झांसी के गरौठा तहसील के अन्तर्गत ’छिरौरा बुजुर्ग ’ गांव मै 8 अगस्त 1923 को साधारण परिवार मै जन्म लेने वालेमेजर डौ.एन डी शर्मा की आंखों मै बचपन से ही देश के लिये कुउछ कर गुजरने के सपने थे.इन सपनों को साकार करने के लिये उन्होंने कडी मेहनत की,और प्रदेश की मेरिट्मै अपना नाम लाकर इस दिशा मै पहला कदम बढाया .उनके सपनों को साकार करने मै अहम भूमिका निभाई कानपुर की सरज़मीं ने .उन्होंने शहर के डी ए वी कोलेग के वाणिज्य विभाग मै अध्यापन कार्य शुरू किया .छात्र जीवन से ही एनसीसी के कैडेट के रूप मै मशहूर शर्मा जी ने अपनी लगन और मेहनत से एन सीसी के ट्रेनर के तौर पर काम करते हुए मेजर का तमगा हासिल किया .अध्यापन के अलावा अनेक विधाओं मै दखल रखने वाले श्री शर्मा वौलीबाल खेल मै अपने विशिष्ट योगदान के लिये वौलीबाल के ’पितामह ’ के रूप मै प्रसिद्ध रहे .87 वर्ष की आयु मै लंबी कद-काठी वाले शर्मा जी की आंखों मै मरते दम तक वह जज़्वा रहा जो भावी पीढी को कुछ कर गुजरने की प्रेरणा देता रहा .मिल्टन ने ठीक ही लिखा है-’विद्वता शब्दों के आवरण मै छिपी होती है.और उसे परखने के लिये कानों की की नहीं ,आं खों की जरूरत है..’.शायद मिल्टन की इसी बात पर मेजर डौ एन डी शर्मा की आंखों मै एक तूफ़ान उठा करता था ..अपने अंतिम समय तक वह किताबों मै खोये रहते थे..इस सब से हटकर ,वौलीबाल तो जैसे उनके रोम-रोम मै बसा था..वे एक सफ़ल प्राध्यापक,लेखकएवं प्रसिद्ध शिक्षाविद रहे..कानपुर के क्राईस्टचर्च के वाणिजय विभागाध्यक्ष तथा कानपुर विश्वविद्यालय के वाणिज्य विद्या परिषद संयोजक एवं वाणिज्य संकाय के सदस्य,शोध समीति के संयोजक और अकादमी परीषद के सदस्य रहे..यही नही,आप इलाहाबाद,वाराणसी,अलीगढ ,लखनऊ, गोरखपुर ,सागर,जबलपुर, इन्दौर,पटना,आदि विश्वविद्यालयों समेत उत्तर प्रदेश,मध्य प्रदेश,बिहार और राजस्थान के 22 विद्यालयों से सम्बद्ध रहे.. और इन सब मै विभिन्न शैक्षिणिक्समीतियों ,विद्या परिषदों ,एवं शोध समीतियों के सदस्य रहे..
यह विरल संयोग ही होता है के कोई व्यक्ति शिक्षा सैन्य सेवा एवं खेल मै समान रूप से तीनों मै शिखर पर आरूढ रहे ..डौ शर्मा ने शिक्षा के क्षेत्र मै जो अपना स्थान बनाया ,उससे कही अधिक उच्चता ,प्रखर्ता एवं ख्याती खेल जगत मै मिली यही ..यही कारण है कि वे भारतिय वौलीबाल के पितामह के रूप मै पहचाने जाते है .वौलीबाल के लिये तो जैसे उनका जीवन ही समर्पित रहा .
समय-समय पर उन्हें विभिन्न सम्मानों से भी नवाजा जाता रहा .-
1-1992 मै राष्ट्रिय पुलिस फ़ूटबाल मीट मसि पुलिस महानिदेशक द्वारा सम्मान,
2-1982 मै नवम एशियाई खेल नई दिल्ली द्वारा आयोजित विशिष्ट योगदान हेतु सम्मान,
3-1995 मै विश्व वौलीबाल स्वर्ण जयन्ती पर चेन्नई मै आयिजित समारोह मै अन्तर्राष्ट्रिय फ़ेडरेशन द्वारा सम्मान,
4-2002 मै उ0 प्र0 के राज्यपाल आचार्य विषणुकांत शास्त्रि द्वारा ’कानपुर रत्न ’ सम्मान,
5-2003 मै उ0 प्र0 शासन ,यूथ हौस्टल इन्डिया द्वारा वौलीबाल रत्न से विभूषित ,
6-2007 मै शिक्षा के क्षेत्र मै उतक्रष्ट योगदान हेतु उतकर्ष अकादमी द्वारा डौ0 ब्रिजलाल वर्मा सम्मान,
7-2007 मै ब्राह्मण महासभा द्वारा समाज सेवा के लिये ’ब्राह्मण श्री ’ सम्मान से अलंक्रित.
24 जनवरी 2011 को अस्वस्थ्ता के चलते शी शर्मा जी का निधन हो गया..हम स्व0 डौ0 शर्मा जी को भावभीनी श्रद्धंजली देते है..एवं शत-शत नमन करते है .
कानपुर मात्र उद्योगों से ही सम्बंधित नहीं है वरन यह अपने में विविधता के समस्त पहलुओ को समेटे हुए है. यह मानचेस्टर ही नहीं बल्कि मिनी हिन्दुस्तान है जिसमे उच्चकोटि के वैज्ञानिक, साहित्यकार, शिक्षाविद राजनेता, खिलाड़ी, उत्पाद, ऐतिहासिकता,भावनाए इत्यादि सम्मिलित है. कानपुर ब्लोगर्स असोसिएसन कानपुर के गर्भनाल से जुड़े इन तथ्यों को उकेरने सँवारने पर प्रतिबद्धता व्यक्त करता है इसलिए यह निदर्शन की बजाय समग्र के प्रति समर्पित है.
शनिवार, 18 जून 2011
बुधवार, 1 जून 2011
मुसलमाँ हूँ मगर अब्दुल हमीद ऐसा मुसलमाँ हूँ "रसूल अहमद सागर"
बचे कैसे कि पानी आ गया सर के ऊपर तक
अमन के खा गये दाने अमन के ही कबूतर तक भलाई की करें उम्मीद क्या इन रहनुमाओं से
बुराई में सने बैठे है जब गांधी के बन्दर तक
चलो, चलते रहो चलने से ही गंतव्य पाओगे
नदी बहती हुई इक दिन पहुचती है समंदर तक
लगन हो आस्था हो प्रेम हो विश्वास हो दिल में
पिघलते से नज़र आयेगे तुमको यार पत्थर तक
मुसलमाँ हूँ मगर अब्दुल हमीद ऐसा मुसलमाँ हूँ
मिरा ये कौल पहुचा दो वतन के एक इक घर तक
........ शाइर ए वतन "डॉ रसूल अहमद सागर"
रामपुर
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