सोमवार, 12 नवंबर 2012

तुम मुझे तारो न तारो राम

तुम मुझे तारो न तारो राम 
मै नहीं करता तुम्हे बदनाम 
पतित पावन नाम की देकर दुहाई 
मै न दंगल के लिये ललकारता हूँ 
दीन बन्धू की सुजस चर्चा बहुत है 
दींन बनना हेय पर मै मानता हूँ ।
अब निरंकुश राज्य सत्ता
चल न पायेगी कंही पर 
राय लेने द्वार पर आना पड़ेगा 
है बने रहना अगर सत्ता शिखर पर 
जो कहें हम गीत वह गाना पड़ेगा ।
घिस गये हैं वोल सदियों के चलन से

हो गये खोटे पुराने दाम
"धनिक की दुनिया अभी तक है सुरक्षित
पर न निर्धन के रहे अब राम "
इसलिये अब दीन को दुनिया दिला दो
तुम कुबेरों के रहो मेहमान
तुम मुझे तारो न तारो राम
मै नहीं करता तुम्हे बदनाम ।।
दूसरे का छीनना हक़ आज का युग धर्म है
न्याय का लेबल लगा अन्याय करना कर्म है
पूर्ण संरछण सुनहरे चोर तुमसे पा रहे हैं
दीन बलि देकर सभी से दीनबन्धु कहा रहे हैं
दीन बनकर इसलिये अब द्वार आना ब्यर्थ है
पाप संरक्षित तुम्ही से, पतित का क्या अर्थ है ?
विक गये तुम , किन्तु निष्ठा अभी कवि की अनबिकी है
तरण -नौका की स्वयं पतवार लेकर
वह डटा है
हट गये तुम मार्ग से
या
(छद्दम लीला कर रहे हो )
पर नहीं अब तक हटा
सामान्य- ज्ञान विश्वाश है ।
घंटियाँ घन्टे बहुत हैं बज चुके
पूज्य अब कवि के लिये
बस
जन समर्पित मुक्ति -मार्गी काम है ।
तुम मुझे तारो न तारो राम
मैं नहीं करता तुम्हे बदनाम ........

4 टिप्‍पणियां:

  1. दीन बलि देकर सभी से दीनबन्धु कहा रहे हैं
    दीन बनकर इसलिये अब द्वार आना ब्यर्थ है
    पाप संरक्षित तुम्ही से, पतित का क्या अर्थ है ? बहुत ही सुन्दर , आपका स्वागत है इस मंच पर, आशा है की हम सभी आपका सानिध्य यूही पाते रहेंगे .....

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  2. आपका स्वागत है. आपकी रचनाओ से यह मंच सम्रिद्ध होगा.

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  3. बढ़िया प्रस्तुति ... दीपावली पर्व के शुभ अवसर पर आपको और आपके परिजनों को हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं ....

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