रविवार, 4 नवंबर 2012

ऐ प्रेम तुम हो क्या?

 ऐ  प्रेम तुम हो क्या?
 समर्पण का  नाम ,
या निर्मल सा एक भाव ?

 किसी ने  पाया  तुम्हे उजाले में,
किसी  ने अंधेरो में पाया,
कोई कहता है की सुख हो तुम ,
कोई कहे दुःख  की छाया .
ऐ  प्रेम तुम हो क्या?

एक  सरसराहट से ,
       एक झनझनाहट से ,
मीठी सी बोली से ,
   चुभते से बाणों से .
    एक एहसास हो   , 
      जो अनकहा है ,
या  पन्ना  जिंदगी का ,
जो अनछुआ है .
 ऐ  प्रेम तुम हो क्या ?

कोई त्याग में देखता है तुम्हे ,
कोई ममता में मानता है ,
किसी के लिए शांति हो तुम ,
कोई युद्ध से  जानता  है .
दिव्यता की मूरत हो  ,
या  सुन्दर सा ख्वाब हो  .
  ऐ  प्रेम तुम हो क्या?
 ऐ  प्रेम तुम हो क्या?
                                                 "अमन मिश्र "

 

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