रविवार, 27 फ़रवरी 2011

मै लिख नहीं सकता

मै लिख नहीं सकता, क्योकि मेरे ज्ञान चक्षु बंद है.
  हाँ मै पंकज नहीं  हूँ, नहीं मेरी वाणी में मकरंद है.

अभिव्यक्ति , खोजती  है चतुर शब्दों का संबल
सक्रिय मस्तिस्क और  खुले दृग , प्रतिपल

दिवास्वप्न जैसा क्यों मुझे सब प्रतीत होता है.?
क्या हर लेखक का लिखने का अतीत होता है?

क्या मै संवेदनहीन हूँ या मेरी  आंखे बंद है
या नहीं जानता मै , क्या नज़्म क्या छंद है.

वेदना  को शब्द देना, पुलकित  मन का इठलाना.
सर्व विदित है शब्द- शर , क्यों  मै रहा अनजाना

मानस सागर में  है उठता , जिन  भावो  का स्पंदन.
तिरोहित होकर वो शब्दों में, चमके जैसे कुंदन.

4 टिप्‍पणियां:

  1. दिवास्वप्न जैसा क्यों मुझे सब प्रतीत होता है.?
    क्या हर लेखक का लिखने का अतीत होता है?

    होता तो है क्योकि कल्पना की भी धरा होती ही है ।
    और उसी धरा के स्वच्छंद आकाश में कल्पनाये नये नये आकार लेती है

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  2. मै लिख नहीं सकता, क्योकि मेरे ज्ञान चक्षु बंद है.
    हाँ मै पंकज नहीं हूँ, नहीं मेरी वाणी में मकरंद है.


    कानपुर ब्लागर्स पर लिखने का शुक्रिया बड़े भाई
    वैसे क्या चतुराई से बात कही गयी है

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  3. मानस सागर में है उठता , जिन भावो का स्पंदन.
    तिरोहित होकर वो शब्दों में, चमके जैसे कुंदन.
    bahut sundar bhaw

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