जाने माने कथाकार अमरीक सिंह 'दीप' लेखक ही नहीं एक जिज्ञासु घुमंतू और शौकिया शोधार्थी भी है । उनकी शोध यात्रा में न तो कोई शान आगामी है न कोई व्यक्ति पराया । जनजीवन में सहजता से घुलमिल जाने की प्रवृति ने ही इन्हें ऐसे विषय चरित्र और परिवेश चित्रित करने की क्षमता प्रदान की है जिन्हें वातानुकूलित कमरों में रहकर नहीं जाना जा सकता ।कानपुर दीप साहब की कर्मभूमि और जन्मभूमि दोनों है । यहाँ की गली कूचो हातो में वह पले बढे है । टाट पट्टी वाले पाठशालाओं में पढ़े है और स्कूल,कालेज से गोला मारकर सिनेमा देखते रहे । यहाँ के घाट बाज़ार पार्क मिलों की चिमनिया यह सब उनके एक बड़े से घर के अलग अलग हिस्से प्रतीत होते है ।
दीप साहब कभी गुलाब बाई कभी विद्यार्थी जी,चन्द्रेश जी या जवाबी कीर्तन से रूबरू होते है । कानपुर की संस्कृति, जनजीवन बोली बानी और ऐतिहासिकता को बड़ी सहजता के साथ पिरोते है.
दीप साहब का जन्म ५ अगस्त १९४२ में हुआ था । प्रमुख कृतियों में 'कहा जायेगा सिद्धार्थ', कालाहांडी ,चादनी हूँ मै, सर फोडती चिड़िया, आजादी की फसल, बर्फ का दानव शाने पंजाब, रितुनगर, इत्यादि है ।
दीप साहब की सौ से अधिक कहानिया श्रेष्ठ साहित्यिक पत्रिकाओ में छाप चुकी है । कहानी के अखिल भारतीय कार्यक्रम संगमन के पिछले १५ वर्षो से सदस्य के रूप में कार्य रत है ।
Its pleasure to know about Mr Amreek singh ji. gud work . keep it up.
जवाब देंहटाएंअमरीक सिंह 'दीप' संगमन परिवार के संस्थापक सदस्य भी हैं ।
जवाब देंहटाएंअमरीक सिंह दीप की कहानी : हैंगओवर पढने के लिये आप नीचे दिये गये लिंक को देख सकते हैं । हम सभी कानपुर्वासियों को आप पर गर्व है । पवन भाई जी दीप साहब जी से परिचय कराने का शुक्रिया ।
http://rachanakar.blogspot.com/2010/07/blog-post_6642.html
एक बार मुझे दीप साहब के साथ २४ घंटे साथ रहने का सौभाग्य मिला. एक साहित्यकार के मायने क्या होते है समझ में आया. कानपुर के बारे में उनकी समझ एक एक बारीक तथ्यों पर बोलते हुए वे एक संत की भंते लग रहे थे.
जवाब देंहटाएंभंते की जगह भाँती पढ़े
जवाब देंहटाएंare waah mai DEEP sir ko rashtriy sahara me padhta tha inka parichay dekar PAWAN JI aapne matwpoorn kary kiya
जवाब देंहटाएंabhaar
nice biography of deep sir
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