गुरुवार, 23 मई 2013

शिक्षा के इस बलात्कार की ओर हमारे युवा मुख्यमंत्री जी कब ध्यान देंगे?

कहने को तो संविधान मे समान कार्य के लिये समान वेतन का प्रावधान है, किंतु व्यवहार मे यह प्रावधान कूडा बन गया है. मै यहा सेल्फ फाईनेंस संस्थाओ मे कार्य कर रहे शिक्षको के प्रति आप लोगो का ध्यान आकर्षित करना चाहता हू. वैसे तो निजी क्षेत्रो मे कार्यरत सभी कर्मचारियो की स्थिति बन्धुआ और बेगारो जैसी हो गयी है लेकिन जो समाज की संरचना मे मुख्य भूमिका निभा रहे है उनकी खस्ताहाल स्थिति को देखते हुये यह कहना मुश्किल नही कि देश किस दिशा मे जा रहा है. निजी स्कूलो महाविद्यालयो और तकनीकी संस्थाओ मे कार्यरत शिक्षक अवसादी मानसिकता के शिकार हो गये है.  निजी कालेजो के प्रबन्धक 'इंफ्रास्टक्चर' और अन्य वाहियात चीजो मे जम कर इनवेस्ट करते है किंतु वेतन और अवकाश के नाम पर धेला भर. शिक्षक की मजबूरी है कि उसे  नौकरी से रोटी और दाल खरीदना है. वैसे भी एक अनार और सौ बीमार वाली स्थिति है. तकनीकी संस्थाओ और महाविद्यालयो मे फ्रेशर के दम से क्लासेज चलती है. जिसमे क्वालिटी के नाम पर भ्रामक लेक्चर दिये जाते है. नाच गाने नौटंकी के नाम पर कालेज किसी नामी गिरामी होटल को टक्कर देते मिल जायेंगे. महिला शिक्षको की एकमात्र ड्यूटी सेंट वेंट लगा कर लिपपुत कर मैनेजर या चीफ  गेस्ट के आगे पीछे मुसकान चिपकाये चलना फिरना ही रह गया है. इन कालेज मे आने वाले छात्र भी मौज मस्ती करते पूरा सेशन बिता देते है क्योकि उन्हे मालूम है कि नकल कर ले तो पास ही हो जाना है. शिक्षा के इस बलात्कार की ओर  हमारे युवा मुख्यमंत्री जी कब ध्यान देंगे? स्थिति बद से बदतर होती जा रही है.  शिक्षा और शिक्षको लत्ता करके कोई भी व्यवस्था ज्यादा दिन तक चल नही सकती समय रहते इस मुद्दे पर न चेता गया तो भारत का अस्तित्व समाप्त होते  देर नही लगेगी.

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