कल अलस्सुबह मेरे चलभाष की स्वरलहरिया बजने लगी देखा तो बड़े भाई अनूप शुक्ल जी थे । शाम को मुलाकात का प्रोग्राम बन गया । कथाकार अमरीक सिंह दीप से भी शाम को मुलाकात करनी थी साढ़े चार बजे कालेज से आने के बाद मैंने किरण को अपने कार्यक्रम के बारे में बताया तो बोली मै भी इनसे मिलना चाहूगी.जल्दी जल्दी चाय पीकर मैंने मोटरसाइकिल निकाली और निकल पड़े। रास्ते में 'माटी'पत्रिका के सम्पादक श्री गिरीश त्रिपाठी जी से मुलाकात करते हुए जैसे गोविन्द नगर पहुचे पहिया पंक्चर हो गया.।पास में ही दूकान थी.मिस्त्री पंक्चर बनाता जाय और बेटे बहू की बाते भी बताता जाय. बाबूसाहब जब से बहुरिया आय हौ तब ते लरकावा का दमाग फिर गवा ।
अब हम बूढ़ मनई घिस पिट के घर चलाई रहा हूँ। औरत बड़ी मायावे है। मै भी घर घर की कहानी को सुनता गया हा हूँ करता गया।
बाइक के ठीक होने के बाद गोविन्दपुरी पुल के भीषण जाम से भी लड़ना था।खैर दीप साहब के यहाँ पहुचते पहुचते आठ बज गए। एक शांत सौम्य व्यक्तित्व से यह मेरी दूसरी मुलाकात थी। साहित्य की बातों के दौरान गृहस्थी की बाते भी हो जाती।उन्होंने अपना कप्यूटर दिखाया और कहा कि वह जल्द ही ब्लोगिंग की दुनिया में आयेगे. चलते समय अपनी एक कृति 'काली बिल्ली' सप्रेम भेट की।
अब बाइक का रुख अर्मापुर था। ठंडी हवाओ के बीच अंधेरो से गुजरना एक अजीब किस्म की रोमानियत का अहसास करा रहा था. बीच -बीच में फुरसतिया जी घर के पते के बारे में जानकारी देते रहे।डी टी ५४ तक पहुचते लगभग साढ़े नौ बज चुके थे। गेट पर भाई शुक्ल जी सौम्य मुस्कुराहट के साथ मौजूद थे।उनके घर के इंटीरियर का क्लासिकल लुक मन को लुभाने वाला था। बातो बातो में उन्होंने बताया कि वह १९८३ में साइकिल से भारत भ्रमण कर चुके है। कानपुर के कई जाने अनजाने लेखको कवियों और इतिहास कारो के बारे में परिचय कराते रहे। मै दत्तचित्त होकर सुनता रहा.इन बातो की चाशनी में समीर लाल साहब की बाते कन्हैया लाल नंदन जी, गोविन्द उपद्ध्याय जी गिरिराज किशोरजी इत्यादि के प्रसंग शामिल थे . ब्लोगिंग को लेकर किरण के अपने विचार थे.वह लिखने से ज्यादा पढने वाली ब्लोगर है भाई शुक्ल जी ने लिखने की सलाह दी.रात का समय ज्यादा हो रहा था.जाते जाते वे अपना कैमरा ले आये बोले जरा फोटू हो जाय.किरण को अपनी फोटो खिचवानी कम पसंद है सो उसने हम दोनों की एक स्नैप खीची.जिसे आज सुबह ही भाई शुक्ल जी ने मेल द्वारा मुझे भेजी.यह मुलाकात हडबडी वाली थी.लेकिन थी मजेदार.खासतौर से भारतीय ब्लोगिंग से जुड़े तमाम मुद्दों पर फुरसतिया भैया के अनुभव.