श्री शम्भू रत्न जी का जन्म बलहापारा (घाटमपुर,कानपुर देहात ) को हुआ था जन्म की तारीख का तो ठीक-ठीक पता नहीं पर ऐसे व्यक्तित्व के लिए जन्म की तारीख कोई मायने नहीं रखती है. त्रिपाठी जी उतर-प्रदेश के पहले समाज -शास्त्री थे जिन्हें भारत सरकार ने उनके लेखन के लिए एक नहीं कई बार पुरस्कृत किया . उन्होंने अनेक छदम नाम जैसे राजीव लोचन शर्मा, आचार्य अश्वघोष नाम से कई कहानिया ,लेख और मनु जैसे प्रसिद
पत्र में समीक्षा लिखी उन्होंने कई प्रसिद्द पुस्तकों का अनुवाद भी किया .
शम्भू रत्न जी में ज्ञान और प्रतिभा नैसगिर्क थी जिसे उन्होंने अपने चिंतन की प्रखरता से निखारने का कार्य किया उनके व्यकितत्व की पहचान निरन्तरता, तत्परता, तन्म्यनताऔर जागरूकता थी उनकी योग्यता क्षमता और दक्षता , उनके साहित्य, भूगोल, समाजशास्त्र जैसे विषयों में लिखी गई उनकी पुस्तको को पढने में मिलती है . वे एक ऐसे समाज सेवी थे जिन्होंने अपनी सेवा का कभी प्रचार नहीं किया, उनकी समाजसेवा में कोई राजनेता की प्रक्रति नहीं थी क्योकि उनकी मूल प्रक्रति एक लेखक की थी इसलिए उन्होंने लेखन को ही अपना कर्मछेत्र बनाया.बहुत ही सादगी पसंद श्री त्रिपाठी जी का व्यक्तित्व उनके कृतित्त्व में देखने को मिलता है उनकी लिखी पुस्तक "गाँधी धर्म और समाज "में वे गाँधी जी के धार्मिक समाजशास्त्र का व्यवस्थित विश्लेषण विवेचन करते हुए कहते है "मेरे मत से गाँधी जी अंशत: राजनीतिग थे विशेषत: धर्म तत्व चिन्तक थे और सर्वाशत:वैज्ञानिक, सामाजिक विचारक थे. परिस्थितियों के कारन उन्हें राजनीती को अंगीकार करना पड़ा था. परंपरा और संस्कारो के प्रभाव से वह धार्मिक हुए थे. किन्तु मूलवृत्ति उनकी वैज्ञानिक की थी, स्वभाव उनका सत्य-शोध का था और अभिरुचि उनकी समाज में थी ". त्रिपाठी जी अपनी लेखनी के माध्यम से गाँधी जी को एक नए गाँधी के रूप में सामने लातेहै जिसने विशुद्ध समाज -वैज्ञानिक के रूप में ही धर्म पर विचार किया. वे कहते है उन्होंने (गांधीजी) ने विश्व के प्रमुख धर्मो का और तटस्थ पर्यवेक्षण - परिक्षण तथा आकलन अनुशीलन करके सार्वभौम और सार्वकालिक सत्य नियम उद्घाटित किए. उनके निष्कर्ष प्रत्येक धर्म और प्रत्येक समाज के लिए व्यवहार्य है .
जन सामान्य से मिली अनौपचारिक मान- सम्मान ऐसा पुरस्कार होता है जो व्यक्ति के व्यक्तित्व में आध्यात्मिक एवं नौतिक ऊँचाई के कारण मिलता है. दुसरो की नि: स्वार्थ सहायता करना, किसी के दू: ख को अपना समझ कर उसके काम आना त्रिपाठी जी जेसे संत ह्रदय व्यक्ति ही कर सकता थे . व्यक्ति अपने पद, धन से समाज में सम्मान नहीं पता बल्कि अपने तन से किये गये सद्कर्मो से समाज में सम्मान पता है. श्री शम्भू रत्न त्रिपाठी जी ने एस बात को सत्य करके दिखा दिया. उन्होंने ना कभी पद का लोभ किया और ना धन को अपने जीवन में स्थान दिया. उन्होंने तो अपनी लेखनी के माध्यम से हजारो लोगो के जीवन की दिशा निर्धारित की.
श्री शम्भूरात्न जी १९७१मे विश्व प्रसिद्ध योगी स्वामीराम (हिमालयन इंटरनेश्नल इंस्टीट्यूट ऑफ़ योगा एंड फिलासफी) के संपर्क में आये. दोनों के संपर्क के माध्यम थे डॉ श्री नारायण अग्निहोत्री. त्रिपाठी जी ने स्वामीराम का शिष्यतत्व ग्रहण किया. यह उनके जीवन का निर्णायक मोड़ था. यहा से उन्होंने सच्चे अर्थो में एक कर्मनिष्ट यति की रहा पकड़ी. कालगति के साथ- साथ उनकी अध्यात्मिक वृत्तिया उत्तरोत्तर उच्च स्तर को प्राप्त होती रही. उनके लेखन में भी एस बात की पुष्टिहोती है. सिद्ध संत और योगी एवं मादाम ब्लावतास्की(अलौकिक योगिनी )इसके सजीव उदहारण है. जीवन के अंतिम वर्षो में त्रिपाठी जी स्वयं को आध्यात्मिकता में डूबा लिया. सन १९८८ में इस महान मनस्वी का देहावसान हुआ .
एक समाजशास्त्री द्वारा समाजशास्त्र के पुरोधा को दो गई बेहतरीन श्रद्धांजलि ., अति सुँदर और आवश्यक आलेख . बधाई हो किरन .
जवाब देंहटाएं.पवन जी भी बधाई के पात्र है जिन्होंने इतनी मेहनत से त्रिपाठी जी के चित्र को खोज निकला .
जवाब देंहटाएंshri shamhunath ji ki yaden taja karane ke liye apka sadar abhar.....ak achhi prastuti ke liye badhai
जवाब देंहटाएंPls. Give more about Shri shambhu ratan Tripathi.
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