गांधीजी की आकस्मिक हत्या न सिर्फ भारत को ही नहीं हिला दिया था बल्कि सम्पूर्ण विश्व इस घटना से स्तब्ध रह गया था । मानवता के पुजारी को खो कर सिर्फ हम नहीं रोये बल्कि स्वतंत्रता के और भी सेनानी रो पड़े । उनकी हत्या की खबर पर मार्टिन लूथर किंग ने ये लिखा था -------
मुझे नहीं मालूम,
किस धातु का बना था वह,
टेक, मिसीसिपी, वोल्गा और हंग्हो
सभी तो लहराती थी.
उसमें हिमालय ही नहीं,
अलप्स की ऊँचाई भी समाहित थी।
उनमें हिंद महासागर ही नहीं
काला सागर, प्रशांत महासागर
सभी अपनी गहनता लिए बैठे थे
कैसे थे उनके संघर्ष के हथियार
नमक सत्याग्रह
दांडी प्रयाण
चरखा , खादी, असहयोग
और अनशन !
कैसी थी उनकी लड़ाई
जिसमें विद्वेष - घृणा के लिए
कोई जगह न थी।
हड्डियों के ढांचे से
परास्त किया
उन सत्ताधारियों को।
कानपुर मात्र उद्योगों से ही सम्बंधित नहीं है वरन यह अपने में विविधता के समस्त पहलुओ को समेटे हुए है. यह मानचेस्टर ही नहीं बल्कि मिनी हिन्दुस्तान है जिसमे उच्चकोटि के वैज्ञानिक, साहित्यकार, शिक्षाविद राजनेता, खिलाड़ी, उत्पाद, ऐतिहासिकता,भावनाए इत्यादि सम्मिलित है. कानपुर ब्लोगर्स असोसिएसन कानपुर के गर्भनाल से जुड़े इन तथ्यों को उकेरने सँवारने पर प्रतिबद्धता व्यक्त करता है इसलिए यह निदर्शन की बजाय समग्र के प्रति समर्पित है.
रविवार, 29 जनवरी 2012
बुधवार, 25 जनवरी 2012
राष्ट्रीय मतदाता दिवस !
"हम भारत के नागरिक, लोकतंत्र में अपनी पूर्ण आस्था रखते हुए यह शपथ लेते हें कि हम अपने देश की लोकतांत्रिक परम्पराओं की मर्यादा को बनाये रखेंगे तथा स्वतन्त्र , निष्पक्ष एवं शांतिपूर्ण निर्वाचन की गरिमा को अक्षुण रखते हुए , निर्भीक होकर धर्म , वर्ग, जाति, समुदाय, भाषा अथवा अन्य किसी भी प्रलोभन से प्रभावित हुए बिना सभी निर्वाचनों में अपने मताधिकार का प्रयोग करेंगे।"
२५ जनवरी २०१२ को राष्ट्रीय मतदाता दिवस घोषित करने का उद्देश्य मतदान में नजर आ रही उदासीनता को दूर करना है । आज युवा पीढ़ी की सोच पुरानी पीढ़ी से बदल रही है। अगर हम सिर्फ विद्याथियों की सोच को देख रहे हें तो एक स्वर में सभी की मांग यही सुनाई पड़ रही है कि प्रत्याशी जाति , वर्ग, धर्म , भ्रष्टाचार और आरक्षण का पोषक न हो , उसका समर्थक न हो। विकास के लिए प्रतिबद्ध हो।
सरकार भी मतदाताओं को उनके अधिकार प्रति जागरूक बनाने के लिए कार्य कर रही है। इसके लिए विभिन्न कार्यक्रम चलाये जा रहे हें। वैसे भी भारत विश्व में सबसे बड़े लोकतंत्र के रूप में जन जाता है और एक ऐसे लोकतंत्रीय शासन वाले राष्ट्र में मतदाता इसकी कार्यपालिका, विधायिका के सदस्यों के चुनाव के लिए एक महत्वपूर्ण अंश हें। उनका एक मत किसी को भी पराजित या विजयी बना सकता है। अपने वोट के महत्व को समझाने के लिए ही यह सब किया जा रहा है। पिछले कई चुनाव से मतदान के प्रतिशत ४० से ६० प्रतिशत से अधिक कभी भी नहीं हो सका है । इसके लिए उदासीन वर्ग सिर्फ एक कोई तबका नहीं नहीं है बल्कि इसमें प्रबुद्ध वर्ग की भी महत्वपूर्ण भूमिका रही है। पढ़े लिखे लोग चुनाव के लिए मिली छुट्टी को घर में रहकर एन्जॉय करना चाहते हें और बाहर जाकर चाहे बूथ कितने ही पास क्यों न हो पसंद नहीं करते हें। वे लोकतंत्र की सभी सुविधाओं को लेना चाहते हें। चुनाव में होने वाली धांधली कि आलोचना करेंगे लेकिन खुद अपने गिरेबान में झांक कर नहीं देखेंगे कि हम कितने आलोचना के पात्र हें।
इस विधान सभा चुनाव में हम आशा करते हें कि मतदान का प्रतिशत बढेगा। अगर हम मतदान नहीं करते हें तो फिर हम योग्य या फिर मनचाहे प्रतिनिधि के चुन कर आने की आशा कैसे कर सकते हें?
ऐसा नहीं मतदान के बहिष्कार की बात भी लोग कर रहे हें कि अगर सफाई और सड़क की व्यवस्था में सुधार नहीं होगा तो हम मतदान का बहिष्कार करेंगे लेकिन ये तो उनकी सबसे बड़ी भूल होगी क्योंकि उनका मतदान न करना तो किसी को भी चुनकर लाने में सहायक होगा फिर वे जो जागरूक नहीं है या फिर जो जाति धर्म वर्ग के आधार पर समर्थन दे रहे हें उनके मतदान का प्रतिशत अधिक होगा और फिर वही चुन जाएगा जो इस भावना का पोषक होगा वही लोगों को इस आधार पर भ्रमित करके अपने पक्ष में मतदान के लिए उकसा सकता है फिर वह चाहे योग्य , ईमानदार हो या फिर बेईमान या अयोग्य - आप उसको अगले पांच वर्षों के लिए ढोने के लिए बाध्य होंगे। आपको अपने मत को सही और योग्य व्यक्ति के समर्थन में देना होगा और अपने संपर्क में आने वाले व्यक्ति भी अगर मतदान के प्रति उदासीन हें तो unhen इस बारे में समझना होगा। इस वंशवाद और जातिवाद की परंपरा को हटाकर दल के समर्थन नहीं करना है बल्कि व्यक्ति का चुनाव करना है। दल का चुनाव प्रदेश को सिर्फ बर्बादी ही दे पाया है। किसी भी दल के मिट्टी के माधो को चुनने से अच्छा है कि एक योग्य व्यक्ति को चुनें। विधान सभा में उसके भी वही अधिकार होंगे जो अन्य के होंगे और अपने क्षेत्र के विकास के लिए अगर वह प्रयत्नशील होगा तो विकास भी अवश्य ही होगा।
इस मतदाता दिवस के महत्ता को समझाने की जरूरत है ये आप और हमें सबको जगाने के लिए है कि अब आने वाले सत्ताधारियों को चुनने के लिए सजग होइए और इसके चुनाव आयोग ने बहुत हद तक दलों के प्रचार और लोगों को बरगलाने वाली गतिविधियों पर अंकुश लगा दिया है। दलों के घोषणा पत्रों में दिए वादों से भ्रमित मत होइए बल्कि अपने विकास की दिशा से खुद परिचित होइए और फिर अपने प्रत्याशी में अगर वे संभावनाएं दिखलाई दे रही हें तो आप अपने विवेक के अनुसार ही मतदान करें।
२५ जनवरी २०१२ को राष्ट्रीय मतदाता दिवस घोषित करने का उद्देश्य मतदान में नजर आ रही उदासीनता को दूर करना है । आज युवा पीढ़ी की सोच पुरानी पीढ़ी से बदल रही है। अगर हम सिर्फ विद्याथियों की सोच को देख रहे हें तो एक स्वर में सभी की मांग यही सुनाई पड़ रही है कि प्रत्याशी जाति , वर्ग, धर्म , भ्रष्टाचार और आरक्षण का पोषक न हो , उसका समर्थक न हो। विकास के लिए प्रतिबद्ध हो।
सरकार भी मतदाताओं को उनके अधिकार प्रति जागरूक बनाने के लिए कार्य कर रही है। इसके लिए विभिन्न कार्यक्रम चलाये जा रहे हें। वैसे भी भारत विश्व में सबसे बड़े लोकतंत्र के रूप में जन जाता है और एक ऐसे लोकतंत्रीय शासन वाले राष्ट्र में मतदाता इसकी कार्यपालिका, विधायिका के सदस्यों के चुनाव के लिए एक महत्वपूर्ण अंश हें। उनका एक मत किसी को भी पराजित या विजयी बना सकता है। अपने वोट के महत्व को समझाने के लिए ही यह सब किया जा रहा है। पिछले कई चुनाव से मतदान के प्रतिशत ४० से ६० प्रतिशत से अधिक कभी भी नहीं हो सका है । इसके लिए उदासीन वर्ग सिर्फ एक कोई तबका नहीं नहीं है बल्कि इसमें प्रबुद्ध वर्ग की भी महत्वपूर्ण भूमिका रही है। पढ़े लिखे लोग चुनाव के लिए मिली छुट्टी को घर में रहकर एन्जॉय करना चाहते हें और बाहर जाकर चाहे बूथ कितने ही पास क्यों न हो पसंद नहीं करते हें। वे लोकतंत्र की सभी सुविधाओं को लेना चाहते हें। चुनाव में होने वाली धांधली कि आलोचना करेंगे लेकिन खुद अपने गिरेबान में झांक कर नहीं देखेंगे कि हम कितने आलोचना के पात्र हें।
इस विधान सभा चुनाव में हम आशा करते हें कि मतदान का प्रतिशत बढेगा। अगर हम मतदान नहीं करते हें तो फिर हम योग्य या फिर मनचाहे प्रतिनिधि के चुन कर आने की आशा कैसे कर सकते हें?
ऐसा नहीं मतदान के बहिष्कार की बात भी लोग कर रहे हें कि अगर सफाई और सड़क की व्यवस्था में सुधार नहीं होगा तो हम मतदान का बहिष्कार करेंगे लेकिन ये तो उनकी सबसे बड़ी भूल होगी क्योंकि उनका मतदान न करना तो किसी को भी चुनकर लाने में सहायक होगा फिर वे जो जागरूक नहीं है या फिर जो जाति धर्म वर्ग के आधार पर समर्थन दे रहे हें उनके मतदान का प्रतिशत अधिक होगा और फिर वही चुन जाएगा जो इस भावना का पोषक होगा वही लोगों को इस आधार पर भ्रमित करके अपने पक्ष में मतदान के लिए उकसा सकता है फिर वह चाहे योग्य , ईमानदार हो या फिर बेईमान या अयोग्य - आप उसको अगले पांच वर्षों के लिए ढोने के लिए बाध्य होंगे। आपको अपने मत को सही और योग्य व्यक्ति के समर्थन में देना होगा और अपने संपर्क में आने वाले व्यक्ति भी अगर मतदान के प्रति उदासीन हें तो unhen इस बारे में समझना होगा। इस वंशवाद और जातिवाद की परंपरा को हटाकर दल के समर्थन नहीं करना है बल्कि व्यक्ति का चुनाव करना है। दल का चुनाव प्रदेश को सिर्फ बर्बादी ही दे पाया है। किसी भी दल के मिट्टी के माधो को चुनने से अच्छा है कि एक योग्य व्यक्ति को चुनें। विधान सभा में उसके भी वही अधिकार होंगे जो अन्य के होंगे और अपने क्षेत्र के विकास के लिए अगर वह प्रयत्नशील होगा तो विकास भी अवश्य ही होगा।
इस मतदाता दिवस के महत्ता को समझाने की जरूरत है ये आप और हमें सबको जगाने के लिए है कि अब आने वाले सत्ताधारियों को चुनने के लिए सजग होइए और इसके चुनाव आयोग ने बहुत हद तक दलों के प्रचार और लोगों को बरगलाने वाली गतिविधियों पर अंकुश लगा दिया है। दलों के घोषणा पत्रों में दिए वादों से भ्रमित मत होइए बल्कि अपने विकास की दिशा से खुद परिचित होइए और फिर अपने प्रत्याशी में अगर वे संभावनाएं दिखलाई दे रही हें तो आप अपने विवेक के अनुसार ही मतदान करें।
सोमवार, 16 जनवरी 2012
ए आई आर ओ के अध्यक्ष डा आलोक चांटिया की अपील
आज ऐसा लगता है कि हमने देश से अँगरेज़ के बाहर जाने को ही स्वतंत्रता समझ लिया .तभी तो अब तक हम में से ज्यादा तर लोग ये नही जानते कि स्वतंत्रता का मतलब क्या है ????????? भारत देश भी निराला देश है क्यों कि यह पर जेल में बंद अपराधी को मत देने का अधिकार चुनाव में नही है पर जेल में बंद व्यक्ति चुनाव लड़ सकता है .क्या ये किसी आश्चर्य से कम है .........हम किसी वैश्या के साथ अपना नाम नही जोड़ना चाहते ..किसी कोढ़ी के साथ खाना नही खाना चाहते ...किसी एच आई वी संक्रमित व्यक्ति से शादी नही करना नही चाहते ......पर अपने देश कि बागडोर एक गलत और अपराधी व्यक्ति के हाथ में अपने ही मतों का प्रयोग करके देना चाहते है .........अगर आप किसी अपराधी को पाने घर पर रख ले तो आप भी अपराधी ही माने जायेंगे .अगर वो अपराधी खून करने का अपराधी है तो आप भी उसे छिपाने या शरण देने के कारण खून के अपराधी ही कहलायेंगे पर एक अपराधी को अगर कोई पार्टी पनाह देकर उसे चुनाव लड़ने का टिकट दे रही है .एक अपराधी को खुले आम अपने पार्टी का सदस्य बताती है तो भी पार्टी को देश के कानून में कोई सजा नही है ..........देश कि संसद में फूलन देवी बैठ सकती है पर एक इमानदार औरत को बैठने में आपको संकोच होता है क्यों कि फूलन देवी जी का मूल्य ज्यादा है ...........कुशवाहा को सिर्फ इस लिए लिया जायेगा क्यों कि देश आज तक जाति की राजनीति में जकड़ा है ........यह नैतिक मूल्यों से ज्यादा ये देखा जाता है किस तरह सीट मिलेगी .राजनीति देश की सेवा से ज्यादा एक नौकरी बन कर रह गई है ............पर देश की राजनीति ये कहती है कि हम कुछ गलत नही कर रहे है .अगर हम गलत है तो देश की जनता हमें जीता कर को भेजती है .उनके जन आदेश से साफ़ है कि हम गलत नही है .....इतने बड़े आरोप के बाद भी जनता नही जग रही है ..अपने बच्चो को अपराधियों से दूर रखने वाले पुरे देश को गलत हाथो में देने पर जरा सा संकोच नही करते ...क्या जनता को अपने ऊपर के आरोप को झुठलाते हुए अपने मत का प्रयोग सही उम्मीदवारों के लिए करके इस बार करार जवाब देना चाहिए कि जनता कभी भी गलत लोगो के न साथ थी और न है .....पर इसके लिए आपको अखिल भारतीय अधिकार संगठन कि आवाज और अपील को सुनना होगा .अखिल भारतीय अधिकार संगठन इसी बात का प्रयास बराबर कर रहा है कि एक बार तो हम अपनी ताकत क पहचानते हुए देश को उन लोगो के हाथ में सौपे .....जिसके लिए महात्मा गाँधी ने राम राज्य की कल्पना की थी ...........क्या आप इस बार देश को सुधरने में मदद करेंगे ????अपन मत सही अर्थो में सही उम्मीदवार के लिए सही समय पर करेंगे?
डॉ .आलोक चान्टिया
डॉ .आलोक चान्टिया
शुक्रवार, 6 जनवरी 2012
डा. पवन कुमार मिश्र को मिला "भूषण सम्मान 2011"
कानपुर ब्लागर असोसिएसन के संस्थापक डाक्टर पवन कुमार मिश्र को उनके द्वारा किये गये साहित्यिक योगदान के लिये हिमालय और हिन्दुस्तान फाउंडेशन ने उन्हे 2011 के " भूषण्" सम्मान से विभूषित किया.
डा. मिश्र पिछले चार सालो से कानपुर से प्रकाशित "माटी" हिन्दी मासिक पत्रिका का प्रबन्ध सम्पादन कर रहे है.विभिन्न पत्र पत्रिकाओ मे आपके लेख और कविताये छपती रहती है. कविता कोश ने डा. मिश्र की कविताओ का एक संग्रह बनाया हुआ है. इसके अलावा वह सामाजिक राजनीतिक एवम पर्यावरण के सजग प्रहरी भी है.
वर्तमान समय मे डा. मिश्र कानपुर प्रौद्योगिकी संस्थान मे औद्योगिक समाजशास्त्र के सहायक आचार्य पद पर कार्य कर रहे है. हम सभी के बी ए की ओर से डा. मिश्र को उनकी इस उपलब्धि पर हार्दिक शुभकामना व्यक्त करते है.
डा. मिश्र पिछले चार सालो से कानपुर से प्रकाशित "माटी" हिन्दी मासिक पत्रिका का प्रबन्ध सम्पादन कर रहे है.विभिन्न पत्र पत्रिकाओ मे आपके लेख और कविताये छपती रहती है. कविता कोश ने डा. मिश्र की कविताओ का एक संग्रह बनाया हुआ है. इसके अलावा वह सामाजिक राजनीतिक एवम पर्यावरण के सजग प्रहरी भी है.
वर्तमान समय मे डा. मिश्र कानपुर प्रौद्योगिकी संस्थान मे औद्योगिक समाजशास्त्र के सहायक आचार्य पद पर कार्य कर रहे है. हम सभी के बी ए की ओर से डा. मिश्र को उनकी इस उपलब्धि पर हार्दिक शुभकामना व्यक्त करते है.
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