कुछ दिन पहले कानपुर के लिए गीत लिखने का आमंत्रण जागरण समूह ने दिया था. मै जब कानपुर को महसूस करता हूँ तो यह शहर मुझे एक फक्कड़ और किसी के सामने कभी न झुकने वाले पौरुष और स्वाभिमान से भरे व्यक्ति के रूप में दिखता है जिसके अन्दर एक ममता से भरा ह्रदय है जो किसी को भूखा नहीं सोने देता।
साथियों कानपुर के उसी रूप को ध्यान में रखते हुए ये गीत लिखा है. --
"कायनात की रचना करता जहाँ स्वयं सिरजनहारा
मेहनत को मजहब कहता है ऐसा प्यारा शहर हमारा
सुबह जागरण की खबरों से सूरज आँख खोलता है,
दीप शिवाले के जलते हैं तो चंदा करता उजियारा।
ग्रीनपार्क चिडियाघर देखो मोतीझील की शाम सुहानी
हवा में रंगीनी फ़ैली पर बहुत कड़ा है यहाँ का पानी
आजादी के लिये यहाँ पर फूटे गीत बगावत के,
फूलबाग से गूंज रहा है विजयी विश्व तिरंगा प्यारा।
आइआइटी से केआइटी तक ज्ञान की गंगा बहती है
पनकी जेके सिद्धेश्वर तक सबको मंजिल मिलती है
जाने कितने निराधार आते है सभी दिशाओं से,
सबको रोटी देता है यह अन्नपूर्णा शहर हमारा।
रामायण से विश्वगान औ' ध्रुवसंकल्पो की धरती
त्रेता से सन सत्तावन तक अजेय वीरों की धरती
पावन और प्रतापी नसलें बनती हैं जिस माटी से,
उसे कानपुर कहते है प्राणों से प्यारा शहर हमारा।"
साथियों कानपुर के उसी रूप को ध्यान में रखते हुए ये गीत लिखा है. --
"कायनात की रचना करता जहाँ स्वयं सिरजनहारा
मेहनत को मजहब कहता है ऐसा प्यारा शहर हमारा
सुबह जागरण की खबरों से सूरज आँख खोलता है,
दीप शिवाले के जलते हैं तो चंदा करता उजियारा।
ग्रीनपार्क चिडियाघर देखो मोतीझील की शाम सुहानी
हवा में रंगीनी फ़ैली पर बहुत कड़ा है यहाँ का पानी
आजादी के लिये यहाँ पर फूटे गीत बगावत के,
फूलबाग से गूंज रहा है विजयी विश्व तिरंगा प्यारा।
आइआइटी से केआइटी तक ज्ञान की गंगा बहती है
पनकी जेके सिद्धेश्वर तक सबको मंजिल मिलती है
जाने कितने निराधार आते है सभी दिशाओं से,
सबको रोटी देता है यह अन्नपूर्णा शहर हमारा।
रामायण से विश्वगान औ' ध्रुवसंकल्पो की धरती
त्रेता से सन सत्तावन तक अजेय वीरों की धरती
पावन और प्रतापी नसलें बनती हैं जिस माटी से,
उसे कानपुर कहते है प्राणों से प्यारा शहर हमारा।"
पूरा कानपुर सिमट कर आ गया है आपकी कविता में ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंbahut sunder..bhai...
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