मंगलवार, 26 जून 2012

क्यो ?


















अपनी नज़र मे मेरी निगाह फिर क्यो ढूंढते हो
अपनी तन्हाई मे मेरी कमी क्यो महसूस करते हो,

अपने अहसासो मे मेरी छुअन क्यो तलाशते हो
अपने लफ्ज़ो से ऐसे फासले क्यो तय करते हो.


सोमवार, 25 जून 2012

कभी तुम मिलो जो...










कभी तुम मिलो कभी हम मुलाकातो
का ये सिलसिला यू ही चलता रहे

यू ही मुसकराते रहो तुम और
ये हसीन पल का सफर चलता रहे

शाम हो तो ठंडी हवा चले तुम्हारी
महक यू ही महसूस करते रहे

रात हो तो चान्दनी का इंतज़ार ना रहे
सुबह हो तो रोशनी की नज़र ना रहे

...उसके बाद वो रो पडे








"उन्होने देखा और आंसू गिर पडे,
भरी बरसात मे जैसे फूल बिखर पडे
दुख ये नही कि उन्होने हमे अलविदा कहा, 
दुख तो ये है कि उसके बाद वो रो पडे".

शनिवार, 23 जून 2012

निशा से.. तारिणी अवस्थी की कानपुर ब्लागर्स असोसिएसन पर प्रथम रचना: स्वागत्





















हे निशे! कितनी विचित्र!
वर्षों से रोज़ मुझको कहीं
बहका के ले जाती हो तुम |
एकांत है चहु और
हम ही हैं प्रकाशित इस समय |


व्याप्त हो हर वास्तु में तुम
दृश्य में, अदृश्य में |
स्वयं रहती हो मगर
अदृश्य सुदृढ़-निश्चयेन |
औ' तुम्हारा मौन
आकृष्ट मुझको नित्य करता |


स्वर नहीं सुन पा रही हूँ
देख भी सकती नहीं,
लेकिन अगर इस सृष्टि में
बस एक तुम हो और मैं,
सोचती हूँ ठीक हो |


संचार होता है ह्रदय में
शक्ति का तव शांति से |


तव उपस्थिति से नहीं
एकांत में व्यवधान पड़ता,
अपितु यह एकांत कुछ
अधिक सुन्दर हो गया!


रातभर जागकर जभी
लगता है मनो कुछ कहें,
लो भाग निकलीं यों ही तुम
मैं रह गयी अवाक ही |


नींद से बोझिल नयन से,
देख मैं हूँ पा रही,
सूर्या की किरणों को आते,
बल्ब को कुछ क्षीण करते |
     ...... तारिणी अवस्थी