मंगलवार, 30 अक्टूबर 2012

साथ

आज जब देखता हु ,उनको मुझे न पहचानते हुए .
  याद आती  है ,उनकी वो हसी , वो मुस्कराहट।

वो वादे ,जो दोनों ने किये ,जीवन भर के लिए।

क्या यही तक था मेरा उसका साथ ,
वो साथ जो आजीवन का था ?
क्या गलती की मैंने, कौन सी मजबूरी थी उसकी ,
की बेवफा न होते हुए भी , वो वफ़ा न निभा सके .

ख़ामोशी सी ओढ़ लेते है, वो मुझे देखते ही .
और चुपके से निकल जाते है सामने से ,
नज़ारे चुरा के ,
जैसे हमें वो जानते ही नहीं।

न वो लज्जा है पहले सी , बस नजरो के बंद दरवाजे ही दिखते है।
कुछ तो बोले वो ,   या नज़ारे ही मिलाये ,
हम भी चुप है     और    वो भी जैसे हो पराये .

मन की बाते दोनों के मन में ही दफ़न हो जाती है ,
बस एक मुलाकात  होती है ,जो मिलना कम बिछड़ना ज्यादा है।

                                                                 "अमन मिश्र "
                           

शुक्रवार, 26 अक्टूबर 2012

प्रथम लेख

        यूँ ही बैठा कुछ लिखने की सोच रहा था तभी अचानक मेरे एक जिगरी यार की कॉल हमारे पास आती है मेरी उनसे बात होती है | उनसे हमारी बात क्या हुई यह तो मै नही बताऊंगा लेकिन उनसे बात करने के बाद मुझे मेरे लेख लिखने का मुद्दा मिल गया जो कि आपके सामने प्रस्तुतु कर रहा हूँ और साथ ही साथ अपने उस यार को धन्यवाद भी देता हूँ............
        कल जिन आँखों में आपने मोहब्बत देखी थी आज उन्ही आँखों में नफरत देख कर आप उन आँखों को गाली क्यूँ देते हो ? कल आपको उनसे बहुत प्यार था और उन्हें भी आपसे लेकिन आज इतनी नफरत क्यूँ ?
क्या कल आपकी नज़रों ने धोखा खाया था ? क्या कल आपने कोई गलत फैसला लिया था ?
       अगर हाँ तो मोहब्बत के आशियाने के बासिदों को कहता हूँ कि वो अभी बच्चे है और प्यार मोहब्बत बच्चों का खेल नहीं है जो कि गिल्ली डंडे की तरह खेला जा सके | ऐसा केवल गिल्ली डंडे की स्थिति में संभव है कि गिल्ली या डंडा में से कोई एक टूट जाये तो दूसरा ले लो | प्यार मोहब्बत इन चीजों को इजाजत नहीं देता | मेरा बहुत सीधा सा तर्क है मोहब्बत के आशियाने के बासिंदों से कल जब आप उनके साथ वक्त गुजार रहे थे तो क्या आपको तब वो कमियां नहीं दिखाई दी थी जो आज आप उनसे दूर होने पर देख रहे हैं या आपसे दूर होते ही उनमे वो कमियां आ गयी ? अगर नहीं तो गलती आपकी है |
        अगर नहीं तो मोहब्बत के आशियाने के बासिदों को कहता हूँ कि अपनी इज्जत बचाना सीख लो | अपने ही फैसले से मुकरना वह भी वो फैसला जिसे आपने अपने लिए  लिया था  कितनी बड़ी बेइज्जती वाली बात होती है शायद इसका अंदाजा सभी को होगा | दूसरे भी आप पर विश्वास करना छोड़ देंगे क्यूंकि जब अपने लिए तो आप सही से कुछ कर नहीं पा रहे हैं तो भला आप दूसरे के लिए कुछ करेंगे इस बात की उम्मीद कोई कैसे करेगा ?
       दोस्त आज मोहब्बत की परिभाषा बदल चुकी है इसके कारण मोहब्बत के बारे में ज्यादा कुछ नहीं कहूँगा लेकिन एक बात जरूर कहूँगा "मोहब्बत अगर गुनाह है और मोहब्बत करने की कोई सजा है तो उस सजा का पहला हकदार हर वो व्यक्ति है जिसके अंदर इंसानियत नाम की चीज है" क्यूंकि मोहब्बत मैंने तो क्या इस दुनिया का हर वो व्यक्ति किया है  जिसके अंदर थोडा भी इंसानियत ज़िंदा है  |
                                  मेरे ब्लॉग दीप वार्ता से .................................

शनिवार, 20 अक्टूबर 2012

उम्मीद

तुम ही थी मेरे सपनो में ,
जिन्दगी में बस तुम्हारी ही चाहत थी .

पर तुम अब साथ साथ भी नहीं,
 सपनो से दूर ,
एक झलक  को तरसाती।
क्या करू मैं , देखू सपने तुम्हारे ,
या बढ चलूँ  जिंदगी में आंगे ..
शायद  अगले मोड़ पे मिल जाओ तुम जिंदगी के ,
फैलाये हुए बाहें  अपनी ,करती मेरा ही इन्तेजार ..
पर अभी तो तुम नहीं हो ,
 न झलक भी है तुम्हारी ...........
चलो मैं आंगे बढता हु ,
 बस उम्मीद लिए।
 चलो मैं आंगे बढता हु बस ,तुम्हारे लिए।
 तुम फिर मिलोगी ना?

                                             "अमन मिश्र "

गुरुवार, 18 अक्टूबर 2012

बंधन

आज मिली वो मुझे युही एक  रास्ते के मोड़ पे ,
 शायद जल्दी में थी या लज्जा थी कारण,

की बस मुस्कराहट ही देख पाया मै उसकी शक्ल  पे.
और आंगे बढ गयी वो, 

आज मुझे देख के फिर मुस्काई वो ,

कभी हो जाती थी बाते उससे युही  ऐसी ही टक्करों पे ,
 पर अब सिर्फ मुस्कराहट ही बाकी थी होठों पे ,
 शब्दों  की माला  गायब थी.

सोचा और याद आया  फिर वो इज्जत का ताना
 ,जिसे न पसंद था मेरा उसका साथ .

वो समाज का चेहरा जो दिखता था बड़ा अच्छा ,
पर बातो में काटे से थे उसके .

बस यही बंधन था उसके मेरे बीच ,
हमारी बातो में ,और हमारी मुस्कराहट पे.

                                                ''अमन मिश्र ''

मंगलवार, 16 अक्टूबर 2012

जो कभी मिला ही नहीं।

अनजान  है  वो  मेरे  लिए , शक्ल  या सूरत मैंने देखी नहीं।
बस पड़ता हु उसकी बातो को ,उसकी हसी को।

है उसका इन्तेजार की कब आये वो, कुछ देर के लिए ही सही।
  मेरे पास ना सही , दूर से ही मुस्कुराये ,मेरा नाम ले वो .

बने रंग मेरे जीवन की वो और यूही रंग भरती रहे .
ख़ुशी हो या दुःख हो मेरे साथ वो चलती रहे .

 हो सवेरा या रात  का साया ,मेरे साथ हो वो . 
बस साथ में हो ,हम हमेशा .....

वो नूर है मेरी नन्ही सी दुनिया का , कोई गम न होगा उसे।
बस साथ दे वो मेरा हमेशा हमेशा के लिये।  
                                                                ''अमन मिश्र ''    
                    

सोमवार, 15 अक्टूबर 2012

यादे


रात की चांदनी में ,उसकी आहट. मिलना चुप के से ,वो बातो की नजाकत .
यूही खिलखिलाना मेरी हर बात पे उसका ,मुझे याद आता है.
उसका वो धीरे से पलके झुकाना , बातो ही बातो में नज़ारे चुराना
मुझे याद आता है........
वो आना उसका , खिलना कली सा ,
महक
ना वसंती हवाओ के जैसा ,
मुझे याद आता है ,
मुझे याद आता है.
आज वो नहीं है ,पर यादे है उसकी ,
एक तस्वीर भी जो दिल में बसी है ,
उसे ही देख के ,मै कहता हु खुद से ,
वो मुझे याद आता है,
तुम मुझे याद आते हो.
''अमन मिश्र ''

रविवार, 14 अक्टूबर 2012

जब कोइ छोड़ देता है अपने ही "स्व " को ..राजीव










जब अपने ही "स्व "  को
कोइ छोड़ देता है,
तब उसी समय
अपनी जिन्दगी
किसी दूसरे के
हाथो में दे देता है
खिलौना बन कर
रह जाता है
वह इस संसार में,
नामोल रहा जाता  है
उसका  शरीर
इस बाजार में।
(मानव मूल्य एवम मानव धर्म के हिमायती श्री ए नागराज जी को समर्पित  )