गुरुवार, 28 अप्रैल 2011

...वो कागज की किश्ती


हर किसी के भीतर छिपा है बचपन। यकीन नहीं आता तो याद कीजिए अपने मैजिकल मोमेंट्स को, जिनमें उम्र के बंधन तोड़ कर की गई कुछ बचकानी हरकतें जरूर शामिल होंगी

सैकड़ों कर्मचारियों वाली फैक्ट्री के मालिक। सफल व्यापार। सामाजिक रूप से सम्मानित। जीवन के हर मोर्चे पर जीत। अकूत धन। मतलब सुख-सुविधा और संपन्नता भरा जीवन। सब कुछ होने के बावजूद भी कभी-कभी लगता है कि हम कुछ मिस कर रहे हैं। जी हां, उम्र के इस पड़ाव पर हम जिस चीज को सबसे ज्यादा मिस करते हैं वह हमारा बचपन और उससे जुड़ी यादें या फिर वह जिसे हम नहीं कर पाए होते हैं!

ये दौलत भी ले लो, ये शोहरत भी ले लो, भले छीन लो मुझसे मेरी जवानी। मगर मुझको लौटा दो बचपन का सावन, वो कागज की किश्ती, वो बारिश का पानी..., जगजीत सिंह की गायी यह गजल हमें उन यादों की ओर ले जाती है जिन्हें तेज दौड़ती जिंदगी की आंधी अपने साथ उड़ा ले गयी होती है। रिमझिम बरसात का मौसम, सावन के झूले, तीज का त्योहार, नाग पंचमी का मेला, गुडिय़ा,  रक्षाबंधन, दशहरा-दीवाली; और इसी के साथ इन त्योहारों से जुड़ी यादों में गुम हो कर हम फिर समय के उसी दौर में लौट जाना चाहते हैं। शायद यही कारण है कि हम भले ही सामाजिक रूप से कितने स्थापित हों, सफलता के शिखर पर रहें, नामी-गिरामी हों, धन-दौलत-यश वाले हों, इन्हीं यादों के चलते कहीं न कहीं, कभी न कभी; उम्र, सफलता, पद और रुतबे के बंधनों को तोड़ कर मन बचपन की उन सुनहरी यादों के साथ उन्हीं हरकतों को करने का होता है, जिन्हें वक्त की धूल ने ढंक लिया होता है।

आप अपने बच्चों द्वारा अपनी गुडिय़ा के लिए आयोजित पार्टी में उनसे ज्यादा उल्लास के साथ जुटते हैं, बच्चों के लिए खिलौने खरीदते समय उनकी (बच्चों) चाहत से विपरीत आप अपनी  पसंद का ही खिलौना खरीदते हैं (इसके पीछे यह बहाना काम करता है कि यह खिलौना तुम्हें नुकसान पहुंचा सकता है), पार्क में बच्चों के साथ आप भी घास पर लोटने लगते हैं और गली के मोड़ पर गुजरते हुए बच्चों के साथ कंचे खेलने लगते हैं। बारिश के बहते पानी को देख पुरानी कॉपी-किताबों के नहीं तो अपनी डायरी के पन्नों से ही उसमें नाव बना कर डालते हैं तो कभी इन पन्नों से हवाई जहाज बना कर उड़ाते हैं।

आज यह सर्वविदित तथ्य है कि बच्चों के खिलौनों की खरीददारी में बच्चों से ज्यादा उत्सुकता माता-पिता दिखाते हैं। दुकान पर खरीददारी के वक्त यह माता-पिता ही हैं जो बच्चे से पहले किसी खिलौने से जी भर कर खेलते हैं और फिर खरीदते हैं। गाडिय़ों को दौड़ाते हैं, बंदूक से गोली चलाते हैं और टेडी बियर को सहलाते हैं और वही खिलौना खरीदते हैं जो (बच्चे को नहीं) उन्हें पसंद होता है।

शहर के एक प्रतिष्ठित स्कूल के मालिक सुमित मखीजा इस बारे में कहते हैं, ''हर किसी के भीतर बचपना और बचपन से जुड़ी यादें जीवन भर बनी रहती हैं। मन की अन्य भावनाओं की तरह ही यह भी कभी न कभी किसी न किसी रूप में बाहर भी निकल आती हैं। पिछले दिनों मैं दो दोस्तों के साथ हिल स्टेशन पर गया था। शाम को घूम कर लौटते समय रास्ते में एक बारात जा रही थी, बस बारात को देखते ही हम तीनों को शरारत सूझ गयी और हमने 'बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना' की तर्ज पर बारात में डांस करना शुरू कर दिया। काफी देर से हमें जम कर नाचते देख बारातियों को हम पर शक होने लगा तो हम धीरे से वहां से खिसक आए।''

बचपन और इससे जुड़ी यादें लोगों को इतनी लुभाती है कि बाजार पर भी इसका जादू साफ दिखाई देता है। आज कई विज्ञापनों में बच्चों और बचपने से जुड़ी यादों को इस तरह से दिखाया जाता है कि उस कंपनी का उत्पाद बिक्री की नयी ऊंचाइयों को छूने लगता है। जिस समय आप टीवी पर एक मोबाइल सेवा प्रदाता कंपनी का बारिश में भीगते हुए बच्चे का अपने पिता को फोन करना और पिता का बचपन की यादों में डूब जाना देख रहे होते हैं; उसी समय देश में कहीं एक नया व्यक्ति उस कंपनी का उपभोक्ता बन रहा होता है। 'जी ललचाए रहा न जाए' या फिर 'जब मैं छोटा बच्चा था, गोली खाकर जीता था' पंच लाइन वाले विज्ञापन तो आपको याद ही होंगे।
   
बचपना हर किसी के भीतर होता है और इसकी यादें हर समय बसी रहती हैं। आज भी जगजीत सिंह के कंसर्ट में सबसे ज्यादा फरमाइश यदि किसी गजल की होती है तो 'वह यह दौलत भी ले लो' ही है। यदि मुंशी प्रेमचंद्र ने अपने बचपन की यादों पर आधारित 'ईदगाह'  नामक कहानी गढ़ी थी, तो यकीन मानिए हर आदमी के दिल में एक ईदगाह बसती है। यदि आप इस लेख को पढ़ रहे हैं तो भी इसीलिए कि कहीं न कहीं यह लेख आपको बचपन की सुनहरी यादों को ताजा करवा रहा है। ऐसा नहीं है क्या?

शनिवार, 23 अप्रैल 2011

कानपुर अतीत के साये में



आज इस कड़ी में पेश है सिकन्दरा का ऐतिहासिक कब्रिस्तान ...........सिकन्दरा में एक प्राचीन कब्रिस्तान है.यह कब्रिस्तान सिकन्दरा चौराहे के पास भोगनीपुर रोड पर है.सिकन्दरा चौराहे से लगभग १०० कदम की दूरी पर मुग़ल रोड पर ही एक तालाब मिलता है .इस तालाब के पीछे स्थित है यह ऐतिहासिक कब्रिस्तान.एक अनुमान के आधार यह कब्रिस्तान लगभग ४०० साल तक पुराना है.इस कब्रिस्तान में एक कुआँ है जो लगभग उतना ही पुराना है जितना कब्रिस्तान .इसके आलावा इस कब्रिस्तान में एक इमारत के भी अवशेष है.इस कब्रिस्तान में आज भी एक कब्र पर कुछ अंकित है जिसके कुछ अवशेष ही शेष बचे हुए है.अगर जानकारों की माने तो जानकार यह बताते है की कब्र पर अंकित भाषा फारसी भाषा है जो मुग़ल शासन काल के समय प्रयोग की जाती थी.आज इस कब्रिस्तान पर कुछ आराजक तत्वों ने अपना अड्डा बना रखा है.ये आराजक तत्व यहाँ पर जुआं ,शराब और अश्लील कार्य कर रहे है तथा इस ऐतिहासिक स्थाल को क्षति पहुचा रहे है.भारतीय पुरातत्व विभाग गहरी नीद में सो रहा है.उसको इन स्थलों की कोई खैर खबर ही नहीं ही और इसके साथ ही प्रदेश सरकार को भी इन स्थलों से कोई लेना देना नहीं ही .प्रदेश सरकार के लिए तो बस हाथी मूर्ति प्रेम ही सब कुछ है. सिकन्दरा के बारे में लोगो की धारणा यह है की इसको सिकंदर लोधी ने बसाया था.मुगलशासन काल के पहले खोजफूल के पास एक गावं जिसका नाम विलासपुर है ,यह गावं एक विकसित गावं माना जाता था.सिकन्दरा की नीव रखी जाने से विलासपुर का उजाड़ना शुरू हो गया और सिकन्दरा का विकास होना शुरू हो गया.कुछ समय पश्चात ही सिकन्दरा ने एक विकसित रूप ले लिया.

सोमवार, 18 अप्रैल 2011

निजी महाविद्यालय के एक शिक्षक की दास्तान

ये  दास्तान  मेरे एक प्रिय मित्र की है जो छत्रपति शाहू जी महाराज से सम्बध्द एक निजी महाविद्यालय में अध्यापन का कार्य करते है.मेरे इन मित्र का नाम है आशीष कुमार .ये विगत कई वर्षो से एक महाविद्यालय में अनुमोदित टीचर के रूप में वनस्पति विज्ञान पढ़ा  रहे है .इनके परिवार में इनकी पत्नी के अलावा दो बच्चे है और ये दोनों बच्चे लड़के है इस तरह से इनके परिवार में कुल ४ सदस्य है .इनके बड़े बेटे की उम्र लगभग १२ साल की है और छोटे बेटे की उम्र लगभग ८ साल की है .ये महाशय जिस निजी महाविद्यालय में पड़ते है उस महाविद्यालय के द्वारा इनको ६ हजार मासिक का वेतन दिया जाता है.इनका छोटा बेटा कक्षा २ में एक स्कूल में पड़ रहा है और इनका बड़ा बेटा किसी समय एक स्कूल में कक्षा ५ में पड़ता था पर अब नही पड़ता है .आज इनका बड़ा बेटा मानसिक रोग का शिकार हो गया है जिसका विगत कुछ महीनो से एक मनो चिकित्सक के पास इलाज चल रहा है.पैसे के आभाव में ये अपने बच्चे का इजाज ठीक प्रकार से नहीं करवा पा रहे है.विगत कुछ महीनो से इनको जो महाविद्यालय वेतन मिलता है वह ये अपने बच्चे के इलाज पर खर्च कर देते है और जो थोड़ा बहुत पैसा बच जाता है उस से ये अपने परिवार का भरण पोषण करते है.नातिजान इनको आज काल दो वक्त की रोजी रोटी की जुगाड़ के किये जगह जगह हाथ पैर मारने  पड़ते है फिर भी इनको दोनों वक्त की रोटी नसीब नहीं होती है कभी कभी तो ये नौबत रहती है की इनके परिवार को दोनों वक्त भूखा रहना पड़ता है.ये कहानी  केवल एक आशीष कुमार की नहीं है अपितु इस विश्वविद्यालय में निजी महाविद्यालय के लगभग सभी टीचर की है.निजी महाविद्यालय में चल रही नक़ल से इन महाविद्यालय के टीचर जो कुछ पहले ट्यूशन से कमा लेते थे इस नक़ल ने तो अब उनसे वो भी छीन लिया है .आज इन निजी महाविद्यालय के टीचर की हालत ये है की अगर ये मामूली रूप से बीमार भी हो जाये तो ये अपना इलाज केवल सरकारी अस्पताल में और सरकारी दवा से ही करा पाते  है अगर डॉक्टर ने बाहर  की दवा पर्चे में लिख दी है तो ये उसे खरीदने में असमर्थ है.आज निजी महाविद्यालय के शिक्षक पैसे के अभाव में बदहाल जीवन जी रहे है.सच बात तो यह है की शासन भी मौन रूप से ये सब कुछ देख रहा है.

शनिवार, 16 अप्रैल 2011

बागे ज़न्नत से नही कम फिजाए कानपुर मुर्दा जी जाए जो खाए हवाए कानपुर लावनी: हिन्दू मुस्लिम एकता का सूत्र


लावनी से खड़ी बोली का विकास हुआ.यह हिंदी उर्दू संस्कृत फारसी और देसी भाषाओं की खिचडी थी. इसलिए लावाने को समझने के लिए हिन्दू उर्दू और फ़ारसी सीखते थे जबकि मुसलमान संस्कृत और इस तरह इस शहर में हिन्दू और मुसलमान  घी  शक्कर की तरह  मिले हुए थे. और इस शहर को माशूक की तरह इश्क करते थे. कानपुर के उस्ताद बादल के शागिर्द मजीद खान की लावनी का एक टुकड़ा देखिये.

बागे ज़न्नत से नही  कम फिजाए  कानपुर
मुर्दा जी जाए जो खाए हवाए कानपुर 
भूल रिज्बा इस्म को जो आये कानपुर
छोड़ कर हरगिज़ न वो जाए फिर  कानपुर 

लावनी ने ही शहर को कविता का संस्कार दिया है. कानपुर के जितने भी पुराने कवि है सबने कविता के साथ लावानिया लिखी है चाहे वह प्रताप नारायण मिश्र हो नवीन जी सनेही जी हो या फिर हितैसी जी. प्रताप नारायण मिश्र जी तो लावनी के इतने रसिया थे की लोग उन्हें लावानीबाज कर कर चिढाया करते थे. उनकी लावनी का एक अंश देखिये.

दीदारी दुनियादारे सब नाहक का उलझेडा है,
सिवा इश्क के यहाँ जो कुछ है निरा बखेड़ा है.

लावनी के इश्क में कानपुर के तुर्रेवाले मदारी लाल ,आसाराम, बदरुद्दीन, प्रेमसुख भैरोंसिंह, बादल खान, दयाल चंद,गफूर खान मजीद खान मथुरी मिस्र राम दयाल त्रिपाठी, गौरीशंकर, पन्ना लाल खत्री भगाने बाबू इत्यादि उस्ताद लोग गंगा जमुनी धारा के भाग थे.

काश!की कोई लावनी को कही से फिर ढूंढ लाये और लावनी के दंगल हटिया,रामनारायण शिवाला, चौक, काहूकोठी, जनरलगंज, परेड, नई सड़क, चमनगंज बेकन गंज में होने लगे. हिन्दू और मुसलमान  मोहल्लों में फर्क कम हो जाए. 
(साभार स्वामी नारायण चंद सरस्वती और  अमरीक सिंह "दीप") 
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कानपूर ब्लागर्स असोसिएसन के सभी सदस्यों को बधाई.  हमारा मिशन  सफल हुआ कल कानपुर विश्वविद्यालय परीक्षा समिति की मीटिंग माननीय कुलपति महोदय की अध्यक्षता में हुयी जिसमे यह निर्णय लिया गया कि नक़ल आरोपी सभी १४ कालेजो में परीक्षा निरस्त कर दी जाय और साथ ही साथ उन परीक्षाओं को दुबारा कराया जाय इसका खर्च कालेज वहन करेगा 
समयाभाव के कारण मै   न्यूज़ स्कैन नही दे   पा रहा हूँ
 अस्तु एक बार पुनः सब को हार्दिक बधाई 

गुरुवार, 14 अप्रैल 2011

बोधकथा:कानपुर विश्वविद्यालय का चपरासी बनना, टीचर नही

छत्रपति शाहू जी महाराज विश्वविद्यालय कानपुर के चपरासी से कम वेतन पा रहे है निजी महाविद्यालय के प्रवक्ता.जी हां ये बात एकदम १०० फीसदी सत्य है.छत्रपति शाहू जी महाराज विश्वविद्यालय कानपुर से सम्बद्ध  निजी महाविद्यालय में पढाने वाले टीचर इस विश्वविद्यालय में काम करने वाले नियमित चपरासी से भी कम वेतन पा रहे है.इस विश्वविद्यालय के निजी महाविद्यालय में पढाने वाले टीचर जो कला एवं विज्ञान स्नातक को पढाते है उनको ३  हजार से १० हजार के बीच वेतन इन निजी महाविद्यालय के प्रबंधको के द्वारा दिया जाता है बहुत से महाविद्यालय के प्रबंधक तो पूरे साल में टीचर को केवल १० या  ११ महीने तक का ही वेतन देते है.
अब जरा ये जाने की ये ५ से १० हजार का वेतन किन टीचर को दिया जाता है -ये वो टीचर है जिनका विश्वविद्यालय में अनुमोदन है.जी हां ये टीचर नेट ,पी-एच०डी ० और एम् ० फिल ० धारक होते है.इन महाविद्यालय में जो टीचर गैर अनुमोदित होते है उनको २ हजार से ५ हजार के बीच में वेतन दिया जाता है.गैर अनुमोदित टीचर से यहाँ मतलब है वो टीचर जो परास्नातक करके इन महाविद्यालय में शिक्षण कार्य कर रहे है.गैर अनुमोदित टीचर को महाविद्यालय के प्रबंधक द्वारा पूरे साल में केवल ६ से ८ महीने तक ही वेतन दिया जाता है.अगर इस विश्वविद्यालय में काम करने वाले नियमित चपरासी का वेतन देखे तो चपरासी का वेतन शायद आप निजी महाविद्यालय के टीचर के वेतन से दुगुना  देखेगे.
असल में निजी महाविद्यालय प्रबंधको की उच्च शिक्षा की दुकाने है जहां डिग्री बिकती है.इन निजी महाविद्यालय के खिलाफ विश्वविद्यालय भी कुछ नहीं करता  क्योकि इन निजी महाविद्यालय में विश्वविद्यालय के कर्मचारी और कूटा के सदस्यों के रिश्तेदारों की उच्च शिक्षा की दुकाने सजी हुयी है.एक सत्य यह भी है अगर शासन इन निजी महाविद्यालय के टीचर के वेतन के संशोधान के लिए कुछ करता भी है तो हो सकता है की ये दूकानदार हड़ताल कर दे.
आज आवश्यकता है कि सभी टीचर्स मिलकर इस इन कालाबाजारी करे वाले दूकान दरो की दुकाने बंद कराएं.
सूबे की मुखिया जी सब कुछ चुप चाप देख रही है क्योंकी इसी विश्वविद्यालय में उनके विधायको ,मंत्रियो के शिक्षा की दुकाने भी सजी हुयी है.


बुधवार, 13 अप्रैल 2011

उच्च शिक्षा की दुकाने सजाने में अग्रणी :छत्रपति शाहू जी महाराज विश्वविद्यालय कानपुर

उच्च शिक्षा की दुकाने सजाने में अग्रणी:छत्रपति शाहू जी महाराज विश्विद्यालय ,कानपुर
कानपुर का छत्रपति शाहू जी महाराज विश्वविद्यालय, कानपुर देश में उच्च शिक्षा की दुकाने खोलने में अग्रणी है.वर्तमान समय में इस विश्वविद्यालय का फैलाव इटावा से लेकर इलाहाबाद तक १५ जिलो में है तथा इस विश्विद्यालय से करीब ५९८ महाविद्यालय जुड़े हुए है जिनका विवरण इस प्रकार एडेड महाविद्यालय,निजी महाविद्यालय ,राजकीय महाविद्यालय के क्रम में है -१-कानपुर नगर(२२,८४,२)२-कानपुर देहात(२,३८,१)३-इलाहाबाद(४,९९,३)४-कौशाम्भी(१,२७,१)५-फतेहपुर(२,३०,२) ६-फर्रुखाबाद(७,२२,१)७-कन्नौज(२, २७,१)८-इटावा(३,२२,१)९-औरैया(३,२१,१)१०-लखीमपुर खीरी(३,१६,१ )११-हरदोई(२,४६,२)१२-रायबरेली(४,२३,३)१३-सीतापुर(४,२५,२)१४-उन्नाव(२,२१,२)१५-लखनऊ(०,१३,०) (इन का विस्तृत विवरण आप विश्वविद्यालय की वेबसईट पर देख सकते है इनका स्त्रोत वही से हैhttp://www.kanpuruniversity.org/affiliated_colleges1.asp) इस प्रकार से छत्रपति शाहू जी महाराज विश्वविद्यालय से सम्व्ध्द कुल एडेड महाविद्यालय ६१ ,निजी महाविद्यालय ५१४ तथा राजकीय महाविद्यालय २३ है जिनमे स्नातक और परा स्नातक की डिग्री दी जाती है.इस विश्वविद्यालय में ५१४ निजी महाविद्यालय है जिनमे अधिकांश महाविद्यालय दबंग लोगो के है जो किसी राजनितिक पार्टी में विधायक या मंत्री रह चुके है या फिर वर्तमान  समय में है या कूटा या विश्वविद्यालय के कर्मचारियों के खुद के है या फिर इसके रिश्तेदारों के है.इन निजी महाविद्यालय में शिक्षा के नाम पर डिग्री बेचीं जाती है.इस निजी महाविद्यालय में वर्ष भर तो पढाई  के नाम पर शायद ही किसी महाविद्यालय में छात्र और टीचर मिले.ये दोनों ही केवल पेपर के समय ही देखे जाते है.
अब ज़रा विश्विद्यालय इन महाविद्यालय के विरुध्द क्या कार्यवाही करता है वो जाने निजी महाविद्यालय केवल कागज के दम पर चलते है.इस विश्वविद्यालय को निजी महाविद्यालय से केवल और केवल कागजी कार्यवाही चाहिए और कुछ नहीं यानी इस विश्वविद्यालय के निजी महाविद्यालय केवल कागजो के दम पर चल रहे है.विश्वविद्यालय जब इन महाविद्यालय को मान्यता देता है तो केवल कागज और नोटों की गद्दिया देख कर देता है.बाकि के मानक से विश्वविद्यालय को कोई लेना देना नहीं है.इस विश्वविद्यालय ने उच्च शिक्षा का बाजारीकरण कर दिया है,उच्च शिक्षा की दुकाने सजा दी है और सजाने में लगा है आज अगर इस विश्वविद्यालय के सीमा क्षेत्र को देखे को लगभग इसके सीमा क्षेत्र में १०० दुकाने और सज रही है जिनको ये विश्वविद्यालय हो सकता है अगले वर्ष मान्यता दे दे डिग्री बेचने की वो भी नोटों की गद्दियो के दम पर. मानक पूरे हो या ना हो ,मानक से कोई मतलब नहीं है केवल कागजी कार्यवाही पूरी होनी चाहिए बस .वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश के बड़े शिक्षा माफिया की दुकाने इस विश्वविद्यालय में सजी हुयी है और बहुत सी इस साल सजने वाली है.अगर अपुष्ट सूत्रों की माने तो इस वर्ष के अंत तक निजी महाविद्यालय की संख्या इस विश्वविद्यालय में लगभग ६१४ हो जयेजाएगी जिसका विवरण आप साल के अंत में विश्वविद्यालय की वेबसाईट पर देख सकते है.आब ज़रा इन निजी महाविद्यालय की कमाई को जान ले -एक निजी महाविद्यालय कला स्नाताक के छात्र से वाषिक फीस १५०० से ३००० तक लेता है तथा विज्ञानं स्नातक के छात्र से ४००० से ६००० तक लेता है. अगर एक महाविद्यालय में एक साल में कला स्नातक की सीट ३६० hai तो कला स्नातक की कुल सीट हुयी = १०८० अब १०८० सीट की फीस देखे १०८० सीट की फीस =१६लाख २० हजार से ३२ लाख ४० हजार रुपये तक.अब विज्ञान की फीस देखे -अगर महाविद्यालय में एक वर्ष में २४० विज्ञान की सीट है तब कुल सीट =७२० कुल कमाई =२८ लाख ८० हजार से ४३ लाख २० हजार । अगर एक महाविद्यालय में कला स्नातक की कुल सीट १०८० और विज्ञान स्नातक की कुल सीट ७२० है तो उस महाविद्यालय को दोनों संकाय से कुल कमाई =४५ लाख से ७५ लाख ६० हजार तक.(ये अंकादे निजी महाविद्यालय सीट संखा के आधार पर है जो ज्यादा और कम भी हो सकती है)अब ज़रा इन निजी महाविद्यालय का खर्च भी जान ले -अधिकांश निजी महाविद्यालय में मानक के अनुरूप टीचर नहीं है(मानक से तात्पर्य -यूं 0जी 0 सी0 के मानक से है जिसमे टीचर की योग्यता उसके विषय में नेट, स्लेट पी-एच ० दी० या एम० फ़िल० हो)ये टीचरनिजी महाविद्यालय में केवाल कागजो पर ही है वास्तविक रूप से शायद ही किसी महाविद्यालय में सभी विषय के सभी अनुमोदित टीचर हो (अनुमोदन-यू जी सी के मानक के अनुरूप योग्यता धरी टीचर को महाविद्यालय में पढ़ाने  की स्वीकृति)एक अनुमोदित टीचर को महाविद्यालय द्वारा ५ हजार से १० हजार मासिक तक वेतन दिया जाता ही जो भी अधिकांश महाविद्यालय के व्दारा पूरे साल भर नहीं दिया जाता .चलो अब एक अच्छे महाविद्यालय का पूरे साल का खर्च देखे अगर किसी महाविद्यालय में कला संकाय की मान्याता ७ विषय से ही और विज्ञान संकाय की मान्यता ५ विषय से ही तो उस महाविद्यालय का टीचर खर्च पूरे साल का खर्च (अगर वेतन पूरे साल मिले तो )७ लाख २० हजार से १४ लाख ४० हजार तक आता ही.कुछ महाविद्यालय में विज्ञान के २ टीचर रखे ही जन्मे अधिकांश महाविद्यालय में दोनों टीचर मानक के अनुरूप नहीं ही .कुल मिलाकर लेखा जोखा इतना  ही आता ही.जो टीचर मानक के अनुरूप नहीं होते  ही उनका  वेतन २ हजार से 5 तक ६ से ८ महीने  तक दिया  जाता ही .कुल मिला कर  कर निजी महाविद्यालय में काम करने वाले  टीचर को सरकारी चपरासी  के बराबर  भी वेतन नहीं दिया जाता ही.
अब निजी महाविद्यालय के अन्य खर्च भी जाने निजी महाविद्यालय में टीचर के अलावा वास्तविक तौर  पर ६ तक का चपरासी  और क्लर्क  का स्टाफ रहता  ही है  जिनको १५०० से ३००० तक मासिक वेतन दिया जाता है .इस प्रकार से अगर सभी खर्चे मिला दिए जाये तो एक महाविद्यालय का वार्षिक वास्तविक खर्च १० लाख से २० लाख तक आता ही .इस प्रकार से अगर एक महाविद्यालय में कला और विज्ञान की संकाय ही तो उपरोक्तआंकड़ों  के आधार  पर उस महाविद्यालय की वार्षिक कमाई ३५ से ५५ लाख तक होती है  .निजी महाविद्यालय में पढ़ने  वाले छात्रों  से विश्वविद्यालय का जो खर्च आता ही वो तो लिया ही जाता है   ही.समय समय पर छात्रों  से निजी महाविद्यालय द्वारा प्रयोगात्मक परीक्षा  के नाम पर ,छमाही परीक्षा के नाम पर अन्य वसूली  भी की जाती ही.अगर महाविद्यालय में बी0 ऐड या बी टी सी ही तब तो इसे महाविद्यालय में कुबेर के खजाने की चाबी ही.तब ये कमाई कई करोड़ में हो जाती ही.
अब निजी महाविद्यालय में पढ़ाई का हाल जाने निजी महाविद्यालय में साल भर तो   छात्र तो दिखाई नहीं ही बस  किसी महाविद्यालय में टीचर को बाबू  का काम  करते देखा जा सकता ही.बस इस विश्वविद्यालय के निजी महाविद्यालय साल भर टीचर और छात्रो  का शोषण  ही और परीक्षा में टूट  के नक़ल करवा  रहे ....

मच्छर भाई


दो मच्छर भाई थे . वे भुन-भुन कोलोनी में अपने माँ-बापू के साथ रहते थे . लगभग हर बच्चे की तरह उनका भी पढाई में मन नहीं लगता था .शाम को जब उनके माँ-बापू काम पर चले जाते थे, दोनों बाकी मच्छर बच्चों के साथ बड़े काले तालाब के काई पार्क में खेलने निकल जाते थे ,भोर फूटने तक खेलते और फिर थके- हारे घर आकर सो जाते . उनके माँ-बापू को इससे कोई दिक्कत नहीं थी क्योंकि अधिकतर मच्छर बच्चे ऐसे ही होते हैं . काम पर जाने के लिए पढ़ा-लिखा होने की जरूरत नहीं होती . पढाई तो वो मच्छर करते हैं जिन्हें वैज्ञानिक बनना होता है .

(वैज्ञानिक मच्छरों को मुख्यतः नई दवाइयों की खोज करनी होती है ताकि मनुष्यों द्वारा प्रयोग करे जाने वाले नए-नए प्रकार के जहरों से उनका बचाव हो सके .)

मच्छर भाई यूं ही खेलते-कूदते बड़े हुए . वे अब काम पर भी जाने लगे . मच्छरों का काम क्या होता है ? खून पीना नहीं, खून चूसकर जमा करना . वैसे ही जैसे मधुमखियाँ करती हैं .  वे शीशियों में खून इकठ्ठा करते हैं और प्यास लगी तो एक-दो घूँट पी भी लेते हैं . अब नदी में पानी भरने गए और प्यास लगी तो घर आकर मटकी से थोड़े ही पियेंगे. वहीँ नदी से पी लेंगे . यही मच्छर भी करते हैं.
मच्छरों की दुनिया में खून का बड़ा महत्त्व होता है-खाना,पानी, currency -सबकुछ वही होता है . इसीलिए सब लोग इसे जमा करते हैं . दोनों मच्छर भाइयों के बापू बहुत ही मेहनती और बहुत ही कंजूस थे . कभी-कभी दिन की शिफ्ट भी कर लेते थे . अतः उनके पास बहुत सारा खून जमा था . ज़ाहिर सी बात है, उनके बाद वह सब दोनों भाइयों में ही बटना था . एक दिन बापू काम पर गए .  बढ़िया जगह देखकर काम शुरू ही करा था कि उनपर एक जोरदार प्रहार हुआ . उनकी एक टांग और एक पर टूट गया . किसी तरह घर पहुंचे और दो घंटे के अंदर-अंदर उनकी आत्मा का पंछी फुर्र हो गया .
इधर माँ रोती-बिलखती चूड़ियाँ तोड़कर सिन्दूर पोंछ रही थी और एक भाई क्रिया-कर्म की तैयारी कर रहा था. उधर दूसरा भाई अपने मन में तरह-तरह की चालें सोच रहा था . वह सारी जायदाद अकेले चाहता था . अपने भाई के साथ बांटना नहीं चाहता था . वह कई दिनों तक सोचता रहा और तैयारी करता रहा . आखिरकार अपने भाई को रास्ते से हटाने की सारी व्यवस्था उसने कर ली.
दोनों भाई अब एकसाथ काम पर जाते थे . एक शाम जब वे एक जगह से दूसरी जगह जा रहे थे,एक भाई जरा थक गया और आराम करने के लिए एक दीवार पर बैठ गया . दूसरा भाई बोला-
"क्या हुआ भाई? रुक क्यूं गए?"
 "थक गया हूँ यार. जरा सांस ले लूं फिर आगे चलेंगे."
"थोडा खून पी लो थकान दूर हो जाएगी."
"नहीं-नहीं.माँ के लिए भी तो बचाना है. वो अब काम पर जो नहीं आती."
"कोई बात नहीं. मेरी एक बोतल से पी लो. ताजा है और इतना स्वादिष्ट की मैंने पेट भरकर पी लिया. मुझे जरूरत नहीं,तुम पी लो."
"अच्छा लाओ दो."
दूसरे मच्छर ने उसे एक बोतल दी . दरअसल उस बोतल में खून नहीं था .  बल्कि लाल मिर्च और शराब का घोल था . उसे पीते ही वह "सी-सी" करता हुआ भागा (उड़ा) और एक कूलर की टंकी में पानी पीने लगा . जब वह मुंडेर पर झुककर पी रहा था, उसके भाई ने उसे पानी में धक्का दे दिया . पर वह डूबकर नहीं मरा . किसी तरह बाहर निकला तो उसे ठण्ड लगने लगी . वह वहीँ पास में जल रहे एक कूड़े के ढेर के पास जाकर बैठ गया . दूसरे भाई ने झटपट आग में बम फ़ेंक दिया. मच्छर बुरी तरह से घायल हो गया. वह हॉस्पिटल में भारती हुआ.
हॉस्पिटल में उसका भाई रोने का नाटक करते हुए आया और अपने भाई के पास गया जो बेहोश था . उसके चेहरे पर विजय की चमक थी . उसकी मेहनत रंग लायी .  सब कुछ प्लान के मुताबिक़ हुआ था . उसने मुस्कुराते हुए धीरे से oxygen -मास्क हटा दिया और उसका भाई मर गया.
इस तरह मच्छर सारी जायदाद का अकेला मालिक बन गया और सारी जिंदगी ऐशो-आराम से रहा.   

मंगलवार, 12 अप्रैल 2011

कुलपति महोदय आखिर अब कौन सा सबूत चाहिए आपको :व्यवस्था सुधार हेतु कुछ सीमेंटेड उपाय

माननीय कुलपति महोदय छत्रपति शाहूजी  महाराज विश्वविद्यालय  कानपुर, क्या आपकी आँखे अब भी नही खुली ये फोटोग्राफ बहुत कुछ कह रहे है इन्हें कृपया समझने की कोशिश करें. 

१. आपका सारा सिस्टम तब तक फेल रहेगा जब तक आप नयी बोतल में पुराणी शराब डालते रहेगें . इस बात में कोई संदेह नही है कि आप प्रयत्न करे है किन्तु जिन लोगो से आप घिरे है न उन लोगो ने इससे पहले वाले वी सी और इससे इससे पहले वाले वी सी के द्वारा शुरू किये गए कार्यों पर पानी डाल दिया था. पहचानिए उनको और बिना किसी मुरौवत के आउट कीजिये 

२. सेल्फ फाइनेंस कालेजो में टीचर्स को ताकत दीजिये उनको वेतन यूनिवर्सिटी के माध्यम से दिलवाइये.

३. सेल्फ फाइनेंस कालेज को मान्यता देते वक्त स्वयं निरीक्षण हेतु जाइए. आपके द्वारा नियुक्त निरीक्षक  पैसा खा के चले आते है.

४. नक़ल मिलने पर केंद्र को डीबार कर दीजिये परीक्षा यूनिवर्सिटी कैम्पस में करवाइए और इसका खर्चा सम्बंधित कालेज से लीजिये. 

५. ईमानदार लोगो शिक्षको छात्रो को ढूंढ ढूंढ कर लाइए और उन्हें प्रमोट कीजिये 

अगर आप बिना अहंभाव लाये इन उपायों  को अपनाते है तो निश्चित ही कानपुर यूनिवर्सिटी के इतिहास में आप शिखरपुरूष होंगे.

रविवार, 10 अप्रैल 2011

छत्रपति शाहू जी महाराज विश्वविद्यालय के कुलपति सहगल जी नाकामी/ढोंग और कालेजो के प्रबंधकों की मनमानी आखिर सच क्या है?

.प्रो सहगल ने २६ मार्च को रूरा स्थित श्रीकृष्ण जनका देवी महाविद्यालय में खुद जाकर हो रही  सामूहिक नक़ल को पकड़ा था.
(कुलपति महोदय चेकिंग के दौरान)
इसी प्रबंधक का एक महाविद्यालय दिल्बल मंगलपुर में है जिसका भी नाम श्री कृष्ण जनका देवी महाविद्यालय है. यहाँ पर नक़ल पकड़ने के चक्कर में (अपुष्ट खबरों की माने तो दस्तों ने पचास हजार रूपये मांगे थे.) उड़नदस्ते की जमकर थप्पड़ों और जूतों से पिटाई की गयी थी.

 प्रो सहगल फिर वहा गए थे. 
एक ही प्रबंध तंत्र के दोनों कालेजों में धड़ल्ले से सामूहिक नक़ल प्रक्रिया चल रही है जिसे सबूत के तौर पर कुलपति ने स्वयं देखा किन्तु आज की तारिख में दोनों महाविद्यालयों में परीक्षाये पूर्ववत चल रही है.यही हाल और भी महाविद्यालयों का है.
ऐसा क्यों आखिर ऐसा क्यों है.क्या कुलपति महोदय बताने का कष्ट करेगे. 
इन कालेजो को डिबार क्यों नही किया जाता अगर नही किया जाता है तो छत्रपति शाहू जी महाराज विश्वविद्यालय के कुलपति सहगल जी नाकामी/ढोंग और कालेजो के प्रबंधकों की मनमानी  या फिर दोनों की सांठ गाँठ तकरीबन स्पष्ट हो जाता  है

शनिवार, 9 अप्रैल 2011

कानपुर ब्लागर्स असोसिएसन की गूँज से सहमा सी एस जे एम् यू विश्वविद्यालय और परीक्षा व्यवस्था में सुधार

सर्वप्रथम मै बधाई देता हूँ प्रो पवन मिश्र जी और राजेश विश्नोई जी को जिन्होंने गुंडों मवालियों की धमकियों की परवाह  किये बिना निर्भीकता के साथ सी एस जी एम् विश्वविद्यालय की परीक्षाओं में होने वाली धांधलियों को उजागर किया.यूनिवर्सिटी की परीक्षाये २५ मार्च से प्रारंभ हुयी थी और २६ मार्च के अख़बार में  नक़ल मुक्त परीक्षा के दावे किये गए थे जबकि वास्तविकता ठीक इसके उलट थी. पहले से ज्यादा नक़ल हो रही थी और भी तमाम विसंगतिया व्याप्त थी. इस मुद्दे को के बी ए ने गंभीरता से लेते हुए इसके विरुद्ध अभियान शुरू किया ३१ मार्च को लिखी पोस्ट पर मीडिया से लेकर प्रशासन में हडकंप मच गया. राजेश जी को लगातार धमकिया व प्रलोभन दिया गया लेकिन वह जरा भी विचलित नही हुए पवन मिश्र जी ने कानपुर में लोगो को गोलबंद करके (इस क्रम में वी डी पाण्डेय का नाम उल्लेखनीय है ) लड़ाई  को और धारदार बनाया. नतीजा सामने आ गया. विश्वविद्यालय सही ट्रैक  पर आने लगा.उड़नदस्तो की वसूली सार्वजनिक होने से इन दस्तों की पिटाई  होने लगी  इस चक्कर में उड़नदस्ते में शामिल वी पी सिंह ,डॉ आलोक डॉ अनिल कुमार की थप्पड़ो से पिटाई की गयी.(देखें अमर उजाला आज दैनिक जागरण ९ अप्रैल ). कुलपति के बीचबचाव के बाद स्थिति सम्भली.अब इस ब्लॉग का दूसरा असर देखिये वी जी एम् महाविद्यालय दिबियापुर जिन छात्रो को जांच पत्र नही दिए गए थे उनसे कहा गया था की कापी नंबर कागज पर लिख ले,उन छात्रो को ७ अप्रिल को जांच पत्र दे दिए गए.
भ्रष्टाचार के विरुद्ध युद्ध जारी रहेगा और जीत सत्य की होगी
कानपुर ब्लागर्स असोसिएसन के इस जज्बे और हिम्मत को सलाम 

गुरुवार, 7 अप्रैल 2011

छत्रपति शाहूजी महाराज विश्वविद्यालय के कुलपति का टिटिहरी प्रयास बनाम उड़नदस्तों और प्रबंधको का अवैध सम्बन्ध


दिनांक ३१ /३/११ तथा ३/४/११ को छपे पोस्ट में छत्रपति  शाहूजी महाराज विश्वविद्यालय में होने वाली    नक़ल और उसके रोकथाम हेतु कुलपति द्वारा किये गए  टिटिहरी प्रयासों का विवेचन राजेश
विश्नोई द्वाराकिया गया था जिसमे प्रबुद्ध ब्लोग्गेर्स ने भी भाग लिया था. इन पोस्टो पर आधारित    खबर कल दिनांक ७/४/११ को दैनिक जागरण में पृष्ठ तीन पर छपी जिसमे कूटा के एम् पी सिंह व बी डी पाण्डेय ने त्वरित कार्यवाही करते हुए जांच एजेंसी बैठाने की मांग की. कल राजेश जी का ई मेल मेरे पास आया जिसमे कानपुर देहात में हो रहे एकेडेमिक कुचालो का कच्चा चिटठा बयान था.

मसौदा कुछ इस तरह है 

१ कुलपति सहगल ने कानपुर देहात के डॉ राम मनोहर लोहिया महाविद्यालय जुरिया, में जाकर खुद नक़ल पकड़ी थी.
   २.  कानपुर देहात के महाविद्यालयों में उड़नदस्ते  वसूली के लिए घूमते  है . रूपये लेकर नक़ल की इजाजत देते है . सबूत के तौर पर कापियों के उत्तरों का मिलान कर लिया जाय. 

३.मेरा अनुमोदन इसी विश्वविद्यालय में है. मेरा वेतन ७००० है जो की बैंक द्वारा मिलती है. ऐसा ही सभी अध्यापकों के साथ है. 

४.वी जी एम् महाविद्यालय दिबियापुर में व्यक्तिगत छात्रों को बड़ी मात्र में जांच पात्र ही नही दिए गए. जो छात्र एक विषय से परीक्षा दे रहे थे उनकी परीक्षा बिना जांच पात्र के संपन्न हो गयी इनसे कह दिया गया की अपना कापी नंबर कागज पर लिख ले . कुछ के प्रवेश पात्र हमारे पास है.

५.कानपुर देहात के सभी निजी महाविद्यालयों में अभी तक जम के नक़ल हो रही है. यहाँ तक की श्यामपट्ट भी साईंस के पेपर में चलाये गए.सब प्रबंधक के कहने पर. कापी मिलान किया जा सकता है.

६.जहा नक़ल बोल के कराई जाती है वहा नक़ल शुरू   या फिर बाद में कराई जाती है. शुरू और बाद के मिलान कर ले.

७. सभी  महाविद्यालय  में संस्थागत और व्यक्तिगत छात्र नक़ल कर रहे है.

८.परीक्षा केंद्र को मॉस कापींग से बचाने के लिए कुछ निजी महाविद्यालय गेस पेपर से प्रश्न काट कर बिगड़े क्रम में पर्ची बाँट कर नक़ल करा रहे है

9. निजी महाविद्यालयों में काफी टीचर सरकारी नौकरी कर रहे है.
 इस तथ्य को पूरी तरह से बेनकाब करने के लिए राजेश जी को अपनी नौकरी से हाथ धोना पद सकता है.

मंगलवार, 5 अप्रैल 2011

दे घुमा के:भ्रष्टाचार के खिलाफ एकजुट हो


एक सबसे बड़े गुनाह की कोई सजा नहीं है . भ्रस्टाचार एक ऐसा  गुनाह है जिसमे देश की अदालतों में करीब १७ हजार से ज्यादा मामले लंबित पड़े है . एन मामलो के हल होने की रफ्तार इतनी धीमी है की साल दो साल में एक हजार भ्रष्टलोगो को भी सजा नहीं मिल पति .एन .सी .आर .बी . की तजा रिपोर्ट ये बताती है की आई पीसी की धाराओ के तहत लगभग २९११७ लोगो पर मामले चल रहे है .वर्ष २००९ में इनमे से करीब ३२२८ लोगो के मामले की सुनवाई तो हुयी लेकिन मात्र ९६३ ही दोषी करार दिए गये . एस समय अकेले सी .बी .आई . के पास ९९१० भ्रस्ताचार के मामले लंबित पड़े है .एन मामलो में सबसे ज्यादा १७५९ दिल्ली और १०६२ महारास्ट में है एन आकड़ो का ये मतलब नहीं क़ि अन्य प्रदेश पाकसाफ है बल्कि वहाँ भ्रस्टाचार इतना है क़ि भ्रस्टाचार के मुकद्दमे भी दर्ज नहीं हो पाते .

भ्रस्टाचार में अंकुश लगाने के लिए ये जरुरी ही जाता है क़ि हम भ्रस्टाचार निरोधक कानून १९८८ को बदले क्योकि एस कानून के प्रावधान के तहत मात्र पाँच वर्ष क़ि सजा का प्रावधान है पर इसमे मुजरिम की सम्पति को जब्त करने का कोई प्रावधान नहीं . एक इंटरनेश्नल रिपोर्ट का कहना है कि भारत में सरकारी महकमो में कम करने के लिए कम से कम ५० फीसदी लोगो को अपना वाजिब काम निकलने के लिए अधिकारियो को घूस देनी पडती है .एस कारन भ्रटाचार की सूचि में भारत ८७ वे स्थान पर है पि. आर. सी. का सर्वे यहा बताता है कि भारत नंबर ४ पर एशिया प्रशांत के सबसे भ्रष्ट १६ देशो में है .लगभग ७० लाख करोड़ रूपये जमा है भारत का स्विस बैंक के खातो में ये एस बात का गवाह है कि हमारे देश के तथाकथित बड़े लोग कितने भ्रष्ट है. आज हमें जरूरत है गाँधीवाद कि सच्ची परम्परा के अनरूप आचरण करने की. क्रिकेट की तरह एकजूटता के साथ यह वक्त हम सब के उठ खड़े होने का है .भ्रस्टाचार के खिलाफ . अन्ना हजारे की  अपील पर ध्यान  दीजिए यहाँ वक्त आपके आत्मबलिदान का है . प्रधानमन्त्री से अनुरोध  है कि जन लोकपाल विधेयक को पारित कराये नहीं तो अगले चुनाव में हम मजबूरन उनकी पार्टी को वोट नहीं देगे .शांत रहा कर अपनी बात कहे . एक बार फिर भ्रस्टाचार से स्वतंत्र होने के लिए इस अगले स्वतंत्रता आन्दोलन में जेल जाने का साहस जुटाए. आप हम सब जिस जुनून की हद से क्रिकेट को प्यार करते है उसी जुनून से भ्रस्टाचार को ख़त्म करने की मुहिम में अन्ना हजारे की टीम का साथ दीजिए .भ्रस्टाचार को ख़त्म करके भ्रष्ट मुक्त समाज का विश्वकप जीतिये दीजिये
दे घुमा के .

रविवार, 3 अप्रैल 2011

क्या हुआ सहगल तेरा वादा:धज्जिया उड़ गयी

छत्रपति शाहू जी महाराज विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो हर्ष कुमार सहगल ने २५ मार्च से चल रही विश्वविद्यालय की स्नातक और परास्नातक की परीक्षायो को नक़ल विहीन कराने का दावा किया है जो अभी तक एकदम से खोखला साबित हुआ है और आगे की परीक्षायो में भी खोखला ही साबित होगा.दरअसल प्रो सहगल की मनसा नक़ल को रोकना तो है ही नहीं बल्कि विश्वविद्यालय के कर्मचारियों और स्ववित्तपोषित कॉलेज की आमदनी में इजाफा करना है.यह बात इस रूप में साबित की जाती है पिछले सत्र तक व्यक्तिगत और संस्थागत परीक्षाये अलग अलग समय पर होती थी पर इस वर्ष व्यक्तिगत और संस्थागत परीक्षाये साथ साथ हो रही है.इस सत्र में बड़ी संख्या में व्यक्तिगत परीक्षा के सेंटर स्ववित्तपोषित महाविद्यालय बनाए गए है.स्ववित्तपोषित महाविद्यालय को व्यक्तिगत परीक्षा का सेंटर मिलने से इन स्ववित्तपोषित महाविद्यालय की कमाई में इजाफा हुआ है.इन स्ववित्तपोषित महाविद्यालय को व्यक्तिगत परीक्षा का सेंटर मिलने से इन महाविद्यालय को विश्वविद्यालय ने कुबेर के खजाने की चाभी दे दी है.जितना कमा सको उतना कमा लो.आज अधिकांश स्ववित्तपोषित महाविद्यालय व्यक्तिगत परीक्षा के परीक्षार्थियों से परीक्षा में नक़ल के नाम पर ५०० रूपया तक प्रति पेपर के हिसाब तक बसूल कर रहे है . हद तो तब हो गयी जब सहगल परीक्षा में बनाए हुए नियम खुद ही भूल गए.बीतो दिनों में सहगल ने खुद कानपुर देहात के स्ववित्तपोषित महाविद्यालय में चल रही परीक्षा का उड़न दस्ते के रूप में खुद दौरा किया जिसमे आप ने कुछ महाविद्यालय में चल रही नक़ल को खुद प्रयत्क्ष रूप से अपनी आँखों से देखा.शायद आपको विदित हो की प्रो सहगल ने इस साल परीक्षा में नक़ल को रोकने को लिए छात्र ,टीचर प्रिंसिपल और प्रबंधक चारो पर अर्थ दंड का प्रावधान किया है पर प्रो सहगल ने जिन महाविद्यालय में खुद नक़ल पकड़ी वहा अभी तक एसा कुछ भी नहीं किया । आपने जो किया वो हमेशा की भांति शायाद वाही पुरानी कार्यवाही थी जो विश्वविद्यालय कभी कभी जब ईमानदारी से काम करता है तब कभी कभी इसी स्थिति के लिए यही कार्यवाही करता है.कुल मिला कर आपने अपने द्वारा बनाए हुए नियमो का ५० प्रतिशत भी पालन नहीं किया.इस साल छात्रपति साहू जी महाराज विश्वविद्यालय ने गत वर्षो के नक़ल के सारे रिकार्ड तोड़ के रख दिए है.आज स्ववित्त पोषित महाविद्यालय में छात्रो एवं उनके अभिभावकों को लुभाने के लिए नक़ल ही होड़ लगी हुई हुयी है.आज स्ववित्तपोषित महाविद्यालय इस प्रतियोगिता में है की इस बार परीक्षा में कौन कितनी नक़ल करवा रहा है .स्ववित्तपोषित महाविद्यालय में नक़ल के पीछे प्रबंधको की यह मंशा होती की अगले सत्र में इस नक़ल का फ़ायदा उनके महाविद्यालय में छात्र संख्या को बढाएगा और यह बात १०० प्रतिशत सत्य भी है.आज जिस महाविद्यालय में छात्र संख्या अधिक है उसका कारण पिछले वर्ष हुयी उस महाविद्यालय में जम के नक़ल का ही नतीजा ही है.इन महाविद्यालय में छात्र सैकड़ो किलोमीटर दूर से प्रवेश ले कर चले जाते है यानी पूरी साल घर पर रहते है परीक्षा के समय पेपरदेने के लिए आ जाते है.पिछले वर्ष जिन महाविद्यालय में नक़ल परीक्षा के आखिरी क्षणों में होती थी आज वे महाविद्यालय के प्रबंधको को जब मालूम पड़ता की आज उड़न दस्ता का दौरा उनके क्षेत्र में नहीं है तो ये महाविद्यालय के प्रबंधक उसका फयादा उठा के पेपर शुरू होते ही नक़ल करवाना प्रारंभ कर देते है और पूरे ३ घंटो तक नक़ल करवाते है जिसका कारण प्रो सहगल के बनाए हुए नक़ल विरोधी कानून है.आज इसविश्वविद्यालय के वित्तविहीन महाविद्यालय भी नक़ल कराने में पीछे नहीं है.इस वर्ष हो रही व्यक्तिगत और संस्थागत परीक्षा के साथ साथ होने से इन महाविद्यालय ने भी दोनों प्रकार के परीक्षार्थियों को खुली छूट दे राखी है.अगर स्ववित्त पोषित महाविद्यालय की बात की जाए तो इस विश्वविद्यालय में स्ववित्तपोषित महाविद्यालय का जन्म होता ही है इन्ही सब लिए,जम के छात्रो को नक़ल करवायो .अगर आप को लिखना आता है तो आप छत्रपति शाहू जी महाराज विश्वविद्यालय से बिना पड़े कोई भी डीग्री प्राप्त कर सकते है.इन स्ववित्तपोषित महाविद्यालय में शायद ही किसी किसी महाविद्यालय में ही पठाई होती है और जिन में होती भी है तो वो भी बिना मानक के टीचरों के द्वारा .बल्कि मेरा यहाँ तक मानना है की इस विश्वविद्यालय का कोई भी स्ववित्तपोषित महाविद्यालय के मानक अपने आप में पूर्ण नहीं है.इस विश्वविद्यालय के स्ववित्तपोषित महाविद्यालय के मानक केवल कागजो पर ही पूरे होते है.आज इस विश्वविद्यालय से सम्बध्द स्ववित्तपोषित महाविद्यालय में इस प्रकार के लोग भी केवल कागजो पर पडा रहे है जो सरकारी नौकरी कर रहे है.जिनमे अधिकंश्ता टीचर सरकारी प्राथमिक विद्यालय में टीचर है या फिर इंटर कॉलेज में सरकारी टीचर है।वास्तविक तौर पर किसी भी स्ववित्तपोषित महाविद्यालय के मानक पूर्ण नहीं है.स्ववित्तपोषित महाविद्यालय के प्रबंधको ने शिक्षा को एक टैक्स फ्री व्यवसाय बना रखा है.इस प्रकार के प्रबंधको का उद्देश्य केवल एक ही होता है और वो है नक़ल.अगर ये कॉलेज नक़ल नहीं करवाते है तो इनकी दूकान का चलना मुश्किल हो जाता है.अब ज़रा प्रो सहगल के द्वारा गठित नक़ल विहीन परीक्षा कराने वाले उड़न दस्तो का रेट भी जान ले तो सुनिए जनाब यदि उड़न दस्ता किसी स्ववित्तपोषित महाविद्यालय में जाता है और नक़ल नहीं मिलाती है तब इनका रेट रहता ६००० रूपये और अगर इनको नक़ल महाविद्यालय में मिलाती है तब इनका रेट अलग होता.अब ज़रा सहगल के दिमाग की बात भी कर ली जाये .सहगल ने जो नक़ल को रोकने के लिए जो अपने कानून बना रखे है उन कानूनों में एक कानून यह है की अगर छात्र नक़ल करते हुए पकड़ा जाता है तो उसे ५००० रुपये का जुरमाना भरना पडेगा.अब ज़रा छात्रो की हकीकत से भी वाकिफ करवाता हु, इस विश्वविद्यालय के अधिकांश महाविद्यालय या तो ग्रामीण क्षेत्रो में है या फिर कस्वो में.ग्रामीण क्षेत्रो के स्ववित्तपोषित महाविद्यालय में पड़ने वाले छात्रो के अभिभावक पूरे साल में महाविद्यालय की फीस तो दे नहीं पते है जो १५०० से ४००० रुपये तक होती तो वे ५००० रुपये की जुर्वाना की रकम कहा से देगे.अब स्ववित्तपोषित महाविद्यालय में काम करने वाले टीचर की भी हकीकत से वाकिफ हो ले .इन स्ववित्तपोषित महाविद्यालय में टीचर केवल कागजो में ही होते है और जो कोई स्ववित्त पोषित महाविद्यालय टीचर रखता भी है तो उसकी मासिक पेमेंट २००० से १०००० तक होती है और वो भी पूरे साल नहीं मिलती है .इस पेमेंट से टीचर का महीने का खर्च ही बहुत मुश्किल से चल पाटा है तो वो सहगल के नक़ल के नियम का अर्थ दंड कहाँ से भरेगा.शायद प्रो सहगल ने इसके लिए भी विश्वविद्यालय में कोई नया कोष बना रखा होगा जिसकी जानकारी देना आपने उचित नहीं समझा वो शायद इसे टीचर और परिक्षार्थियो को नक़ल में पकडे जाने पर मदद इसी कोष से करेगे जो अभी तक आप ने शायद गुप्त रखा है .अंत में  एक बात कहना चाहता हु सहगल कितना भी प्रयास कर ले नक़ल नहीं रोक पायेगे जब तक की स्ववित्तपोषित महाविद्यालय में टीचर की व्यवस्था ठीक प्रकार से नहीं होती है और उनका पेमेंट विश्वविधालय से नहीं किया जाता है तथा इन स्ववित्तपोषित महाविद्यालय के टीचर पर इनके प्रबंधको का दबाब ख़त्म नहीं होता है . इस प्रकार निष्कर्ष के रूप में कह सकते है की हर्ष कुमार सहगल के नक़ल विहीन परीक्षा कराने के सरे दावे अभी तक खोखले रहे है और शायद आगे भी खोखले ही साबित होगे .