मंगलवार, 11 जून 2013

ओ मेरी "परछाई"

घर से दूर .....
अपनों से दूर.....
"तुम" से दूर ....होकर
मैंने ये जाना है कि ........ 
जीना कितना कठिन है .....
और मरना कितना आसान ..... 

ओ मेरी "परछाई"....
तेरे बिना मै भटक रहा हूँ....
प्रेत बनकर अंधेरी 
गलियों में ......




3 टिप्‍पणियां:



  1. हमी थे वो लोग अभागे
    परछाई के पीछे भागे
    ये जिंदगी तेरी गलियों में
    दिन को सोये रात को जागे
    आँख मिचौनी मौत खेलती
    ये, परछाई , कभी तुम पीछे कभीआगे हम .

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