शनिवार, 20 अक्टूबर 2012

उम्मीद

तुम ही थी मेरे सपनो में ,
जिन्दगी में बस तुम्हारी ही चाहत थी .

पर तुम अब साथ साथ भी नहीं,
 सपनो से दूर ,
एक झलक  को तरसाती।
क्या करू मैं , देखू सपने तुम्हारे ,
या बढ चलूँ  जिंदगी में आंगे ..
शायद  अगले मोड़ पे मिल जाओ तुम जिंदगी के ,
फैलाये हुए बाहें  अपनी ,करती मेरा ही इन्तेजार ..
पर अभी तो तुम नहीं हो ,
 न झलक भी है तुम्हारी ...........
चलो मैं आंगे बढता हु ,
 बस उम्मीद लिए।
 चलो मैं आंगे बढता हु बस ,तुम्हारे लिए।
 तुम फिर मिलोगी ना?

                                             "अमन मिश्र "

3 टिप्‍पणियां:

  1. पर अभी तो तुम नहीं हो ,
    न झलक भी है तुम्हारी ...........
    चलो मैं आंगे बढता हु ,
    बस उम्मीद लिए।
    चलो मैं आंगे बढता हु बस ,तुम्हारे लिए।
    तुम फिर मिलोगी ना?
    बस्स ऐसे लिखते रहो वह आगे मिल ही जायेगी

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  2. बहुत बहुत धन्यवाद् , और आशा करता हु की आपकी बात सच ही साबित हो.

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