पुनर्जन्म की प्रक्रिया सुनिश्चित होती है जिस में विघ्न पड़ने पर कुछ समय प्रेत अवस्था भी हो सकती है .पुनर्जन्म की प्रक्रिया समझने के लिए हमें कुछ तथ्य समझने होंगे .
हमारे भाव ही फलीभूत होते है .इसी लिए एक ही कर्म करने पर भी अलग अलग फल प्राप्त हो सकते है . किसी भा कर्म का फल उस कर्म करने के भाव में निहित होता है .
सत्य तो यह की हमारे भाव का प्रभाव हमारे जीवन के हर क्षेत्र में पड़ता है . क्या आप ने कभी सोच है की हमारे यहाँ किसी की मृत्यु के समय गीता का पाठ क्यों करते है ? क्यों चौथा आश्रम वानप्रस्थ आश्रम है ?
इस का जवाब प्रकति के एक नियम में छुपा है जो पुनर्जन्म की प्रक्रिया को भी निर्धारित करता है . मरते समय हमारा जो अंतिम भाव होता हम उसी भाव पर स्थिर हो जाते है .इस के दो कारण है . पहला की हमारी बुद्धि नष्ट हो जाती है जो विवेक के लिए उत्तरदाई होती है और दूसरा यह की घटनाये समय के सापेक्ष होती है और घटना न होना समय से परे होना ही है अर्थात मरने से जन्म लेने तक का समय उस के लिए रुक जाता है . इस स्थिति में न तो वह कुछ प्राप्त कर सकता है और नही कुछ खो सकता है . .
मृत्यु के उपरांत हमारा मन ही हमारे साथ जाता है जिस में हमारे जन्म जन्मान्तर के संस्कार संचित होते है . जन्म तभी संभव है जब की ये संस्कार उस माता पिता के संस्कार से मेल खाए जिस के यहाँ वह जन्म लेना चाहता है. ये थी उसी प्रकार है जैसे कोई ताला अपनी ही चाभी से खुलता है . यही कारण है की साधारण लोग तो जन्म लेते रहते है पर बहुत पुण्य आत्मा और बहुत दुष्ट आत्मा को जन्म लेने के लिए काफी लम्बा इन्तजार करना पड़ता है क्यों की वे चाह कर भी तब तक जन्म नही ले सकते जब तक की उन के संस्कारो वाले माता पिता उसे न मिल जाये .
ये प्रकति का नियम अवतारवाद की धारणा को पुष्ट करता है जिसे हमारे ऋषि मुनि मानते थे और विरासत में मिलने पर हम भी मानते है पर बिना कारण जाने .
विज्ञानं में गति विषयक नियम कहता है की
यदि कोई पिंड गतिशील अवस्था में तो वह गतिशील रहेगा और विराम अवस्था में है तो विराम में ही रहेगा जब तक की कोई वाह्य बल न आरोपित किया जाये .
यही बात म्रत्यु के उपरांत लागु होती है अंतिम भाव की ठोकर जिस दिशा की होती है उसी दिशा जन्म मिलता है .
भरत मुनि की कहानी उस का प्रमाण मानी जा सकती है . भरत मुनि ब्रह्म ज्ञानी थे पर म्रत्यु से कुछ दिन पूर्व उन्हों ने एक अनाथ मृग का बच्चे को आश्रय दिया .और मरते समय उसी से मोह में आसक्त हो गए . फलस्वरूप मोक्ष से पूर्व उन्हें एक और जन्म लेना पड़ा जिस में उन्हें मृग योनी प्राप्त हुई .
प्रेत अवस्था
हमारा शरीर पांच तत्वों से निर्मित है .मृत्यु के समय सिर्फ पृथ्वी तत्व अलग हो जाता है . इस तत्व के अलग हो जाने पर वह स्थूल जगत में अपना अस्तित खो देता है.
पर जब कोई किसी अत्यंत प्रबल भाव के साथ मृत्यु को प्राप्त होता है कुछ मात्र में वह सूक्ष्म देह में पृथ्वी तत्व भी आ जाता है और ये अवस्था ही प्रेत अवस्था होती है . ये मात्र इतनी सूक्ष्म होती है के अपना अस्तित्व प्रकट नही कर सकते . एक तत्व कम होने पर ये कुछ हद तक भविष्य और पूरा अतीत देख सकते है . प्रेत विद्या जानने वाले और योग्य व्यक्ति संपर्क कर के जानकारियां प्राप्त कर लेते है .
अचानक घटी दुर्घटना में कभी कभी पृथ्वी तत्व की थोडा अधिक मात्र में आ जाता है जिए ये प्रयास कर अपनी धुए आभासी आकृति कभी कभी प्रकट कर सकते है .
प्रेत अवस्था को हम उस के बीते काल की प्रतिध्वनी मान सकते है जिस का समय वही पर रुक चुका है .
वैज्ञानिक व्याख्या
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