से आ रही थी
कुछ दूर चंद लोगों की
भीड़ लगी थी
लोग घेर के खड़े थे
गिरी हुई बाइक को
कुछ सहारा दे रहे थे
दो नौजवानों कोदोनों ही लड़के
गुस्सा रहे थे
अपशब्दों की धाराए
बहा रहे थे
"किसे सम्मान दे
रहे हैं " सोचा मैंने
और जरा पास गयी
तो देखा मैंने
अगले पहिये के नीचे
दबा हुआ पड़ा था
काला, आवारा
मरियल-सा कुत्ता
सांस बहुत धीरे से
चल रही थी
कराहने की दम भी उसमे
बची नहीं थी
जीभ लटकी दिख रही थी
आँख आधी मुंद गयी थी
कंकाल-से शरीर से
रुधिर धारा बह रही थी
भीड़ ने हमदर्दी से
कुसूर उसपे मढ़ दिया
"बीच राह चलता था
बेचारा मर गया "
रुकी नहीं ज्यादा देर
आगे बढ़ गई मैं
भीड़ में फिर क्या हुआ
जान यह न सकी मैं
थोड़े ही दिनों बाद
निकली जब उसी जगह से
दुर्गन्ध आई भयानक
वहीँ एक कोने से
कूड़े के साथ पड़ी थी
लाश उस निरीह की
आँखों की जगह गड्ढे थे
पूँछ तक अकड़ गयी थी
सिहरी इक बार मैं
पर सदैव की तरह
रुकी नहीं ज्यादा देर
आगे बढ़ गयी मैं
pathetic
जवाब देंहटाएंyahi samvedna hamari manv ke sath bhi hai ...
जवाब देंहटाएंबेहद करुण वर्णन
जवाब देंहटाएंsamvedana ko sundar tarike se panktibaddh kiya
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