बुधवार, 14 नवंबर 2012

"प्रताप" की सौवी वर्षगांठ पर केबीए की ओर से समस्त ब्लागर्स को बधाई

9 नवम्बर 2012 से "प्रताप" की 100वी जयंती का आगाज हुआ है. इस अवसर पर कानपुर ब्लागर्स असोसिएशन पाठको को हार्दिक बधाई प्रेषित करता है. 9 नवंबर, 1913 को गणेशशंकर विद्यार्थी जी ने  हिंदी साप्ताहिक पत्र  "प्रताप" के नाम से निकाला और प्रकाशन के 7 वर्ष बाद 1920 ई. में विद्यार्थी जी ने उसे दैनिक कर दिया. "प्रताप" किसानों और मजदूरों का हिमायती पत्र रहा. उसमें देशी राज्यों की प्रजा के कष्टों पर विशेष सतर्क रहते थे. "चिट्ठी पत्री" स्तंभ "प्रताप" की निजी विशेषता थी. विद्यार्थी जो स्वयं तो बड़े पत्रकार थे ही, उन्होंने कितने ही नवयुवकों को पत्रकार, लेखक और कवि बनने की प्रेरणा तथा ट्रेनिंग दी. भगत सिह 'प्रताप" मे "बलवंत सिह के नाम से लिखते थे. विद्यार्थी जी "प्रताप" में सुरुचि और भाषा की सरलता पर विशेष ध्यान देते थे. सरल, मुहावरेदार और लचीलापन लिए  एक नई शैली का इन्होंने प्रवर्तन किया.
आज जब प्रेस की विश्वसनीयता पर इतने सवाल उठाये  रहे है, कहा जा रहा है कि मीडिया बिक गया है मीडिया मे चल रही खबरे पूंजीपतियो द्वारा बनायी गयी होती है इत्यादि. ऐसे मे "प्रताप" की बहुत याद आती है. यह सच है कि आज जितने भी अखबार निकल रहे है वह सब बडे बडे पूंजीपतियो के है इन पूजीपतियो के हित और सम्बन्ध राजनेताओ से लेकर कार्पोरेट जगत से जुडे है. ऐसे मे प्रश्न उठना लाजिमी है क़ि खबरे बनायी गयी है या वास्तविक है. आप अनुमान नही लगा सकते है आज का पत्रकार पुलिस से भी ज्यादा खतरनाक हो गया है मैने एक दिन देखा कि चौराहे पर पुलिसवाले ने एक ट्रक से वसूली की तब तक एक पत्रकार वहा पहुच गया या और उसने उस पुलिसवाले से वसूली कर ली. अब पूंजीपति समूहो  के प्रतिबद्ध रवैये और स्थानीय पत्रकारो के वसूलाना अन्दाज ने पत्रिकारिता की दुर्गति कर दी है. ऐसे मे "प्रताप" की बहुत याद आती है.  
एक बार विद्यार्थी जी के सम्मान में ग्वालियर स्टेट में महाराज सिंधिया ने रात्रि भोज का आयोजन किया और उपहारस्वरूप उन्हें एक शॉल भेंट की. विद्यार्थी जी इस बात को समझ गए कि महाराज यह शॉल उपहार स्वरूप नहीं, बल्कि सुविधा-शुल्क के तौर पर दे रहे हैं, ताकि प्रताप में कभी भी ग्वालियर स्टेट के विरुद्ध कोई टिप्पणी प्रकाशित न हो. इच्छा ना होते हुए भी विद्यार्थी जी ने महाराज से शॉल ले लिया, ताकि उनका अपमान न हो, किंतु उन्होंने इस शॉल को अपने जीवन में एक बार भी प्रयोग न किया. वह बक्से में पड़े-पड़े ही बेकार हो गया. 
आज इस किसिम का उदाहरण दुर्लभ है. वर्तमान समय मे इंटरनेट ने एक विकल्प दिया है जहा बिना कोई अधिक पूंजी निवेश के सच बात कही जा सकती है. लिखी जा सकती है और पढी जा सकती है. विद्यार्थी जी की परम्परा को आगे बढाया जा सकना मुमकिन है.यह बताते हुये प्रसन्नता हो रही है कि कानपुर ब्लागर्स असोसिएशन नकल माफियाओ के विरुद्ध सफलतापूर्वक अभियान चला कर एक  उदाहरण प्रस्तुत किया है.
आज ब्लागर्स पर महती जिम्मेदारी है कि वह पूंजीपतियो द्वारा गढे जा रहे संजाल को तोडते हुए विद्यार्थी जी द्वारा  "प्रताप" के माध्यम से रचे गये प्रतिमानो को पुनर्स्थापित करे.
पुनश्च "प्रताप" की सौवी वर्षगांठ पर केबीए की ओर से समस्त ब्लागर्स को बधाई

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