सोमवार, 28 फ़रवरी 2011

रक्तदान जीवनदान है।अपने मित्रों व रिश्तेदारों को भी इस हेतु आगे आने के लिए प्रेरित करें

 रक्तदान जीवनदान है। हमारे द्वारा किया गया रक्तदान कई जिंदगियों को बचाता है। इस बात का अहसास हमें तब होता है जब हमारा कोई अपना खून के लिए जिंदगी और मौत के बीच जूझता है। उस वक्त हम नींद से जागते हैं और उसे बचाने के लिए खून के इंतजाम की जद्दोजहद करते हैं।

अनायास दुर्घटना या बीमारी का शिकार हममें से कोई भी हो सकता है। आज हम सभी शिक्षि‍त व सभ्य समाज के नागरिक है, जो केवल अपनी नहीं बल्कि दूसरों की भलाई के लिए भी सोचते हैं तो क्यों नहीं हम रक्तदान के पुनीत कार्य में अपना सहयोग प्रदान करें और लोगों को जीवनदान दें।
देशभर में रक्तदान हेतु नाको, रेडक्रास जैसी कई संस्थाएँ लोगों में रक्तदान के प्रति जागरूकता फैलाने का प्रयास कर रही है परंतु इनके प्रयास तभी सार्थक होंगे, जब हम स्वयं रक्तदान करने के लिए आगे आएँगे और अपने मित्रों व रिश्तेदारों को भी इस हेतु आगे आने के लिए प्रेरित करेंगे।

कौन कर सकता है रक्तदान : * कोई भी स्वस्थ व्यक्ति जिसकी आयु 18 से 68 वर्ष के बीच हो।
* जिसका वजन 45 किलोग्राम से अधिक हो।
* जिसके रक्त में हिमोग्लोबिन का प्रतिशत 12 प्रतिशत से अधिक हो।
 
रक्तदान करने के बाद मुझे लगा कि मानो जीवन का उद्देश्य सफल हो गया.

 

रविवार, 27 फ़रवरी 2011

मै लिख नहीं सकता

मै लिख नहीं सकता, क्योकि मेरे ज्ञान चक्षु बंद है.
  हाँ मै पंकज नहीं  हूँ, नहीं मेरी वाणी में मकरंद है.

अभिव्यक्ति , खोजती  है चतुर शब्दों का संबल
सक्रिय मस्तिस्क और  खुले दृग , प्रतिपल

दिवास्वप्न जैसा क्यों मुझे सब प्रतीत होता है.?
क्या हर लेखक का लिखने का अतीत होता है?

क्या मै संवेदनहीन हूँ या मेरी  आंखे बंद है
या नहीं जानता मै , क्या नज़्म क्या छंद है.

वेदना  को शब्द देना, पुलकित  मन का इठलाना.
सर्व विदित है शब्द- शर , क्यों  मै रहा अनजाना

मानस सागर में  है उठता , जिन  भावो  का स्पंदन.
तिरोहित होकर वो शब्दों में, चमके जैसे कुंदन.

शुक्रवार, 25 फ़रवरी 2011

तुम



जब तुम न थे ,कुछ भी न था
ना खुशी थी ,गम भी न था
रातें नहीं बेचैन थीं
दिन भी नहीं तन्हा से थे
तुमने हमें बदला है ज्यों
हम भी नही यों हम से थे
तुम मिले तो हमने जाना
रातों को जगना क्या है
छत पर चलकर रात-रात भर
तारों को गिनना क्या है
महफ़िल में तेरी यादों में
खोकर तन्हा होना क्या है
यादों में खोकर इक पल हँसना
और इक पल रोना क्या है

                                                   आशुतोष त्रिपाठी

सोमवार, 21 फ़रवरी 2011

पाठक से परिवर्तन हुआ और हम लेखक भये

कवि जी कवि वर भये
सबदन के वर भये
रस छंद  जोड़ी लिए
लरिकन  के आफत  भये

अब हम भी पाठको को
सताने वाली श्रेणी में शामिल हुए
पाठक से परिवर्तन हुआ
और हम लेखक  भये

कल मैने  डॉ पवन कुमार मिश्र जी मुलाकात किया और उस मुलाकात के फलस्वरूप मेरे में दो परिवर्तन आये
१. मेरा आत्मविश्वास बढ़ा . इससे पहले मै काफी हद तक परमुखापेक्षी हुआ करता था पर डॉ मिश्र ने मेरी बैसाखियों को छीन कर फेक दिया(इसकी चर्चा बाद में  की जायेगी).
२. मै अपने पूर्ण स्वरुप में ब्लॉग जगत में उपस्थित हूँ. इससे पहले मै चन्द्र के नाम से लिखा करता था जबकि मै सूर्य हूँ. मै पाठको विशेष तौर से बहन अपर्णा का शुक्रगुजार हूँ.जिनकी प्रेरणा से कुछ लिखने की तरफ अग्रसर हुआ
जय हिंदी जय नागरी
जय कानपुर ब्लागर्स असोसिएसन


रविवार, 20 फ़रवरी 2011

कानपुर की गंगा अब गंदानाला में तब्दील हो रही है. गंगा से कोई प्यार नही करता

 कानपुर गंगा  में प्रदूषण का मुख्य कारक टेनरियो का अवशिष्ट जल और सीवर का गन्दा पानी है. जाजमऊ में सारे सीवर और टेनरियो के नाले सीधे गिरते है. कहने को तो जल शोधन हेतु   संयंत्र लगाए गए है पर उनकी वास्तविकता के क्या है आइये जाने



सीवेज-टेनरियों से निकलता गंदा पानी
42.1 करोड़ लीटर
जाजमऊ में ट्रीटमेंट प्लांटों की क्षमता
17.1 करोड़ लीटर
वर्तमान में शोधित हो रहा गंदा पानी
8.5 करोड़
गंगा में रोज गिर रहा प्रदूषित पानी
33.6 करोड़ लीटर

गौर करने वाली बात है की लगभग ३४ करोड़ लीटर गन्दा पानी प्रतिदिन गंगा  में गिर रहा है. कोढ़ में खाज यह है की जाजमऊ का  90 इंच सीवर नाला धंस गया है जिसकी वजह से  ट्रीटमेंट प्लांट तक पानी नहीं पहुंच रहा है  और ऊपर से बहकर  होकर सीधे गंगा में गिर रहा है. प्रशासन की निरीक्षण टीम की ने मामले की लीपापोती के बाद  इसकी जिम्मेदारी का ठीकरा सम्बंधित विभागों पर फोड़कर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर ली है.
एक तो शहर में पहले ही प्रदूषित पानी का शोधन नहीं हो पा रहा है। उस पर सीवर का पानी ट्रीटमेंट प्लांट तक लाने वाली 100 साल पुरानी 90 इंच ट्रंकलाइन जाजमऊ चौकी के नीचे, छबीलेपुरवा व अन्य स्थानों पर धंस गयी है। जाजमऊ चौकी के पास मिंट्टी डालकर उसे पाट दिया गया।  11 जनवरी  २०११ को अपर नगर मजिस्ट्रेट द्वितीय, क्षेत्राधिकारी कैंट, प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अभियंताओं व जल निगम के परियोजना अभियंता ने निरीक्षण किया था। निरीक्षण रिपोर्ट में कहा गया था कि 45 से 50 फीसदी ही सीवर का पानी ट्रीटमेंट प्लांट पहुंच पा रहा है। शेष डबका नाला से ओवरफ्लो होकर सीधे गंगा में गिर रहा है। इस पर जिलाधिकारी मुकेश कुमार मेश्राम ने जल निगम महाप्रबंधक सीएस चौधरी को पत्र भेज व्यवस्था कराने को कहा। जवाब में श्री चौधरी ने डीएम को पत्र लिखा कि जलकल विभाग व नगर निगम इस नाले की देखरेख करते हैं लिहाजा मरम्मत की कार्रवाई उन्हीं के स्तर से प्रस्तावित है। जलकल विभाग के महाप्रबंधक रतनलाल ने कहाकि जल निगम सीवरलाइन डलवाने का काम करा रहा है तो उसे ही वह काम भी कराना है। कुल मिलाकर अब तक यह तय नहीं हो पाया है कि इस लाइन की मरम्मत कौन करायेगा।
गंगा मर रही है और उसे मारने वाले हमी है. संस्कृति की दुहाई देने वाले वलेंताईन डे पर उछलकूद करने वाले मक्कार लोगो से कोई उम्मीद नहीं है. हम ब्लागर्स को इस दिशा में कदम उठाने होगे.
परिवर्तन दौड़ने से नहीं आएगा. परिवर्तन के लिए जमीनी स्तर पर काम करना पड़ता है जिसके लिए लोग एक दूसरे का मुह देखते है.
ये मुह दिखाई बंद कब होगी ?

शनिवार, 19 फ़रवरी 2011

सभ्यता ???



हम सभ्य हैं
क्यूंकि -
हम छुरी कांटे से खाते हैं,
तन की महक को डियो से छुपाते हैं;
लोगों के बीच जोर से हँसते नहीं हैं,
और खांसने से पहले कहते हैं - एक्स्क्युस मी!!


                                                               आशुतोष त्रिपाठी

शुक्रवार, 18 फ़रवरी 2011

जीवन पथ


था एक अन्जाना अजनबी सा रास्ता
जहाँ न किसी से किसी का कोई वास्ता
अचानक एक नारी आई भीड़ से निकलकर
गोद में एक प्यारे से शिशु को लेकर
गोद से आया वह शिशु उतरकर
कदम बढाया माँ की ऊँगली पकड़कर
जमीन पर गिर गया वह लड़खड़ाकर
माँ ने कुछ  साहस दिया उसे उठाकर
चलते चलते उसने चलना सीख  लिया
मासुम मुस्कान से माँ का ह्रदय जीत लिया
जीवन पथ पर एक मोड़ आया तभी
जिसके बारे में उसने सोचा न था कभी
माँ बोली जा जीवन पथ पर खोज ले मंजिल का पता
व्यर्थ तेरा जन्म नहीं दूनिया को इतना दे बता
जीवन के इस पथ पर अकेले हीं तुझे चलना है
यह एक संग्राम अकेले हीं तुझे लड़ना है
इस तरह और भी कुछ समझा बुझा कर
कहा उसने जा पुत्र अब देर न कर
सुगम थी राह , वह आगे बढ़ने लगा
निर्भीक, निडर सा वह आगे चलने लगा
मंजिल की राह होती इतनी आसान नहीं
इस बात का था उसे अनुमान नहीं
वह मार्ग अब दुर्गम होने लगा
साहस भी उसका खोने लगा
सामने माँ का चेहरा मुस्कुराने लगा
आगे बढ़ने की हिम्मत बढ़ाने लगा
फिर से आगे बढ़ने लगा ताकत बटोरकर
समस्याएँ आने लगीं और बढ़चढ़  कर
ठोकर खाकर अब वह नीचे गिर पड़ा
कुछ याद कर फिर से हो गया खड़ा
खुद हीं बोला आत्मविश्वास से भर कर
अब रुकना नहीं मुझे थककर
देखो पथ पर अग्रसर उस पथिक को
शक्ति पुत्र, साहस के बेटे, धरती के तनय को
भयंकर धुप अंधड़ और वर्षा उसने सब सहा
दामिनी से खेला, संकटों को झेला पर आगे बढ़ता रहा
कुछ साथी भी बने उसके इस राह में
संकटों को छोड़ा,तो कोई ठहर गए वृक्ष की छांह में
सीखा उसने मिलता नहीं कोई उम्र भर साथ निभाने को
यहाँ तो मिलते हैं राही बस मिल के बिछड़ जाने को
उस साहसी मन के बली को
तृष्णा मार्ग से डिगा न सकी
उस सयंमी चरित्र के धनि को
विलासिता भी लुभा न सकी
मंजिल पर ध्यान लगाय वह आगे बढ़ता रहा
मन को बिना डिगाए  संकटों से लड़ता रहा
आखिर जीवन में वह शुभ दिन आ हीं गया
वह पथिक अपने पथ की मंजिल पा हीं गया
सफलता उसके कदम चूमने लगी
खुशियाँ चारों ओर झूमने लगीं
कल तक थे अन्जान, आज उससे पहचान बनाने लगें
सम्मान का सम्बन्ध तो कोई ईर्ष्या का रिश्ता निभाने लगे
सबने देखा सफलता को उसका चरण गहते हुए
न देखा किसी ने मुश्किलें उसे सहते हुए
आज जो वह पथिक मंजिल तक आया है
भाग्य का नहीं उसने कर्म का फल पाया है
संसार का तो यही नियम चलता आया है
यूँहीं नहीं सबने कर्म को भाग्य से बली बताया है

गुरुवार, 17 फ़रवरी 2011

थोड़ी सी नींद रक्खी है सिरहाने:ईशा त्रिपाठी


कानपुर में प्रतिभाओं की कमी नही है बस उन्हें ढूढकर तराशना है और सामने लाना है. KBA इस दिशा में महत्वपूर्ण कार्य कर रहा है. इसी सिलसिले में मै आपलोगों को  ईशा त्रिपाठी से परिचय करना चाहता हूँ. यह बच्ची अभी हाई स्कूल में पढ़ती है. कल मैने अनायास इसकी कविताएं देखी तो एक बारगी ताज्जुब हुआ कि इतनी छोटी उम्र में इतनी परिपक्व रचना. मैंने तुरंत इसे एक रचनाकार के तौर पर KBA पर आमंत्रित किया. इसकी नैसर्गिक  काव्य  प्रतिभा से आप भी रूबरू होइए और आशीष प्रदान करे.

थोड़ी सी नींद रक्खी है सिरहाने
अभी न ही रात को और न ही नींद को
आँखों में भरने का मन है
अभी कुछ देर और अँधेरा ताकने का मन है |
रात का सन्नाटा कानों में गूंजता है
साँसों का आना-जाना भी शोर सा लगता है |
कमरे के अंधकार में
कहीं दरारों से झांकती है चांदनी
और उन्हीं रास्तों से प्रवेश पाती है
ठंडी-ठंडी हवा भी |
आवाज़ देता रहता
दीवार पर लटका समय
कानों में पड़ती रहती
झींगुर की झिन्झिन हर समय |
बीच-बीच में दूर से
न जाने किस ओर से
आती है ऐसी ध्वनि
की कोइ गाडी जाए अनमनी |
टिप-टिप सुनायी देती है
रिसती हुई धाराओं की |
हूकें सुनायी देतीं हैं,
जागे हुए चौपायों की  |
साँसें थीं गहरी हो चुकी
छायाएं गहरी हो चलीं
सुर-ताल सरे रात के
सुनायी देने कम लगे
निद्रा वहीं थी सामने
मनो लगाने को गले
पल-पल अँधेरा देखती
आँखें थी मेरी थक गयीं
पलकों की चिक भी गिर गयी
और नींद ने कब गोद में सिर रख लिया मालूम नहीं |
....ईशा(अनुसूईया)

HBTI,kanpur देश का सर्वश्रेष्ठ बी- स्कूल


HBTI , कानपुर सर्वश्रेष्ठ गवर्नमेंट इंजीनियरिंग कॉलेज में ' स्टार न्यूज राष्ट्रीय B-स्कूल 2011 अवार्ड  ' के रूप में क्रमित हुआ है । प्रो. आर. के. खितौलिया , डायरेक्टर एच. बी. टी. आई. , कानपुर को यह अवार्ड १२ फरवरी २०११ को ताज लैंड्स इन्ड ,बान्द्रा ,मुम्बई मे दिया गया ।


HBTI का इतिहास
HBTI, कानपुर, के इतिहास विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में फिर क्या संयुक्त प्रांत कहा जाता था के लोगों के बीच विकास के लिए जरूरत की बढ़ती वसूली करने के लिए तारीखें. इंजीनियरिंग के लिए रुड़की पर एक और कानपुर में अन्य - भारतीय औद्योगिक आयोग ने 1907 में नैनीताल की बैठक में दो संस्थानों का प्रस्ताव
इस प्रकार, एक के लिए उद्यमशीलता को बढ़ावा देने, औद्योगिक विकास में तेजी लाने के, के लिए समकालीन लागू अनुसंधान के लिए एक ध्वनि वातावरण बनाने के लिए वैज्ञानिक और तकनीकी सोच जगाने के उद्देश्य से, एक `सरकार अनुसंधान संस्थान नामक संस्थान, Cawnpore '1920 में शुरू किया गया था. शुरू में यह क्या शेर वली कोठी कहा जाता था की दो विशाल कमरे में रखे थे. पुराने राजसी इमारत अभी भी कंपनी के पार, नवाबगंज बाग के उत्तर पश्चिम कोने पर बरकरार है. डा. एनेट तो अफीम अनुसंधान प्रयोगशाला के प्रमुख जिनमें से नए संस्थान एक सहायक था.

1921 में, यूपी विधानसभा, तो उद्योग श्री चिंतामणि CY मंत्री में एक लंबा गर्म बहस के बाद इस संस्थान के लिए निधि की एक अतिरिक्त खुराक सुरक्षित है. कक्षाएं जल्द ही 25 Institute.On 1921 नवंबर, तो संयुक्त प्रांत के गवर्नर में शुरू हुआ, सर हरकोर्ट बटलर स्पेंसर (1869-1938), KCSI, CIE, औपचारिक रूप से वर्तमान के निर्माण की नींव रखी. यह 1921 में "सरकार प्रौद्योगिकी संस्थान" rechristened था. अंत में, 1926 में, इसके बारे में "हरकोर्ट बटलर प्रौद्योगिकी संस्थान" नाम मिल गया. अपनी भारतीय राष्ट्रीयता की पहली प्रिंसिपल हालांकि दत्तात्रेय यशवंत अठावले (राव साहेब राय बहादुर) था.
HBTI पुराना उत्तर प्रदेश में प्रौद्योगिकी संस्थान है. 1959 में, जब भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) कानपुर स्थापित किया गया था, आईआईटी कक्षाओं IITK तक कैंटीन HBTI की इमारत में आयोजित की गई अपनी ही परिसर में किया था. 1970 तक, HBTI भी चीनी प्रौद्योगिकी, कपड़ा और ग्लास प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में था पाठ्यक्रमों का आयोजन. बाद में, 3 नए संस्थानों - राष्ट्रीय चीनी संस्थान, भारत सरकार केन्द्रीय वस्त्र संस्थान और ग्लास संस्थान इन विभागों के बनाये गये थे.

हरकोर्ट बटलर प्रौद्योगिकी संस्थान हमेशा एक प्रतिद्वंद्वी और विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में प्रेरणा का एक स्रोत 1921 के बाद से किया गया है. यह अपने तकनीकी दुनिया में विशिष्ट उपस्थिति बनाए रखी है. H.B.T.I. विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में वसूली, आवश्यकताओं की पूर्ति और प्रगति का एक इतिहास है. यह तेजी से औद्योगिक विकास के कारण के लिए समर्पित है, लागू के लिए एक स्वस्थ वातावरण बनाने के शोध और सब से ऊपर के लिए बाहर पुरुषों और महिलाओं को बनाना, वास्तव में एक तर्कसंगत और वैज्ञानिक आचरण कर रही है. नारा 'रवैया' है - ध्यान जिसमें से हर harcourtian के व्यक्तित्व molded है ले रही है. अपनी जड़ों के रूप में अपने दृष्टिकोण के रूप में गहरा रहे हैं.

एक नजर संस्थान के परिसर पर

          संस्थान दो परिसरों, पूर्व (77 एकड़) परिसर और पश्चिम (271 एकड़) 3 अलग किमी स्थित परिसर, उत्तर प्रदेश तकनीकी विश्वविद्यालय, लखनऊ से संबद्ध भर में फैला हुआ है. संस्थान 13 स्नातक की बीटेक की डिग्री के लिए अग्रणी कार्यक्रम चलाता है. रासायनिक, यांत्रिक, विद्युत, इलेक्ट्रानिक्स, सिविल, कम्प्यूटर साइंस इंजीनियरिंग एण्ड टैक्नोलॉजी कैमिकल (बायोकेमिकल इंजीनियरिंग, खाद्य, तेल और पेंट्स और प्लास्टिक प्रौद्योगिकी) में स्नातकपूर्व कार्यक्रम संस्थान के प्रत्यायन के राष्ट्रीय बोर्ड (एनबीए) द्वारा मान्यता प्राप्त किया गया. इसके अलावा यह है सक्रिय अनुसंधान विभिन्न विषयों में किया जा रहा है प्रोग्राम किया जाता है. को तकनीकी क्षितिज 'Dataquest' मई 2005 के अंक में वृद्धि पहुंचाने में अपनी क्षमता को स्वीकार करते यह सबसे अच्छा 21 देश के तकनीकी संस्थान और 8 यू पी तकनीकी विश्वविद्यालय, लखनऊ सरकार से वित्त पोषित संस्थानों में अग्रणी संस्थान के रूप में नामित किया गया है.
  
         संकाय ने350 शोध पत्र और भारतीय में 80 प्रस्तुतियों के साथ ही अंतर्राष्ट्रीय पत्रिकाओं योगदान दिया है. इसके अलावा, 49 आर एंड डी डीएसटी, यूजीसी, आईसीएआर, डीआरडीओ, UPCST, C.SI.R., परमाणु ऊर्जा विभाग, आईसीएमआर, डो द्वारा प्रायोजित योजनाएं एवं नागरिक आपूर्ति मंत्रालय को सफलतापूर्वक पूरा कर लिया है. इन सभी उपलब्धियों को निश्चित रूप से यह बुद्धि पोषण के लिए एक उपजाऊ जमीन होने के लिए साबित होते हैं.

  HBTI और हम

मैने इस कॉलेज में एमसीए कोर्स में प्रवेश वर्ष 1999 में ले लिया। मुझे अच्छा लगता है कि मैनें इस तरह के एक प्रतिष्ठित कॉलेज से अध्ययन किया लगा । मुझे स्वयं को हर्कोटियन कहलाने का सौभाग्य प्राप्त है ,आज मुझे गर्व है कि मैनें इस कॉलेज से अपनी डिग्री अर्जित की है। मैं अपने कॉलेज के उज्जवल भविष्य के लिए कामना करती हूँ , और मैं इसे दुनिया के नम्बर वन कालेज के रूप में देखना चाहती हूँ ।

सोमवार, 14 फ़रवरी 2011

कानपुर अतीत के साये में -1

कानपुर अतीत के साये में ।




(कोसमीनार)






आज इस कड़ी में पेश है कानपुर देहात का एक क़स्बा सिकन्दरा............. सिकन्दरा कानपुर नगर से ९० किमी दूर पश्चिम दिशा में तथा औरैया जिला से १५ किमी दूर पूर्व दिशा में नेशनल हाईवे नंबर २ पर स्थित हैं.सिकन्दरा कस्बे से २ किमी दूर  साखिन बुजुर्ग ग्राम है जहाँ एक कोस मीनार स्थित है.जिसको मुग़ल शाशन काल में बनवाया  गया था.यह कोस मीनार मुग़ल रोड पर स्थित है.सिकन्दरा से मुग़ल रोड निकलती है जो भोगनीपुर से होते हुए कानपुर के रामादेवी  चौराहे पर  मिली है.इस रोड को पहले राष्ट्रीय राज्य मार्ग २ के नाम से जाना जाता था.मुग़ल रोड का प्रयोग मुग़ल शासक परिवहन के लिए किया करते थे.मुग़ल शासको ने इस रोड पर लगभग ३.२ किमी की दूरी पर कोस मीनारे बनवाई थी जिनका निर्माण १५५६ से १७०७ के बीच में हुआ था.इस कस्बे पर प्राचीन समय पर बस्ती एक ऊँचे टीले पर हुआ करती थी जिसे गडी के नाम से जाना जाता था .वर्तमान समय में इस कस्बे की जनसँख्या १०८८४ है(सन २००१) जिसमे ५३ प्रतिशत पुरुष और ४७ प्रतिशत महिलाये हैं.वर्तमान में यहाँ एक तहसील है एवं मुख्य बस्ती से लगभग २ किमी दूर एक होटल एवं पेट्रोल पम्प है .१९ वी सदी से पहले इस कस्बे में फुकनी से सीसी बनाने का काम और लाख की चूड़ियाँ बनाने का काम होता था इसके साथ ही यहाँ तबला और ढोलक मढ़ी जाती थी.यहाँ की आटा छानने की छन्नी बहुत प्रसिद्ध हुआ करती थी.यहाँ पर कच्चा साबुन बनाने का काम होता था.सिकन्दरा तथा आस पास के क्षेत्रो में भेड़ पालने का काम बहुत बड़ी तादाद में होता था.वर्तमान समय में इस कस्बे ने अपनी पुरानी पहचान पूरी तरह से खो कर नयी पहचान को ग्रहण कर लिया है.
                                                                         .... प्रस्तुतकर्ता राजेश विश्नोई

शुक्रवार, 11 फ़रवरी 2011

हर कोई भूल जाता है अपने शहर को,उतरता है जब भी खाबों की डगर को।...अभय तिवारी

अभय तिवारी से हमारा परिचय हुये तीन साल से ज्यादा हो लिया। शुरुआत ब्लॉग जगत की नोकझोंक से हुई! नोकझोंक के बाद मेल-मुलाकात हुई! पहले मुम्बई में जहां , अभय और अन्य मित्रों की आत्मीय साजिश के चलते, जबरियन हमसे जिन्दगी में पहली बार जन्मदिन का केक कटवा लिया गया, और फ़िर कानपुर में कई बार मिले। कानपुर में मिलने आये तो हमारी श्रीमतीजी ने उनकी उमर पच्चीस साल से अधिक मानने से इन्कार कर दिया। :)
इसके बाद तो फ़िर मिलना-जुलना चलता रहा। मैं तो फ़िर उसके बाद मुम्बई न जा पाया लेकिन अभय जब कभी कानपुर आये मिलना-जुलना होता रहा । ऐसे ही एक मुलाकात में अभय ने एक दिन मेरे घर आकर अपनी लघु फ़िल्म सरपत भी दिखाई!
अभय अपने ब्लॉग के अलावा दो ब्लॉग और चलाते रहे। एक ब्लॉग में वे अपनी मां की कवितायें छापते रहे और दूसरे में रूमी की विराटता को मूल फ़ारसी से हिन्दी में समेटने की एक कमसिन कोशिश करते रहे। रूमी के अनुवाद के शुरुआत की कहानी बयान करते हुये अभय ने लिखा था:
लगभग डेढ़ बरस पहले बेरोज़ग़ारी के दिनो में एक रोज़ कहीं रूमी की किसी ग़ज़ल का घटिया हिन्दी अनुवाद पढ़ के बड़ी कोफ़्त हुई.. लगा कि इस से बेहतर अनुवाद तो मैं कर सकता हूँ..तो लग गया..रूमी के मूल फ़ारसी के अंग्रेज़ी अनुवाद से मैंने हिन्दी में कुछ ग़ज़लें तरजुमा कीं.. तक़लीफ़ होती थी..क्योंकि अंग्रेज़ी और फ़ारसी के संसार मे बड़ी दूरियां हैं..तो सोचा कि सीधे फ़ारसी से क्यों ना अनुवाद करूं…तो भई मैंने फ़ारसी सीखने का संकल्प कर लिया..ने
और इसी संकल्प पर अमल करते हुये अभय ने फ़ारसी के सर्वाधिक चर्चित सूफ़ी कवि रूमी का जीवन, दर्शन एवं उनकी कालजयी रचना ’मसनवी’ काव्यात्मक सरल रूपान्तरण कलामें रूमी के नाम पेश किया जो कि हिन्द पाकेट बुक से प्रकाशित हुआ है।
बताते चलें कि हिन्द पाकेट बुक्स देश ने ही भारत में सबसे पहले पाकेट बुक्स की शुरुआत की। यह बात भी मुझे अभय से ही पता चली थी।
रूमी के काव्य रूपान्तरण पेश करने के पहले अभय ने रूमी की बुनियाद:सूफ़ी मत, रूमी के जीवन, रूमी के जीवन से जु्ड़े किस्से , रूमी की करामातें , रूमी कवि और काव्य के बारे में बताने के साथ-साथ अनुवाद की मु्श्किलें भी बयान की हैं। अनुवाद की मुश्किलें बयान करते हुये अभय लिखते हैं:
शब्दों में मेरी दिलचस्पी पहले से थी और इसलिये मुझे लगा कि अगर रूमी का अनुवाद सीधे फ़ारसी से हिन्दी में किया जाय तो वो न्यायसंगत भी होगा और अधिक आसान भी। मुश्किल सिर्फ़ यह थी कि मुझे फ़ारसी क्या उर्दू भी नहीं आती थी। लेकिन कुछ नया करने के आकर्षण में मैंने फ़ैसला किया मैं फ़ारसी सीखूंगा और फ़िर रूमी का अनुवाद करूंगा।
फ़ारसी सीखने के लिये बेले गये पापड़ों का हवाला अभय ने तफ़सील से दिया है लेकिन किताब के हिन्दी रूपान्तरण की गुणवत्ता देखकर भरोसा नहीं होता कि सच में अभय को फ़ारसी आती नहीं होगी। लगता है जैसे वे हिन्दी और फ़ारसी बचपन से ही सीखे हैं।
रूमी के बारे में जानकारी के देते हुये अभय ने उनका जीवन परिचय किताब में विस्तार से दिया है। रूमी का जन्म 1207 ई. में बल्ख में हुआ। बाकी जानकारी के लिये आप अभय की यह पोस्ट देखिये जिस पर अपनी टिप्पणी देखकर मुझे लग रहा है कि शायद अभय से मेरा पहला परिचय इसी पोस्ट पर हुआ था।
किताब पढ़ते हुये रूमी के जीवन दर्शन का अन्दाजा भी हुआ। रूमी की निगाह में भूख के बगैर खाना दरवेशों के लिये सबसे संगीन गुनाह है। रूमी के गुस्से का जिक्र करते का एक वाकये का जिक्र किताब में है:

अभय तिवारी
ऐसा बताया जाता है कि एक रोज रूमी के किसी मुरीद ने कहा कि लोग इस बात पर एतराज करते हैं कि मसनवी को कुरान कहा जा रहा है तो रूमी के बेटे सुल्तान वलेद ने टोंक दिया कि असल में मसनवी कुरान नहीं कुरान की टीका है। तो रूमी थोड़ी देर तो चुप रहे फ़िर कहने लगे,” कुरान क्यों नहीं है, कुत्ते? कुरान क्यों नहीं है, गधे? अबे रंडी के बिरादर, कुरान क्यों नहीं है मसनवी? ये जानो कि रसूलों और फ़कीरों के कलाम के बरतन में खुदाई राज के अलावा और कुछ नहीं होता। और अल्लाह की बात उनके पाक दिलों से होकर उनकी जुबान के जरिये बहती है।”
इस फ़ारसी-हिन्दी रूपान्तरण को पढ़ते हुये तमाम बातें पता चलीं जो मैं पहले जानता नहीं था। एक तो यह कि संस्कृत और फ़ारसी में आपस में बहुत गहरा नाता है। और यह भी कि हमारे तमाम के रोजमर्रा शब्द मूल रूप से फ़ारसी से हैं जैसे-खरीदना, रसीद, पेंच, हवा, गुजारना,आमदनी साल, साहब,चाकू, सुबह , बच्चा, जवान आदि। फ़ारसी से हिन्दी रूपान्तरण पढ़ते हुये लगता है जैसे किसी शायर का कलाम अपनी भाषा में ही पेश किया गया है। कहीं अटकाव/खटकाव नहीं लगता। जैसे ये देखिये:
हर कोई भूल जाता है अपने शहर को,
उतरता है जब भी खाबों की डगर को
और यह भी:
पा गये हो दोस्त तुम कुछ चार दिन के
भूल गये दोस्त, नाता पुराना साथ जिनके
इसी तरह और तमाम रूपान्तरण देखकर अजित वडनेरकर की कही बात-अभय के अनुवाद की सबसे अच्छी बात हमें जो लगी वह यह कि यह सरल ही नहीं, सरलतम है। दोहराने का मन करता है।
रूमी काव्य की खासियत शायद यह है कि उसमें आध्यात्म की ऊंचाई तो है लेकिन जीवन का निषेध नहीं है। जैसा अभय ने लिखा भी है:
रूमी में एक तरफ़ तो माशूक के हुस्न का नशा है, विशाल की आरजू व दर्द है; और दूसरी तरफ़ नैतिक और आध्यात्मिक ज्ञान की गहराईयों से निकाले मोती हैं। रुमी सिर्फ़ कवि ही नहीं हैं , वे सूफ़ी हैं, वे आशिक हैं, वे ज्ञानी हैं और सब से बढ़कर वे गुरु हैं।
रूमी काव्य का पूरा मजा लेने के लिये तो पूरी किताब पढ़नी पड़ेगी। कुछ अंश बीच-बीच से जो मुझे पहली नजर में ज्यादा जमें वे यहां पेश करता हूं। रूमी की नजर में देखिये इंसाफ़ क्या है:
इंसाफ़ क्या? किसी को सही जगह देना
जुल्म क्या है? उस को गलत जगह देना।
बनाया जो भी खुदा ने बेकार नहीं कुछ है
गुस्सा है, जज्बा है, मक्कारी है, नसीहत है।

इन में से कोई चीज अच्छी नहीं पूरी तरह,
इनमें से कोई चीज बुरी नहीं पूरी तरह।
रूमी कहते हैं- भूख के बगैर खाना दरवेशों के लिये सबसे संगीन गुनाह है। भूख शीर्षक कविता में देखिये वे क्या कहते हैं:

अभय तिवारी रा्जीव टंडन
भूख सब दवाओं की है सुल्तान ,खबरदार
उसे कलेजे से लगा के रख, मत दुत्कार।

बेस्वाद सब चीजें भूख लगने पर देती मजा,
मगर पकवान सारे बिन भूख हो जाते बेमजा।
कभी कोई बन्दा भूसे की रोटी था खा रहा
पूछा किसी ने तुझे इसमें कैसे मजा आ रहा।
बोला कि सबर से भूख दुगुनी हो जाती है
भूसे की रोटी मेरे लिये हलवा हो जाती है।
ये वाकया पढिये मजेदार है:
अपने आशिक को माशूक़ ने बुलाया सामने
ख़त निकाला और पढ़ने लगा उसकी शान में

तारीफ़ दर तारीफ़ की ख़त में थी शाएरी
बस गिड़गिड़ाना-रोना और मिन्नत-लाचारी
माशूक़ बोली अगर ये तू मेरे लिए लाया
विसाल के वक़त उमर कर रहा है ज़ाया
मैं हाज़िर हूं और तुम कर रहे ख़त बख़ानी
क्या यही है सच्चे आशिक़ों की निशानी?
जो लोग अपने पर चुटकुले सुनकर तड़क-भड़क जाते हैं उनको रूमी का लिखा यह पढ़ना चाहिये:
लतीफ़ा एक तालीम( शिक्षा) है, गौर से उसको सुनो
मत बनो उसके मोहरे,जाहिरा(प्रत्यक्ष) में मत बुनो।

संजीदा(गम्भीर) नहीं कुछ भी लतीफ़ेबाज के लिये
हर लतीफ़ा सीख है एक, आकिलों(ज्ञानियों) के लिये
इसी बात को टी.एस.इलियट ने इस रूप में कहा है- ” हास्य गम्भीर बात कहने का एक तरीका है। ”
अब देखिये रूमी ने क्या अंदाज से खूबसूरती के किस्से कहे हैं:
गुलाबी गाल तेरे जब देख पाते हैं,
झोंके खुशगवार पत्थरों में राह पाते हैं।

इक बार घूंघट जरा फ़िर से हटा दो,
दंग होने का दीवानों को मजा दो।
काव्य के अलावा सवाल-जबाब के रूप में गद्य में भी रूमी ने तमाम बातें कहीं हैं। निषेध के नकारात्मक असर को समझाते हुये रूमी कहते हैं:
अभय तिवारी
जितना तुम अपनी बीबी को बोलोगे, “परदे में रहो। ” उसके भीतर अपनी नुमाइश करने और लुभाने की उतनी ही खुजली होगी। और उनके परदे में रहने से (गैर )मर्द उनके लिये और उत्सुक हो जाता है। और तुम बीच में बीच में बैठकर दोनो तरफ़ की आग भड़काये जाते हो और समझते हो कि तुम बड़ा सुधार कर रहे हो! क्यों? यही तो भ्रष्टाचार की जड़ है। अगर उनके अन्दर बुरा करने का कुदरती गुन है तो तुम उन्हें रोको या न रोको वो अपने तबियत और बनावट के मुताबिक चलेंगे। तो आराम से रहो और परेशान न हो। अगर वे हम से उलटे हैं , तो वे अपने ही रास्ते चलेंगे; उनको रोकने से सच्चाई बदलती नहीं बस उनकी चाहत और बढ़ जाती है।
रूमी का यह उपदेश मजेदार है। यह उन लोगों को शायद कुछ तसल्ली दे सके जो दुनिया के लोगों से भलमनसाहत की सीख देते हुये हलकान होते रहते हैं लेकिन लोग जैसे हैं वैसे ही बने रहते हैं।
किताब के बारे में रवीश कुमार ने लिखा है मोटी किताब है लेकिन हिन्द पाकेट बुक्स ने इसे हल्का कर दिया है। आप आसानी से उठाकर पढ़ सकते हैं। १९५ रुपये की कीमत इस किताब के लिए बिल्कुल ज़्यादा नहीं है। इतनी शानदार रचनाओं का संकलन है कि जब भी और जहां से भी पढ़ेंगे मजा आने लगेगा।
किताब की छपाई बेहतरीन है। कवर पेज शानदार चमकता हुआ एकदम अभय के मेहनत के पसीने की तरह। प्रूफ़ की कमियां कहीं दिखी नहीं मुझे। अभय ने अपने बारे में जहां भी लिखा है वो बेहद विनम्रता से लेकिन वह उसमें कृत्तिम दीनभाव नहीं है। अपनी समझ के हिसाब से अपने काम का आकलन करते हुये और इससे बेहतर करने की खुल्लम-खुल्ला नटखट चुनौती उछालते हुये अभय लिखते हैं –
मैं ये जानता हूं कि रूमी का फ़ारसी से हिन्दी में अनुवाद करने के लिये मैं सबसे योग्य पात्र नहीं हूं। न तो मैं सूफ़ी साधक हूं , न धर्मशास्त्रों का विद्वान हूं , न फ़ारसी भाषा का माहिर हूं और न ही तुक्कड़ या बेतुक्कड़ कवि हूं। लेकिन ये भी सच है कि मैं हर इलाके की कामचलाऊ जानकारी रखता हूं। और मैंने यह पाया कि अभी तक जो भी अनुवाद हुये हैं , उनसे बेहतर अन्जाम दे सकता हूं , इसलिये ऐसी गुस्ताखी की। इस काम की मंजिल तक पहुंच जाने के बाद भी मेरा आकलन यही है, कि शायद ये अनुवाद बहुत बुरा नहीं है। दी हुई सीमाओं -समय, साधन, और प्रतिभा में मैं जितना कर सकता था, ये सर्वश्रेष्ट है। निश्चित ही मेरे इस अनुवाद को देखकर तिलमिलाने वाले लोग होंगे और वे मुझसे बेहतर अनुवाद करेंगे ऐसी मेरी आशा है।
अभय तिवारी
अगर किताब की भूमिका से गुज़रकर उस काव्यानुवाद का महत्व पता चलता है तो आभार ज्ञापन वाले हिस्से से अभय के मन का। अपने तमाम मित्रों सहयोगियों को धन्यवाद देने के साथ अभय ने अपनी पत्नी तनु को के प्रति आभार व्यक्त करते हुये लिखा- मैं अपनी पत्नी तनु का आभारी हूं जिसने मुझे हमेशा एक नैतिक बल दिया और मेरे ऊपर सांसारिकता की सीढियां चढने का कोई दबाब नहीं बनाया।इसके बाद वे अपनी पेशेवर असफ़लताओं से हिसाब बराबर करने से बाज नहीं आते- अपनी उन पेशेवर असफ़लताओं का भी आभारी हूं जिन्होंने मुझे यह काम करने का आयाम उपलब्ध कराया।
अभय की इस किताब को पढ़कर मुझे रूमी , सूफ़ी परंपरा और उसके शब्दों, दर्शन परिचय हुआ साथ ही यह ललक भी जगी कि कोई एक भाषा और सीखी जा सकती है। इस बेहतरीन काम के लिये पेशेवर रूप से अब तक असफ़ल रहे अभय की इस शानदार सफ़लता पर मैं उनको मन से बधाई देता हूं।
पुस्तक विवरण
पुस्तक का नाम: कलामे रूमी
अनुवाद व संपादन: अभय तिवारी
प्रकाशक : हिन्द पाकेट बुक्स प्राइवेट लिमिटेड
जे-40, जोरबाग लेन, नई दिल्ली-110003
पुस्तक की कीमत: 195 रुपये
ई-मेल: fullcircle@vsnl.com
बेवसाइट:http://artfullcircle.com
यह पुस्तक देश-भर के प्रमुख रेलवे स्टेशनों, रोडवेज स्टेशनों व अन्य बुक स्टालों पर उपलब्ध है। न मिलने पर प्रकाशक को लिखें।

संदर्भित कड़ियां: 1.आया आया कलामे रूमी आया
2.आइए, कलामे रूमी से रूबरू हो लें…
3.पुस्तक अंश : कलामे रूमी
4.‘कलामे-रूमी’ : एक ‘कमाल-किताब’
5.रूमी हिन्दी

                                         ...............प्रस्तुतकर्ता अनूप शुक्ल

एक दास्ताँ



 उन भुली बिसरी बातों में
खोई हूँ तुम्हारी यादों में
बीते थे वो सावन मेरे
बैठ के डाली पर तेरे
तुम्ही पर तो था प्यारा घोंसला मेरा
तुम्हारे हीं दम से था बुलंद हौंसला मेरा
तुम्ही पर रह मैंने चींचीं  कर उड़ना सीखा
जीवन की हर मुश्किल से लड़ना सीखा
काट कर कँहा ले गए तुम्हे इंसान ?
बन गए हैं ये क्यूँ हैवान ?
मुझे रहना पड़ता है इनके छज्जों पर
जीना पड़ता है हर पल डर डर कर 
मैंने तो खैर तुम पर कुछ साल हैं गुजारे
पर कैसे अभागे हैं मेरे बच्चे बेचारे
कुछ दिन भी वृक्ष पर रहना उन्हें नसीब न हुआ
कुदरती जीवन शैली कभी उनके करीब न हुआ
काश! वो दिन फिर लौट आये
हरे पेड़ पौधे हर जगह लहराए

गुरुवार, 10 फ़रवरी 2011

अपना शहर



अजनबी शहर में अपना शहर याद आया
उसकी हर गली हर एक मोड याद आया

जब देखा गली में बच्चों को खेलते क्रिकेट  
फिर सुनी अपने ही शीशे के टूटने की आवाज
अपने बचपन का सुहाना दौर याद आया
उसकी हर गली हर एक मोड याद आया

मिला सब यहाँ जो मिला ना था अब तक
इस शहर ने हर सपने को बनाया हकीकत
हर उडान पे वो पतंग का उडाना याद आया
उसकी हर गली हर एक मोड याद आया

घूमा बहुत मैं और देखी भी बहुत दुनिया
सपनों की नगरी से लगे बहुत से नगर
पर अपने शहर सा  कोई भी ना शहर पाया
उसकी हर गली हर एक मोड याद आया

सोचते थे प्यार लोगों से होता है जगह से नही
समझे तब जब उससे मीलों दूर हम आ बैठे
उसकी मोहब्बत में खुद को जकडा पाया
उसकी हर गली हर एक मोड याद आया