शुक्रवार, 18 फ़रवरी 2011

जीवन पथ


था एक अन्जाना अजनबी सा रास्ता
जहाँ न किसी से किसी का कोई वास्ता
अचानक एक नारी आई भीड़ से निकलकर
गोद में एक प्यारे से शिशु को लेकर
गोद से आया वह शिशु उतरकर
कदम बढाया माँ की ऊँगली पकड़कर
जमीन पर गिर गया वह लड़खड़ाकर
माँ ने कुछ  साहस दिया उसे उठाकर
चलते चलते उसने चलना सीख  लिया
मासुम मुस्कान से माँ का ह्रदय जीत लिया
जीवन पथ पर एक मोड़ आया तभी
जिसके बारे में उसने सोचा न था कभी
माँ बोली जा जीवन पथ पर खोज ले मंजिल का पता
व्यर्थ तेरा जन्म नहीं दूनिया को इतना दे बता
जीवन के इस पथ पर अकेले हीं तुझे चलना है
यह एक संग्राम अकेले हीं तुझे लड़ना है
इस तरह और भी कुछ समझा बुझा कर
कहा उसने जा पुत्र अब देर न कर
सुगम थी राह , वह आगे बढ़ने लगा
निर्भीक, निडर सा वह आगे चलने लगा
मंजिल की राह होती इतनी आसान नहीं
इस बात का था उसे अनुमान नहीं
वह मार्ग अब दुर्गम होने लगा
साहस भी उसका खोने लगा
सामने माँ का चेहरा मुस्कुराने लगा
आगे बढ़ने की हिम्मत बढ़ाने लगा
फिर से आगे बढ़ने लगा ताकत बटोरकर
समस्याएँ आने लगीं और बढ़चढ़  कर
ठोकर खाकर अब वह नीचे गिर पड़ा
कुछ याद कर फिर से हो गया खड़ा
खुद हीं बोला आत्मविश्वास से भर कर
अब रुकना नहीं मुझे थककर
देखो पथ पर अग्रसर उस पथिक को
शक्ति पुत्र, साहस के बेटे, धरती के तनय को
भयंकर धुप अंधड़ और वर्षा उसने सब सहा
दामिनी से खेला, संकटों को झेला पर आगे बढ़ता रहा
कुछ साथी भी बने उसके इस राह में
संकटों को छोड़ा,तो कोई ठहर गए वृक्ष की छांह में
सीखा उसने मिलता नहीं कोई उम्र भर साथ निभाने को
यहाँ तो मिलते हैं राही बस मिल के बिछड़ जाने को
उस साहसी मन के बली को
तृष्णा मार्ग से डिगा न सकी
उस सयंमी चरित्र के धनि को
विलासिता भी लुभा न सकी
मंजिल पर ध्यान लगाय वह आगे बढ़ता रहा
मन को बिना डिगाए  संकटों से लड़ता रहा
आखिर जीवन में वह शुभ दिन आ हीं गया
वह पथिक अपने पथ की मंजिल पा हीं गया
सफलता उसके कदम चूमने लगी
खुशियाँ चारों ओर झूमने लगीं
कल तक थे अन्जान, आज उससे पहचान बनाने लगें
सम्मान का सम्बन्ध तो कोई ईर्ष्या का रिश्ता निभाने लगे
सबने देखा सफलता को उसका चरण गहते हुए
न देखा किसी ने मुश्किलें उसे सहते हुए
आज जो वह पथिक मंजिल तक आया है
भाग्य का नहीं उसने कर्म का फल पाया है
संसार का तो यही नियम चलता आया है
यूँहीं नहीं सबने कर्म को भाग्य से बली बताया है

3 टिप्‍पणियां:

  1. आज जो वह पथिक मंजिल तक आया है
    भाग्य का नहीं उसने कर्म का फल पाया है
    sahi kaha aapne sundar abhivyakti, abhar

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  2. संसार का तो यही नियम चलता आया है
    यूँहीं नहीं सबने कर्म को भाग्य से बली बताया है
    true

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  3. होयै वही जो राम रचि राखा ।

    जो जस करै सो तसि फल चाखा ॥

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