शनिवार, 25 अगस्त 2012

वडवानल बनाम स्त्री-विमर्श: तारिणी


शान्त हुताशन शैल के नीचे
 झाक सको यदि तो झांको
वहाँ दिखेगा ज्वालाओं का
एक अति-उद्विग्न सरोवर |
नहीं दृष्टिगोचर होता है
सहज देखने पर यह सर
लेकिन जब विस्फोट हुताशन
शैल करेगा फिर क्या हो?
किन्तु नहीं विस्फोट
सहज ही हो पाएगा इसका
सदिओं-सहस्राब्दिओं की
 तो धूल जमी है इसपर!
और धूल कुछ ऐसी कि
पहले तो पथ की बाधा
फिर कहती मैं बहुत बुरी हूँ
 मत तुम ऊपर आना!
सच पूछो तो अगर
कहीं सागर हो उद्वेलित
नहीं हानिकारक होता है
 जैसे होती वडवानल |
ना जाने अब सुलग-सुलग कर
 आग यहीं मर जाएगी
या फिर होगा पुनः एक
 विस्फोट विषमता नाशक?

सोमवार, 6 अगस्त 2012

पिता जी


पिता- एक शब्द नही, एक रिश्ता नही, आधार है  जीवन का, बुनियाद है हमारे जीवन की।
एक पिता ही वो चरित्र है, जो समय के साथ अनेक रूप लेत है,कभी पत्थर सा कठोर कभी मोंम । पिता ही एक बालक को व्यक्ति बनाते हैं , समाज में उसकी पहचान बनाते हैं । पिता एक बच्चे को सिर्फ अपना नाम नही देते, अपनी पहचान भी स्थान्तरित करते हैं।

पवन कुमार मिश्रा जी के पिता जी का १ अगस्त २०१२ को अचानक ही हार्ट अटैक के हुआ और कुछ ही पलों में देखते देखते वो चिरनिद्रा में सो गये। इस कठिन समय में हमारी सम्वेदनाऐं उनके तथा उनके परिवार के साथ हैं, ईश्वर उन्हे इस कठिन परिस्थितियों में सामान्य रहते हुये अपने कर्तव्य का पालन करने योग्य धैर्य दे ।
पवन जी के पिताजी का नाम श्री ओंकारनाथ मिश्र है. वह 1950 मे पैदा हुये थे और 1 अगस्त को महाप्रयाण कर गये. वह एक सच्चे कर्मयोगी थे जिन्होने जीवन भर सच का साथ नही छोडा. जौनपुर के छंगापुर गाव मे जन्म और वही मृत्यु. वह पवन जी के पास कानपुर मे  ही थे किंतु से दो दिन पूर्व गांव चले गये थे. राखी से एक दिन पहले  पवन जी की बुआ आयी थी उन्ही से बात करते करते अचानक सीने मे दर्द की शिकायत की और कोई कुछ करता वह इस दुनिया से प्रस्थान कर गये।
कानपुर ब्लागर्स असोसिएसन ऐसे महापुरुष को अपनी श्रद्धांजलि देता है और शोकसंतप्त परिवार के साथ है.