मंगलवार, 23 अप्रैल 2013

प्रथम मनु पिता नही, मा थी.. डा निर्मोही

कल डा निर्मोही से मुलाकात हुयी, डा निर्मोही फर्रुखाबाद के रहने वाले है. हिदू समाज की  बनी बनाई मान्यताओ की धज्जिया उडाकर आजकल निर्मोही जी खूब सुर्खिया बटोर रहे मैने इनके साहित्य और शोधलेख को पढा. वाकई तर्क बहुत जोरदारी से रखे है डाक्टर साहब ने. अभी मै इनको पढ रहा हू, इनके आलेख जवाब मांगते है उन मठाधीशो से जो हिन्दू समाज के ठेकेदार बने बैठे है. एक उदाहरण मै देता हू ..
"हम सब मनु की संताने है यह बात सही पर मनु पिता न होकर माता थी, मनुश्यो के पिता तो कश्यप थे.
उन्ही कश्यप को ब्रम्हा की उपाधि दी गयी . कश्यप की 13 पत्नियो मे से मनु से मानव दिति से दानव अदिति से आदित्य या सुर ऋग्वेद मे प्रयुक्त 'मनुष्पिता' 'मनुरायेजेपिता' 'मनुवृणातापितानस्ता' जैसे शब्दोके अर्थ भाष्यकारो ने गलत किया और वही ट्रेंड चलता आया. यह शब्द दक्ष के लिये प्रयुक्त किया गया है जो मनु के पिता थे..
दूसरा कि सृस्टि की रचना के समय एक कहानी आती है कि ब्रम्हा अकेलेपन से उबकर दो होना चाहा और अपने अन्दर से एक स्त्री को प्रकट किया फिर सृष्टि की रचना हुयी. तो य मनु कहा से आ गया? उत्तर यही है कि वह स्त्री ही है जिसे भ्रमवश भाष्यकारो ने पिता मान लिया"
निर्मोही जी का लेखन तर्क और तथ्यपरक है अब ये तथ्य कितने खरे उतरते है कितने समझे जाते है और कितनो पर सहमति बनती है निर्भर करता है कि कौन इनके तर्को पर अपने तर्क दे सकता है पर  मंथन से अमृत तो अवश्य निकलेगा इसमे सन्देह नही.


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