आज मिली वो मुझे युही एक रास्ते के मोड़ पे ,
शायद जल्दी में थी या लज्जा थी कारण,
की बस मुस्कराहट ही देख पाया मै उसकी शक्ल पे.
और आंगे बढ गयी वो,
आज मुझे देख के फिर मुस्काई वो ,
कभी हो जाती थी बाते उससे युही ऐसी ही टक्करों पे ,
पर अब सिर्फ मुस्कराहट ही बाकी थी होठों पे ,
शब्दों की माला गायब थी.
सोचा और याद आया फिर वो इज्जत का ताना
,जिसे न पसंद था मेरा उसका साथ .
वो समाज का चेहरा जो दिखता था बड़ा अच्छा ,
पर बातो में काटे से थे उसके .
बस यही बंधन था उसके मेरे बीच ,
हमारी बातो में ,और हमारी मुस्कराहट पे.
''अमन मिश्र ''
शायद जल्दी में थी या लज्जा थी कारण,
की बस मुस्कराहट ही देख पाया मै उसकी शक्ल पे.
और आंगे बढ गयी वो,
आज मुझे देख के फिर मुस्काई वो ,
कभी हो जाती थी बाते उससे युही ऐसी ही टक्करों पे ,
पर अब सिर्फ मुस्कराहट ही बाकी थी होठों पे ,
शब्दों की माला गायब थी.
सोचा और याद आया फिर वो इज्जत का ताना
,जिसे न पसंद था मेरा उसका साथ .
वो समाज का चेहरा जो दिखता था बड़ा अच्छा ,
पर बातो में काटे से थे उसके .
बस यही बंधन था उसके मेरे बीच ,
हमारी बातो में ,और हमारी मुस्कराहट पे.
''अमन मिश्र ''
बस यही बंधन था उसके मेरे बीच ,
जवाब देंहटाएंहमारी बातो में ,और हमारी मुस्कराहट पे.
बढिया है सुन्दर्