मंगलवार, 26 नवंबर 2013

बस तुम चल दो।

मिला  दो   रंग  अपने  कुछ  इस  तरह कि,
 इंद्रधनुषी बन जाओ  तुम,
 गुजर  रही हो  दुनिया  जब गमो  कि बारिश ,
  में ,मुस्कुराते नजर आओ तुम।

हो नामुमकिन  कुछ तो मुमकिन ,
 तुम  कर  दो।
एक नयी उम्मीद फिर  आज़ सीने में,
तुम  भर दो।
बस चल दो तुम  ,
 चल दो।
एक नयी उम्मीद फिर  आज सीने में तुम भर दो।

तुम  चल दो। चल दो तुम बस।
 

           "AMAN MISHRA"

गुरुवार, 14 नवंबर 2013

हैप्पी चिल्ड्रन्स डे..

आज के बच्चे ,बच्चे नही रहे ,सयाने हो गये है ...इस बात का कोई उल्टा -सुल्टा मतलब न निकालिये ,सच ,आज के बच्चे हमारी जेनरेशन के लोगों से बहुत ज्यादा समझदार ,जानकर हो गये है ...दस -बारह वर्ष कि उम्र से ही वे भविष्य के लिए फिक्रमंद होते नज़र आने लगे है ..आज के बच्चे हम से कही ज्यादा मेहनती ,ईमानदार और निडर हो गये है ...सच को सच कहने कि हिम्मत रखते है ..अपनी खुद कि ज़िंदगी का एक लक्ष्य बना कर चलना बखूबी जानते है ..उन्हें बहुत ज्यादा रोकिये ,टोकिए और कोसिये नही ...उन पर अपनी इच्छाएं थोपिए नही ..समझने कि कोशिश कीजिये उन के सही मार्गदर्शन के लिए खुद को भी समय के हिसाब से अपडेट कीजिये .... .उन पर भरोसा जताइए ..वो आपको कभी निराश नही करेंगे ....
हमारा हर दिन बच्चों के लिए ही होता है ,वो हमारे लिए हमेशा ही बहुत स्पेशल होते है ,पर आज तो हैप्पी चिल्ड्रन्स डे कहना बनता है भाई ....हैप्पी ..हैप्पी ..हैप्पी चिल्ड्रन्स डे ..बच्चो ..

शुक्रवार, 1 नवंबर 2013

बिजली के बल्ब और दीप

सबसे पहले तो आप सभी लोगो को दीपावली की हार्दिक शुभ कामनाये देना चाहूँगा , सबसे पहले इस लिए क्यों की कहते है ना की नीम की पाती गुड़ के साथ बहुत सरलता से  निगली जाती है।
खैर अपनी बात को कहने के पूर्व थोडा सा इतिहास में जाना चाहूँगा . कहते है की भगवन राम के अयोध्या वापस आने पे वह के नागरिको ने उनका दीपो के प्रकाश के साथ स्वागत किया था , और तब से ये त्यौहार मनाया जा रहा है .  इसके वैज्ञानिक पहलू से भी आप सब का दो चार कराना चाहूँगा , जैसा की सभी जानते है की वर्षा ऋतु में वातावरण में कई कीट पतंगे अपनी संख्या की भरी वृधि कर देते है और कई जीव जैसे मकड़ी , गुजुआ ( काला सा कीड़ा , अब मुझे तो यही नाम पता है ),और भी बहुत से कीड़े अपनी अधिकाधिक उपस्थिति दर्ज कराने लगते है . अब हमारे पूर्वजो को शुक्रिया करना चाहूँगा जो बड़े माइंडेड थे , उन्होंने त्यौहार में ही विज्ञानं को फिट कर दिया , घर की साफ़ सफाई को नियम सा कर दिया , और मिटटी के दियो में सरसों के तेल से दीप जलने का प्रचलन  शुरू  किया ,  होता ये था की दिए की लौ से कई कीड़े आकर्षित होते थे और लौ के कारण वही ख़त्म हो जाते थे , और सरसों के तेल का धुआ वातावरण को शुद्ध करता था . अब आते है हमारे आज में हमने अपने पूर्वजो के दीमाग में अपना दीमाग लगाया और ले आये बिजली के बल्ब , कहे पडोसी अगर एक झालर लगाये तो हम लगायेंगे चार . अब ज़माने ने दीप को आउटडेटिड कर दिया ,और हमारे पूर्वजो की शांत आत्मा हमें भूत सी लगाने लगी . खैर झालर जली , रोशनी तो हुई ,तो  नए ज्ञान ने पुराने विज्ञानं को साइड में कर दिया .. जहा देखो झालर रंग बिरंगी ,  दीप बेचारा बस रस्म अदायगी का प्रतीक अपने अस्तित्व को खोजता हुआ ,वो तो गनीमत थी की अभी भगवन बचे थे , उनको भी थोडा डर हुआ होगा की कही हमारी आरती दीपक की जगह बल्ब से न होने लगे .
खैर झालर मुस्कुरा रही थी और दीप सोच रहा था की मनुष्य को दिमागी प्राणी कहा जाता है पैर आज इनकी अक्ल क्या घास खाने गयी है .  पर अब  एक उम्मीद बंधी है ,
 शुक्रिया कहना चाहूँगा अपने गुरुवर का और उनके जैसे कई लोगो का जो फिर से प्राचीन विज्ञानं को स्थापित करने में जुटे है ...

और इसी आशा के साथ की आप सभी दीप को झालर से ज्यादा उपयोग करेंगे।
 एक पंक्ति कहना चाहूँगा    .


                         उम्मीदों की रोशनी कभी बुझने न देना .
                         सूखे हुए पेड़ो पर भी बहारे आती है .
       एक बार फिर  से दीपावली की हार्दिक शुभ कामनाये।
                                                                                                    "अमन मिश्र "