गांधीजी की आकस्मिक हत्या न सिर्फ भारत को ही नहीं हिला दिया था बल्कि सम्पूर्ण विश्व इस घटना से स्तब्ध रह गया था । मानवता के पुजारी को खो कर सिर्फ हम नहीं रोये बल्कि स्वतंत्रता के और भी सेनानी रो पड़े । उनकी हत्या की खबर पर मार्टिन लूथर किंग ने ये लिखा था -------
मुझे नहीं मालूम,
किस धातु का बना था वह,
टेक, मिसीसिपी, वोल्गा और हंग्हो
सभी तो लहराती थी.
उसमें हिमालय ही नहीं,
अलप्स की ऊँचाई भी समाहित थी।
उनमें हिंद महासागर ही नहीं
काला सागर, प्रशांत महासागर
सभी अपनी गहनता लिए बैठे थे
कैसे थे उनके संघर्ष के हथियार
नमक सत्याग्रह
दांडी प्रयाण
चरखा , खादी, असहयोग
और अनशन !
कैसी थी उनकी लड़ाई
जिसमें विद्वेष - घृणा के लिए
कोई जगह न थी।
हड्डियों के ढांचे से
परास्त किया
उन सत्ताधारियों को।
कानपुर मात्र उद्योगों से ही सम्बंधित नहीं है वरन यह अपने में विविधता के समस्त पहलुओ को समेटे हुए है. यह मानचेस्टर ही नहीं बल्कि मिनी हिन्दुस्तान है जिसमे उच्चकोटि के वैज्ञानिक, साहित्यकार, शिक्षाविद राजनेता, खिलाड़ी, उत्पाद, ऐतिहासिकता,भावनाए इत्यादि सम्मिलित है. कानपुर ब्लोगर्स असोसिएसन कानपुर के गर्भनाल से जुड़े इन तथ्यों को उकेरने सँवारने पर प्रतिबद्धता व्यक्त करता है इसलिए यह निदर्शन की बजाय समग्र के प्रति समर्पित है.
रविवार, 29 जनवरी 2012
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महात्मा गान्धी जी सर्वदा प्रासंगिक रहेगे
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