मंगलवार, 26 फ़रवरी 2013

जब प्रकृति असहनीय दर्द देती है



माँ की गोद में एक छोटा सा बच्चा एक ऐसे दृश्य का परिचायक होता है जिसमे वो सबसे ज्यादा सुरक्षित व संपूर्ण महसूस करता है. बच्चा अपनी माँ को अलग अलग तरीको से रिझाने की कोशिश करता है कभी वह  अपनी तोतली बातो से,तो कभी अपने अबोध बर्ताव से,तो कभी अपनी अठखेलियो से सब को मोहित करता है. एक बेटे का उसकी माँ के पास होंना किसी वरदान से कम नहीं है.

कभी क्या सोचा है उस बेटे का दर्द जो ना चाह कर भी अपनी माँ से हमेशा के लिए दूर हो जाता है.  यह तो सब जानते है की एक बेटे के ना होने पर सबसे ज्यादा उसकी माँ को दर्द होता है पर क्या कभी किसी ने उस बेटे के बारे में सोचा है.क्या कभी सोचा है की उस बेटे को भी अपनी माँ एवं अपने परिवार के अन्य जानो के साथ ना होने का दर्द महसूस होता है.माँ के दर्द को सांत्वना देने के लिए तो उसके अन्य परिवार के सदस्य होते है परन्तु बेटे के पास... उस बेटे के पास तो कोई नहीं होता है जो उसके दुःख दर्द को बांट सके.......

कभी कभी प्रक़ृति इतनी क्रूर हो जाती है कि इन सम्बन्धो को तोडने पर उतारू हो जाती है. वह बेटे को माँ से बहुत दूर भेज देती है जहा से वह कभी आ नही सकता. उस बेटे को कभी नही पता होता है कि वो उम्र के इस पड़ाव पर आ कर इन सब से दूर हो जायेगा. उसने तो अपने जीवन की बाईसवी दिवाली भी नहीं देखी. उसे तो पता ही नहीं चला की  घर की जिम्मेदारी क्या होती है , उसने तो अब अपनी छोटी बहन की पढाई के बारे में सोचना ही शुरू किया था,उसने तो अभी अपने पिता से अपनी बात कहनी ही सीखी थी, वो तो चाह कर भी अपने पिता की जिम्मेदारो के वाहन करने में असमर्थ रह गया.

वह अभी सारी जिम्मेदारियो को उठाने के लिये अपने कन्धे मजबूत कर ही रहा था...पर प्रकृति एवं नियति ने शायद उसके लिये कुछ दूसरी ही कहानी बना के रखी थी था. वो ना चाह कर भी अपने घर परिवार से हमेशा के लिए दूर हो गया. वो चाहता था उन सभी लोगों में शामिल होकर अपने जीवन को कुछ अर्थ दे सके.परन्तु हत भाग्य ऐसा न हो पाता है

उस परम शक्ति से हम यही प्रार्थना करते है की यदि किसी को संतान दे तो उसे असमय अपने पास बुलाने का कोई रास्ता ना बनाये अपितु उन माँ बाप को संतानहीन ही रहने दे क्योंकि यह दर्द उस असहनीय दर्द से कही कम है. और संतान  माँ बाप ,भाई बहन  एवं परिवार के अन्य सदस्यों से इतना दूर ना करे और साथ ही यदि किसी का दुनिया से हमेशा के लिये चले जाना सब उसके पूर्व जन्मो के कर्म है तो हे ईश्वर एक व्यक्ति को उसके बुरे कर्मो का फल उसे इसी जीवन में दे दे ताकि उसे उसकी भूल का अहसास भी हो और उसका दूसरा जन्म सुखमय हो.

2 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत दिनो बाद कानपुर ब्लाग देख रहा हू. कई लेखको के साथ यह मंच समृद्ध हो रहा है.
    रुचि जी आपने एक अमिट सत्य को परिवर्तित करने की बात कही.
    होनी पर किसका जोर चला. ईश्वर को भी वन वन भटकना पडा था. हा अंतिम पंक्तिया वाकई प्रेरित करती है...

    एक मर्मस्पर्शी लेख.

    जवाब देंहटाएं
  2. आना जाना तो संसार का नियम और जन्म मृत्यु प्रकृति का खेल ,पर ममता का नहीं कोइ विकल्प
    शायद इसीलिए ;;माता ;; को पृथ्वी से भी बड़ा कहा गया ;;;;;;;बच्चा चाहे जहाँ रहे , लोक या परलोक में
    वह तो कहता है ....तू कितनी अच्छी है , कितनी भोली है ,प्यारी प्यारे है ,,,,मा माँ माँ माँ माँ .........

    जवाब देंहटाएं