शुक्रवार, 31 मई 2013

अबाधित धार हो प्रभु स्नेह की तुम : तारिणी

 









अज अनन्त निर्विकार
प्राणनाथ करुनागार
निरुद्वेल निरुद्वेग
निश्चल सरोवर चेतसः।
अन्तरज्ञ सर्वज्ञ
शब्द सर्वथा निरर्थ
जानो सब नाथ
करो कृपा काश्यप पर।

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अबाधित धार हो प्रभु स्नेह की तुम
ह्रदय के केंद्र में स्थित शुभ्र आसन ।
मनस् की शुद्धता के स्रोत हो हे!
प्राण का उल्लास हो!
सर्वथा शरण लो प्रभु,
संशय सभी हे! दूर कर दो।
निरंतर तव चरण रत रहे जन और
स्नेह जल से आप्लावित।

3 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी यह अप्रतिम कविता 'निर्झर टाइम्स' पर लिंक की गई है।
    कृपया http://nirjhar-times.blogspot.com पर पधारें,आपकी प्रतिक्रिया का सादर स्वागत् है।

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