गुरुवार, 10 मार्च 2011

...बसंत बहुत चुभा तभी










एक बार तुमने पूछा था
क्या बसंत देखा है कही
तुमसे मिलकर खेतो के रस्ते
एक बार हस्ते हस्ते
घर को आयी थी मै 
बसंत दिखा था तभी
तुमसे बिछुड़ के पगडंडियों  से
न जाने कहाँ   
चली थी मै
कटीली झाड़ी ने दामन थामा था मेरा 
बसंत  बहुत चुभा तभी 

11 टिप्‍पणियां:

  1. कटीली झाड़ी ने दामन थामा था मेरा
    बसंत बहुत चुभा तभी
    सुन्दर अभिव्यक्ति ,बधाई

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  2. तुमसे बिछुड़ के पगडंडियों से
    न जाने कहाँ
    चली थी मै
    कटीली झाड़ी ने दामन थामा था मेरा
    बसंत बहुत चुभा तभी
    .
    वाह पवन जी कमल का लिखते हैं

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  3. एक बार हस्ते हस्ते
    घर को आयी थी मै
    .
    लगता है भाभी जी ने लिखा है. आप से भी एक क़दम आगे.
    .
    अब तो चाए पक्की है ना

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  4. अच्छा प्रयास है .
    मासूम साहब जब आइयेगा तो इमरती लेते आइयेगा ।

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  5. सब ऋतुओ से न्यारा बसंत . सारे जग का प्यारा बसंत

    कोमल पत्तों से सज आता ,फूलों का निज हार सजाता

    प्रेमी जन के मन को भाता कण कण में मधु रस भर जाता

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  6. मासूम भैया
    आपने मेरी कविता को पवन जी समझा
    मेरे लिए इससे बड़ा कम्प्लिमेंट और क्या हो सकता है
    चाय तो पक्की है ही
    साथ में सुजानगंज का एटम बम्म भी
    स्पेशल मंगवा कर रख लेगे

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  7. पलाश जी मुंबई की तो अफलातून मशहूर है, जौनपुर से आया तो अवश्य लूँगा.
    .
    किरण @ भाभी जी चाए के बाद फ़ौरन एटम बम्म से सत्कार. बाप रे लगता है कोई बहुत बड़ी गलती हो गयी है. हा हा हा

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  8. बड़े भाई आशीष राय जी ने कहा है (उनकी टिप्पणी पेस्ट नही हो रही थी )
    "बसंत में परमाणु बम और चाय से काम थोड़े चलेगा , गुझिया और ठंडाई भी होनी चहिये ",

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  9. मीनू तो तैयार हो गया , अब दिन तारीख और जगह भी जल्दी तय कर ली जाय ।
    अर मासूम जी बस खाली हाथ न आइयेगा , चाहे बम्बई से आये या जौनपुर से........

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