श्रद्धेय गणेश शंकर यिद्यार्थी जी की स्मृति में ......
आत्मवादी विचारक उस रहस्यमयी साधना की वकालत करतें हैं जो मानव को जीवन -मरण के चक्र से मुक्ति दे सके। अनात्मवादी विचारक मुक्ति ,निर्माण ,मोक्ष ,कैवल्य या स्वर्गारोहण जैसी मानसिक स्थितियों को एक निन्द्कीय आभाष के अतिरिक्त और कोई महत्त्व नहीं देना चाहते। पर इतना तो वे भी मानते हैं कि जन्म और म्रत्यु के बीच का
आत्मवादी विचारक उस रहस्यमयी साधना की वकालत करतें हैं जो मानव को जीवन -मरण के चक्र से मुक्ति दे सके। अनात्मवादी विचारक मुक्ति ,निर्माण ,मोक्ष ,कैवल्य या स्वर्गारोहण जैसी मानसिक स्थितियों को एक निन्द्कीय आभाष के अतिरिक्त और कोई महत्त्व नहीं देना चाहते। पर इतना तो वे भी मानते हैं कि जन्म और म्रत्यु के बीच का
देह यापन काल सामाजिक सेवा में अर्पित कर देने से अस्तित्व की सार्थकता उपलब्ध की जा सकती है। दोनों ही विचारधाराओं के महान चिन्तक जिस केन्द्र बिन्दु को जीवन सार्थकता का अनिवार्य तत्व मानते हैं वह है दीर्घकालीन सभ्यता में अर्जित स्थायी जीवन मूल्यों के लिए अथक प्रयास और स्वैच्क्षिक उत्सर्ग। इस कसौटी पर कानपुर-नगर में सामाजिक सेवा में रत बहुसंख्यक महान पुरुषों में प्रात : स्मरणीय श्री गणेश शंकर विद्यार्थी जी शीर्षस्थ स्थान पर बैठने के सच्चे हकदार हैं।पत्रकारिता के माध्यम से उन्होंने मानव मूल्यों की जो पहचान जन मानस पर बनायी वह उनके काल में तो सार्थक थी ही पर उसकी सार्थकता आज के सन्दर्भ में और अधिक महत्त्व पूर्ण हो गयी है। और सच पूंछो तो न केवल आज बल्कि आने वाले कल और आगत शताब्दियों में भी जैसे -जैसे मानव की भूमंडलीय पहचान स्थापित होगी वैसे -वैसे उसकी सार्थकता और अधिक विस्तार पाती रहेगी।गणेश शंकर जी का जीवन मानव भविष्य के उस स्वर्णिम विकास के लिये नींव की पत्थर का काम कर सकेगा जिसका स्वप्न महर्षि अरविन्द ,गुरुदेव रवीन्द्रनाथ और महात्मा गान्धी नें देखा था।किसी भी देश का अतीत अपनें में विरोधी संभ्भावनायें छिपाये रहता है। उसमें काफी कुछ चमकदार और टिकाऊ होता है पर चमकदार परतों के बीच में बहुत कुछ मलिन और उपेक्षणीय भी छिपा रहता है।मध्य कालीन इतिहास में धर्म और मजहब के नाम पर कुछ ऐसे धब्बे हिन्दुस्तान की सामासिक जीवन पद्धति पर छोड़ रखे हैं जिन्हें हम शब्दों की किसी भी कलाबाजी से मिटा पानें में असमर्थ रहें हैं। राष्ट्र पिता नें अंग्रेजों से स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ते हुए यह कभी नहीं कहा था कि हमें अंग्रेज जाति से घ्रणा करनी चाहिये। वस्तुत : घ्रणा की कुत्सित मनों लहर उनके मानस जगत से सदैव के लिये विलुप्त हो गयी थी ।श्रद्धेय गणेश शंकर जी भी अतीत को भूलकर उसी भारत निर्माण का स्वप्न देखते थे जिसका आधार गान्धी ,नेहरु ,मौलाना आजाद और रफ़ी अहमद किदवई रख रहे थे। भारत नें बहुत बड़े बड़े बलिदान देखे हैं, इन वलिदानों ने न जाने कितने महाकब्यों को जन्म दिया है पर मेरी समझ में श्रद्धेय गणेश शंकर विद्यार्थी जी का बलिदान साम्प्रदायिक सौहाद्र के लिये किये गये वलिदान की सबसे प्रेरक और अनूठी मिसाल है।म्रत्यु तो एक अमिट सत्य है पर गणेश शंकर जी नें म्रत्त्यु को वरण करके म्रत्त्यु को पछाड़ दिया। म्रत्यु भले ही हर जगह अपनी विजय पताका फहराती हो पर उन्होंने मौत की छाती पर आदर्श की अमरता का विजय स्तम्भ खड़ा कर दिया।उनके जीवन की घटनाओं पर विद्वानों ने अपनी प्रेरक व्याख्याएं प्रस्तुत की हैं और पत्रकार के रूप में उनकी महानता को वस्तुपरक विश्लेषण के द्वारा प्रस्तुत किया है।मैं "माटी "का सम्पादक श्रद्धेय गणेश शंकर जी के जीवन की महानता को विशेषणों से घेर कर संकुचित नहीं करना चाहता। उनके बलिदान नें उन्हें जिस सीढ़ी पर खड़ा कर दिया उस सीढ़ी को भाषा के विशेषण छू भी नहीं सकते।अपनें जीवन में तो वे महान थे ही अपनी म्रत्यु में उन्होंने महानता को भी एक नये पायदान पर पहुचा दिया । धन्य है कानपुर नगर की यह धरती जिसे ऐसे महान मानव की कर्म भूमि होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। आइये हम सब इस अमर शहीद के बौने संस्करण बननें के लिये प्रभु से प्रार्थना करें ।।
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