धूप
गोधूली की धूप
मटमैली सी
पेड़ों को आगोश में लिए
फुनगियों फुनगियों पर पसर गयी
आदमी
गुणा, भाग जोड़ घटाने में
बीत गयी ज़िंदगी पूरी
अब तो आदमी
भाग दे काटता है
आदमी को आदमी से
तितली सी यादें
तितली सी उड़ती यादें
पौधों, फूलों पत्तियों पर
पंख फैलाए मचलती मडराती
मेरे पास आती
हवा के हलके झोंके से
फिर जाने कहाँ उड़ जाती
रात
सूरज के डूबने से
रात नहीं होती
दिल का चिराग
बुझता है
रात आती है
गोधूली की धूप
मटमैली सी
पेड़ों को आगोश में लिए
फुनगियों फुनगियों पर पसर गयी
आदमी
गुणा, भाग जोड़ घटाने में
बीत गयी ज़िंदगी पूरी
अब तो आदमी
भाग दे काटता है
आदमी को आदमी से
तितली सी यादें
तितली सी उड़ती यादें
पौधों, फूलों पत्तियों पर
पंख फैलाए मचलती मडराती
मेरे पास आती
हवा के हलके झोंके से
फिर जाने कहाँ उड़ जाती
रात
सूरज के डूबने से
रात नहीं होती
दिल का चिराग
बुझता है
रात आती है
इस ब्लाग को आदरणीय गुरु जी के आशीर्वाद के रूप में बहुत सुन्दर क्षणिकायें मिली।
जवाब देंहटाएंबस आप गुरुजनों का यूँ ही हमे आशीष मिलता रहे ।
सभी क्षणिकायें एक से बढ कर एक। धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंगुणा, भाग जोड़ घटाने में
जवाब देंहटाएंबीत गयी ज़िंदगी पूरी
अब तो आदमी
भाग दे काटता है
आदमी को आदमी से
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बहुत ही सुंदर . क्या बात है , जितनी सराहना की जाए कम है
बहुत सुन्दर छुटकी कवितायें। प्यारी सी।
जवाब देंहटाएंEyhi to jindagi hai, bahut khub
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचनाएं है, सब एक से बढ कर एक। गुरु जी को हमारा प्रणाम कहिएगा।
जवाब देंहटाएंगुरु जी कि रचनाये देख कर लगा आप उनके वास्तविक उत्तराधिकारी है
जवाब देंहटाएंएक अच्छे समाजशास्त्री एक अच्छे कवि एक अच्छे इंसान हमारे गुरूजी कितने महान बहुत सत्य कविता
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