कानपुर – एक ऐसा शहर है जहाँ एक तरफ शिक्षा का सर्वश्रेष्ठ संस्थान आई आई टी है तो दूसरी तरफ गणेश शंकर विद्यार्थी मेडिकल कालेज । एच . बी, टी. आई. जैसा सितारा अपनी रौशनी से अनगिनत छात्र छात्राओं का भविष्य उज्ज्वल कर रहा है तो आई. टी. आई. भी निरन्तर रोजगार परक शिक्षा दे रहा है । आज दुनिया का शायद ही कोई ऐसा देश होगा जहाँ हम कानपुर के लोगो ने अपनी बुद्धि का लोहा ना मनवाया हो । मगर इसके बावजूद जब हम किसी बाहरी(दूसरे शहर) के व्यक्ति से यह कहते है कि हम कानपुर से है तो यह सुनते ही यह सुनने को मिल जाता है अच्छा आप कानपुर से है , वो तो बहुत गंदा शहर है ना ।और हमारे पास कोई जवाब नही होता । क्योकि यह हमारे शहर का एक कडवा सच है । कानपुर का इतिहास बहुत ही गौरव पूर्ण रहा है । एक समय वह भी था जब इसे देश का मेन्चेस्टर कहा जाता था ।
आखिर शहर की इस छवि के लिये कौन जिम्मेदार है , यहाँ पर हर तीसरा व्यक्ति पान मसाला खाता नजर आता है , शहर की कोई इमारत , कोई गली कोई सडक ऐसी नही जिस पर हर दस मिनट पर कोई पान मसाला की पीक से उसे सजाता ना हो । बडे गर्व के साथ लोग ऐसा करते हैं । अक्सर हम अखबारों मे पढ तो लेते है कि यह गुटखा हमारे लिये कितना नुकसान दायक है , लेकिन अगले ही क्षण एक और मसाले का पाउच खोल कर खाते है और पैकेट किधर फेंका ये पता ही नही होता । कभी यह पैकेट गंगा जी को अर्पित कर दिया जाता है तो कभी किसी पार्क में बिखरे पत्तों से ज्यादा ये खाली पाउच देखने को मिल जाते है । हम रोज अपने शहर को क्या देते है - सैकडों टन कूडा , प्रदूषण को बढावा , कानपुर की छवि को धूमिल करने वाली आदते , नन्हे मासूमों के हाथों मे किताबो की जगह गुटखों की लडियां ,सडकों के किनारे पेडों की जगह छोटी सी तख्त पर सजी इस मीठे जहर को बचती दुकानें ।
हम पढ लिख कर अपना भविष्य बनाने तो शहर से बाहर यह कह कर चले जाए है कि यहाँ कुछ है ही नही । आखिर जो शहर हमे पढा लिखा कर इस योग्य बनाता है कि हम शान से दुनिया मे अपना सिर उठा कर चल सके , उस शहर का भविष्य कौन बनायेगा ।क्या अपने शहर को छोड कर चले जाना या अपने घर को साफ करना ही पर्याप्त है , हम कब अपने शहर को अपना घर समझना शुरु करेगें । कब हम यह समझेंगें की हम सभी अपने शहर के प्रतिनिधि हैं हमें ऐसे काम करने चाहिये जिससे हमारे शहर का नाम हो । आज गणतंत्र दिवस के इस शुभ अवसर पर मै आप सभी पाठकों से यह निवेदन करना चाहती हूँ कि हम सबको इस दिशा में कुछ सार्थक करने की पहल करनी चाहिये । हमे लोगों की इस आदत को कम करने या छुडाने के सच्चे प्रयास करने होंगे ।
हम पढ लिख कर अपना भविष्य बनाने तो शहर से बाहर यह कह कर चले जाए है कि यहाँ कुछ है ही नही । आखिर जो शहर हमे पढा लिखा कर इस योग्य बनाता है कि हम शान से दुनिया मे अपना सिर उठा कर चल सके , उस शहर का भविष्य कौन बनायेगा ।क्या अपने शहर को छोड कर चले जाना या अपने घर को साफ करना ही पर्याप्त है , हम कब अपने शहर को अपना घर समझना शुरु करेगें । कब हम यह समझेंगें की हम सभी अपने शहर के प्रतिनिधि हैं हमें ऐसे काम करने चाहिये जिससे हमारे शहर का नाम हो । आज गणतंत्र दिवस के इस शुभ अवसर पर मै आप सभी पाठकों से यह निवेदन करना चाहती हूँ कि हम सबको इस दिशा में कुछ सार्थक करने की पहल करनी चाहिये । हमे लोगों की इस आदत को कम करने या छुडाने के सच्चे प्रयास करने होंगे ।
माना अकेले पथ पर चलना थोडा मुश्किल होता है ।
साथ अगर मिल जाये तो सब कुछ मुंकिन होता है ॥
सच में बहुत तकलीफ होती है ..जब भरे हुए मुह और सड़ते हुए दांत देखते है और इधर उधर पिचकारी मारते हुए लोग ...गुटखा ,खैनी,सुरती पता नहीं क्या क्या सिर्फ कानपुर ही नहीं पूरे पूर्बी उत्तर प्रदेश की यही हालत है ..
जवाब देंहटाएंएक ही उल्लू काफी है बरबाद गुलिस्ता करने में
जवाब देंहटाएंहर शाख पे उल्लू बैठे है अंजामे गुलिस्ता क्या होगा
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