शहर में गंगा नदी के किनारे भगवतदास घाट पर बना भगवान शिव का करीब डेढ़ सौ साल पुराना मंदिर है, जहाँ लोग शिवलिंग के साथ-साथ एक अंग्रेज अफसर की मूर्ति की भी परिक्रमा करते हैं।
अंग्रेज की यह प्रतिमा इस मंदिर के दरवाजे पर भगवान गणेश और माँ दुर्गा की मूर्ति के बीच स्थापित है। काले घोड़े पर सवार हाथों में हंटर और रोबीली मूँछों वाले इस अंग्रेज अफसर के बारे में शहरवासियों का कहना है कि यह कर्नल स्टुअर्ट की मूर्ति है, जिसे उसने 1857 में मंदिर की स्थापना के समय लगवाया था, लेकिन जिले के अधिकारी इस बात की पुष्टि नहीं करते हैं।
कानपुर के बीचोबीच गंगा नदी के पावन तट पर बना भगवतदास घाट काफी मशहूर घाट है। यहाँ पर प्रतिदिन दर्जनों लोगों का अंतिम संस्कार किया जाता है। इसी घाट के एक कोने पर भगवान शिव का एक छोटा-सा मंदिर है।
इसी मंदिर के दरवाजे पर विभिन्न देवी-देवताओं की मूर्तियों के बीच इस अंग्रेज अफसर की मूर्ति भी स्थापित है। मंदिर के एक पुजारी पंडित कैलाश अवस्थी बताते हैं कि सुबह-शाम सैकड़ों शिवभक्त शिवलिंग पर जल चढ़ाने के बाद मंदिर की परिक्रमा करते हैं और इसके साथ अन्य देवी-देवताओं के साथ इस अंग्रेज अफसर की भी परिक्रमा करते हैं।
वंदेमातरम संघर्ष समिति से जुड़े आलोक मेहरोत्रा बताते हैं कि हमने जब इंटरनेट पर कानपुर का इतिहास खंगाला तो उसमें यह जानकारी मिली कि करीब डेढ़ सौ साल पहले कर्नल स्टुअर्ट कानपुर में था।
गंगा नदी में स्नान करने वाले भक्त चाहते थे कि नदी के किनारे एक छोटा-सा मंदिर बन जाए, लेकिन अंग्रेज अफसर स्टुअर्ट ऐसा नहीं करने दे रहा था।
बाद में वह इस शर्त पर राजी हुआ कि मंदिर में देवी-देवताओं की मूर्ति के साथ-साथ उसकी मूर्ति भी स्थापित हो और उसकी भी पूजा हो, इसलिए ऐसा किया गया।
इस अंग्रेज अफसर की केवल परिक्रमा ही नहीं होती है, बल्कि देवी-देवताओं की मूर्ति के बीच में स्थापित होने के कारण लोग अज्ञानतावश इसकी पूजा-अर्चना करते हैं और इसे भोग भी लगाते हैं।
अंग्रेज अफसर की पूजा की बात पुजारी अवस्थी भी स्वीकारते हैं और कहते हैं कि लोग इस बारे में हमसे कुछ पूछते नहीं और हम बताते भी नहीं हैं। हम यह नहीं जानते कि यह मूर्ति इस अंग्रेज अफसर की है और मंदिर में कब स्थापित हुई है। बहरहाल मंदिर में अंग्रेज अफसर की मूर्ति हर भारतवासी के माथे पर बदनुमा दाग है। जुल्म करने वालों की पूजा कतई नहीं होनी चाहिए ।
अंग्रेज की यह प्रतिमा इस मंदिर के दरवाजे पर भगवान गणेश और माँ दुर्गा की मूर्ति के बीच स्थापित है। काले घोड़े पर सवार हाथों में हंटर और रोबीली मूँछों वाले इस अंग्रेज अफसर के बारे में शहरवासियों का कहना है कि यह कर्नल स्टुअर्ट की मूर्ति है, जिसे उसने 1857 में मंदिर की स्थापना के समय लगवाया था, लेकिन जिले के अधिकारी इस बात की पुष्टि नहीं करते हैं।
कानपुर के बीचोबीच गंगा नदी के पावन तट पर बना भगवतदास घाट काफी मशहूर घाट है। यहाँ पर प्रतिदिन दर्जनों लोगों का अंतिम संस्कार किया जाता है। इसी घाट के एक कोने पर भगवान शिव का एक छोटा-सा मंदिर है।
इसी मंदिर के दरवाजे पर विभिन्न देवी-देवताओं की मूर्तियों के बीच इस अंग्रेज अफसर की मूर्ति भी स्थापित है। मंदिर के एक पुजारी पंडित कैलाश अवस्थी बताते हैं कि सुबह-शाम सैकड़ों शिवभक्त शिवलिंग पर जल चढ़ाने के बाद मंदिर की परिक्रमा करते हैं और इसके साथ अन्य देवी-देवताओं के साथ इस अंग्रेज अफसर की भी परिक्रमा करते हैं।
वंदेमातरम संघर्ष समिति से जुड़े आलोक मेहरोत्रा बताते हैं कि हमने जब इंटरनेट पर कानपुर का इतिहास खंगाला तो उसमें यह जानकारी मिली कि करीब डेढ़ सौ साल पहले कर्नल स्टुअर्ट कानपुर में था।
गंगा नदी में स्नान करने वाले भक्त चाहते थे कि नदी के किनारे एक छोटा-सा मंदिर बन जाए, लेकिन अंग्रेज अफसर स्टुअर्ट ऐसा नहीं करने दे रहा था।
बाद में वह इस शर्त पर राजी हुआ कि मंदिर में देवी-देवताओं की मूर्ति के साथ-साथ उसकी मूर्ति भी स्थापित हो और उसकी भी पूजा हो, इसलिए ऐसा किया गया।
इस अंग्रेज अफसर की केवल परिक्रमा ही नहीं होती है, बल्कि देवी-देवताओं की मूर्ति के बीच में स्थापित होने के कारण लोग अज्ञानतावश इसकी पूजा-अर्चना करते हैं और इसे भोग भी लगाते हैं।
अंग्रेज अफसर की पूजा की बात पुजारी अवस्थी भी स्वीकारते हैं और कहते हैं कि लोग इस बारे में हमसे कुछ पूछते नहीं और हम बताते भी नहीं हैं। हम यह नहीं जानते कि यह मूर्ति इस अंग्रेज अफसर की है और मंदिर में कब स्थापित हुई है। बहरहाल मंदिर में अंग्रेज अफसर की मूर्ति हर भारतवासी के माथे पर बदनुमा दाग है। जुल्म करने वालों की पूजा कतई नहीं होनी चाहिए ।
( साभार वेब दुनिया 21/10/2007)
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