शुक्रवार, 25 फ़रवरी 2011

तुम



जब तुम न थे ,कुछ भी न था
ना खुशी थी ,गम भी न था
रातें नहीं बेचैन थीं
दिन भी नहीं तन्हा से थे
तुमने हमें बदला है ज्यों
हम भी नही यों हम से थे
तुम मिले तो हमने जाना
रातों को जगना क्या है
छत पर चलकर रात-रात भर
तारों को गिनना क्या है
महफ़िल में तेरी यादों में
खोकर तन्हा होना क्या है
यादों में खोकर इक पल हँसना
और इक पल रोना क्या है

                                                   आशुतोष त्रिपाठी

3 टिप्‍पणियां: