शनिवार, 3 नवंबर 2012

यही जानता हूँ यही जानता था


                          ना   ही   तुम्हे   कल   तो  मै  जानता  था 
                          ना  ही   तुम्हे   कल   तो   पहचानता   था 
                          मिले कब  थे कैसे और किस राह पर  हम
                          न  अब   जानता  हूँ  न  तब  जानता  था 

                         सूरत   तुम्हारी  ही   भाती  है  मन  को 
                         अदाएं तुम्हारी  लुभाती है     मन    को   
                         पहली  नजर  में  था   कायल  मै   तेरा 
                         यही    जानता    हूँ    यही   जानता   था 

                        खुदा  की  थी  मर्जी   जो  उसने  मिलाया 
                        मोहब्बत   में   तेरे   वो   जीना  सिखाया 
                        था किस्मत में  लिखा खुदा  ने तुम्ही को
                        यही   जानता    था    यही   जानता   हूँ 

1 टिप्पणी:

  1. महोदय जी,
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    जो महान ब्लौग आप ने हम सब को दिया है ये वास्तव में प्रशंसनीय कार्य है।
    महोदय जी, मुझे पुरा विश्वास है कि आप मेरे इस कार्य को संपूर्ण करने में मेरी मदद करेंगे।

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