एक दिन स्वप्न में मौत से मै मिला, जिंदगी की वसीयत पता चल गयी !
जिंदगी-मौत का भेद मन से मिटा, मौत की जब नसीहत पता चल गयी !!
मौत कहने लगी- हे मनुज आज सुन, सोचता है कि तू जिंदगी है बड़ी !
हूँ नहीं मैं अकेली दुखद कष्ट-जड़, जिंदगी भी मेरे संग में है जुड़ी !!
जिंदगी के लिए तू भटकता रहा, जिंदगी के लिए तूने साधन चुने !
हैं वही आज कारण तेरी मौत के, ढूढने में जिन्हें तेरे तन-मन घुने !!
है नहीं जल प्रदूषण रहित झील अब, सांस के हेतु है प्राणवायु नहीं !
भूमि भी है नहीं अन्न के हेतु अब , आदमी के लिए आदमी है नहीं !!
बुलबुला जिंदगी का तेरी ऐ मनुज , आज परमाणुओं पर है बैठा हुआ !
तेरे द्वारा ही निर्मित ये खंजर तेरा , आज तेरी ही आँतों में पैठा हुआ !!
भाई के भी लिए मन में नफरत भरी, आज पैसे से ही बस तुझे प्यार है !!
आदमी-आदमी से घृणा कर रहा , क्या यही है तुझे जिंदगी ने दिया ?
नहीं मारती हूँ तुझे ऐ मनुज, विष का प्याला है तूने स्वयं पी लिया !!
हे मनुज तू अगर ऐसे चलता रहा, मेड़ जीवन कि तेरे खिसक जाएगी !
फिर नहीं दोष दे पायेगा तू मुझे, जिंदगी खुद-ब-खुद मौत बन जाएगी !!
जिंदगी खुद-ब-खुद मौत बन जाएगी........................................................
जान से भी अधिक चाहता था जिसे , मारने को उसे आज तैयार है !
जवाब देंहटाएंभाई के भी लिए मन में नफरत भरी, आज पैसे से ही बस तुझे प्यार है !!
afsosjanak hai
"हे मनुज तू अगर ऐसे चलता रहा, मेड़ जीवन कि तेरे खिसक जाएगी !
जवाब देंहटाएंफिर नहीं दोष दे पायेगा तू मुझे, जिंदगी खुद-ब-खुद मौत बन जाएगी !!"
सही कहा आपने .पर लोग ध्यान कहाँ दे पते हैं ???