाई शुक्ल जी सौम्य मुस्कुराहट के साथ मौजूद थे।उनके घर के इंटीरियर का क्लासिकल लुक मन को लुभाने वाला था। बातो बातो में उन्होंने बताया कि वह १९८३ में  साइकिल से भारत भ्रमण कर चुके है। कानपुर के कई जाने अनजाने लेखको कवियों और इतिहास कारो के बारे में परिचय कराते रहे। मै दत्तचित्त होकर सुनता रहा.इन बातो की चाशनी में  समीर लाल साहब की बाते कन्हैया लाल नंदन जी, गोविन्द उपद्ध्याय जी गिरिराज किशोरजी  इत्यादि के प्रसंग  शामिल थे . ब्लोगिंग को लेकर किरण के अपने विचार थे.वह लिखने से ज्यादा पढने वाली ब्लोगर है भाई शुक्ल जी ने लिखने की सलाह दी.रात का समय ज्यादा हो रहा था.जाते जाते वे अपना कैमरा ले आये बोले जरा फोटू हो जाय.किरण को अपनी फोटो खिचवानी कम पसंद है सो उसने हम दोनों की एक स्नैप खीची.जिसे आज सुबह ही भाई  शुक्ल जी ने मेल द्वारा मुझे भेजी.यह मुलाकात हडबडी वाली थी.लेकिन थी मजेदार.खासतौर से भारतीय ब्लोगिंग से जुड़े तमाम  मुद्दों पर फुरसतिया भैया के अनुभव.

   

सोमवार, 29 नवंबर 2010

किस्सागोई के उस्ताद: अमरीक सिंह 'दीप'

जाने माने कथाकार अमरीक सिंह 'दीप' लेखक ही नहीं एक जिज्ञासु घुमंतू और शौकिया शोधार्थी भी है । उनकी शोध यात्रा में न तो कोई शान आगामी है  न कोई व्यक्ति पराया । जनजीवन में सहजता से घुलमिल जाने की प्रवृति ने ही इन्हें ऐसे विषय चरित्र और परिवेश चित्रित करने की क्षमता प्रदान की है जिन्हें वातानुकूलित कमरों में रहकर नहीं जाना जा सकता ।कानपुर दीप साहब की कर्मभूमि और जन्मभूमि दोनों है । यहाँ की गली कूचो हातो में वह पले बढे है । टाट पट्टी वाले पाठशालाओं में पढ़े है और स्कूल,कालेज से गोला मारकर सिनेमा देखते रहे । यहाँ के घाट बाज़ार पार्क मिलों की चिमनिया यह सब उनके एक बड़े से घर के अलग अलग हिस्से प्रतीत होते है ।
दीप साहब कभी गुलाब बाई कभी विद्यार्थी जी,चन्द्रेश जी या जवाबी कीर्तन से रूबरू होते है । कानपुर की संस्कृति, जनजीवन बोली बानी और ऐतिहासिकता को बड़ी सहजता के साथ पिरोते है. 
दीप साहब का जन्म ५ अगस्त १९४२ में हुआ था । प्रमुख कृतियों में 'कहा जायेगा सिद्धार्थ', कालाहांडी ,चादनी हूँ मै, सर फोडती चिड़िया, आजादी  की फसल, बर्फ का दानव शाने पंजाब, रितुनगर, इत्यादि है । 
दीप साहब की सौ से अधिक कहानिया श्रेष्ठ साहित्यिक पत्रिकाओ में छाप चुकी है । कहानी के अखिल भारतीय कार्यक्रम संगमन के पिछले १५ वर्षो से सदस्य के रूप में कार्य रत है ।

रविवार, 28 नवंबर 2010

कानपुर ब्लोगर्स असोसिएसन आपका हार्दिक स्वागत करता है. ये कानपुर है भैया यहाँ का कड़ा पानी है.........

जहा फिरंगियों को  पडी मुह की खानी है.
ये कानपुर है भैया  यहाँ का कड़ा पानी है...........


 गया प्रसाद शुक्ल 'सनेही' जी के  कड़े पानी  में  हमने  शहद की मिठास घोलते हुए इस मंच का गठन किया है. 
कानपुर के समस्त साहित्यकार ब्लोगर बंधुओ को समर्पित है यह ब्लॉग.
इस ब्लॉग का उद्देश्य मात्र साहित्यिक सम सामयिक या चिंतन ही नहीं वरन भावनाओं को पिरोना है.
कानपुर साहित्य का उर्वर स्थल है. यहाँ के चिंतन को वैश्विक  बनने में इस ब्लॉग का निमित्त निहित है. 

कम्पू की शान कानपुर महोत्सव

ठेठ कनपुरिया अंदाज़ में कानपुर महोत्सव का रंगारंग उदघाटन रविवार को हुआ. कार्यक्रम का मुख्य आकर्षण बुंदेलखंड का 'पाई डंडा तथा दीवारी लोक नृत्य रहा. नानाराव पेशवा तथा लक्ष्मीबाई  द्वार का  उदघाटन जिलाधिकारी द्वारा किया गया यह कार्क्रम एक सप्ताह तक चलेगा. कार्यक्रम का उद्देश्य कानपुर की संस्कृति  को आम लोगो से जोड़ना है.