शुक्रवार, 11 फ़रवरी 2011

हर कोई भूल जाता है अपने शहर को,उतरता है जब भी खाबों की डगर को।...अभय तिवारी

अभय तिवारी से हमारा परिचय हुये तीन साल से ज्यादा हो लिया। शुरुआत ब्लॉग जगत की नोकझोंक से हुई! नोकझोंक के बाद मेल-मुलाकात हुई! पहले मुम्बई में जहां , अभय और अन्य मित्रों की आत्मीय साजिश के चलते, जबरियन हमसे जिन्दगी में पहली बार जन्मदिन का केक कटवा लिया गया, और फ़िर कानपुर में कई बार मिले। कानपुर में मिलने आये तो हमारी श्रीमतीजी ने उनकी उमर पच्चीस साल से अधिक मानने से इन्कार कर दिया। :)
इसके बाद तो फ़िर मिलना-जुलना चलता रहा। मैं तो फ़िर उसके बाद मुम्बई न जा पाया लेकिन अभय जब कभी कानपुर आये मिलना-जुलना होता रहा । ऐसे ही एक मुलाकात में अभय ने एक दिन मेरे घर आकर अपनी लघु फ़िल्म सरपत भी दिखाई!
अभय अपने ब्लॉग के अलावा दो ब्लॉग और चलाते रहे। एक ब्लॉग में वे अपनी मां की कवितायें छापते रहे और दूसरे में रूमी की विराटता को मूल फ़ारसी से हिन्दी में समेटने की एक कमसिन कोशिश करते रहे। रूमी के अनुवाद के शुरुआत की कहानी बयान करते हुये अभय ने लिखा था:
लगभग डेढ़ बरस पहले बेरोज़ग़ारी के दिनो में एक रोज़ कहीं रूमी की किसी ग़ज़ल का घटिया हिन्दी अनुवाद पढ़ के बड़ी कोफ़्त हुई.. लगा कि इस से बेहतर अनुवाद तो मैं कर सकता हूँ..तो लग गया..रूमी के मूल फ़ारसी के अंग्रेज़ी अनुवाद से मैंने हिन्दी में कुछ ग़ज़लें तरजुमा कीं.. तक़लीफ़ होती थी..क्योंकि अंग्रेज़ी और फ़ारसी के संसार मे बड़ी दूरियां हैं..तो सोचा कि सीधे फ़ारसी से क्यों ना अनुवाद करूं…तो भई मैंने फ़ारसी सीखने का संकल्प कर लिया..ने
और इसी संकल्प पर अमल करते हुये अभय ने फ़ारसी के सर्वाधिक चर्चित सूफ़ी कवि रूमी का जीवन, दर्शन एवं उनकी कालजयी रचना ’मसनवी’ काव्यात्मक सरल रूपान्तरण कलामें रूमी के नाम पेश किया जो कि हिन्द पाकेट बुक से प्रकाशित हुआ है।
बताते चलें कि हिन्द पाकेट बुक्स देश ने ही भारत में सबसे पहले पाकेट बुक्स की शुरुआत की। यह बात भी मुझे अभय से ही पता चली थी।
रूमी के काव्य रूपान्तरण पेश करने के पहले अभय ने रूमी की बुनियाद:सूफ़ी मत, रूमी के जीवन, रूमी के जीवन से जु्ड़े किस्से , रूमी की करामातें , रूमी कवि और काव्य के बारे में बताने के साथ-साथ अनुवाद की मु्श्किलें भी बयान की हैं। अनुवाद की मुश्किलें बयान करते हुये अभय लिखते हैं:
शब्दों में मेरी दिलचस्पी पहले से थी और इसलिये मुझे लगा कि अगर रूमी का अनुवाद सीधे फ़ारसी से हिन्दी में किया जाय तो वो न्यायसंगत भी होगा और अधिक आसान भी। मुश्किल सिर्फ़ यह थी कि मुझे फ़ारसी क्या उर्दू भी नहीं आती थी। लेकिन कुछ नया करने के आकर्षण में मैंने फ़ैसला किया मैं फ़ारसी सीखूंगा और फ़िर रूमी का अनुवाद करूंगा।
फ़ारसी सीखने के लिये बेले गये पापड़ों का हवाला अभय ने तफ़सील से दिया है लेकिन किताब के हिन्दी रूपान्तरण की गुणवत्ता देखकर भरोसा नहीं होता कि सच में अभय को फ़ारसी आती नहीं होगी। लगता है जैसे वे हिन्दी और फ़ारसी बचपन से ही सीखे हैं।
रूमी के बारे में जानकारी के देते हुये अभय ने उनका जीवन परिचय किताब में विस्तार से दिया है। रूमी का जन्म 1207 ई. में बल्ख में हुआ। बाकी जानकारी के लिये आप अभय की यह पोस्ट देखिये जिस पर अपनी टिप्पणी देखकर मुझे लग रहा है कि शायद अभय से मेरा पहला परिचय इसी पोस्ट पर हुआ था।
किताब पढ़ते हुये रूमी के जीवन दर्शन का अन्दाजा भी हुआ। रूमी की निगाह में भूख के बगैर खाना दरवेशों के लिये सबसे संगीन गुनाह है। रूमी के गुस्से का जिक्र करते का एक वाकये का जिक्र किताब में है:

अभय तिवारी
ऐसा बताया जाता है कि एक रोज रूमी के किसी मुरीद ने कहा कि लोग इस बात पर एतराज करते हैं कि मसनवी को कुरान कहा जा रहा है तो रूमी के बेटे सुल्तान वलेद ने टोंक दिया कि असल में मसनवी कुरान नहीं कुरान की टीका है। तो रूमी थोड़ी देर तो चुप रहे फ़िर कहने लगे,” कुरान क्यों नहीं है, कुत्ते? कुरान क्यों नहीं है, गधे? अबे रंडी के बिरादर, कुरान क्यों नहीं है मसनवी? ये जानो कि रसूलों और फ़कीरों के कलाम के बरतन में खुदाई राज के अलावा और कुछ नहीं होता। और अल्लाह की बात उनके पाक दिलों से होकर उनकी जुबान के जरिये बहती है।”
इस फ़ारसी-हिन्दी रूपान्तरण को पढ़ते हुये तमाम बातें पता चलीं जो मैं पहले जानता नहीं था। एक तो यह कि संस्कृत और फ़ारसी में आपस में बहुत गहरा नाता है। और यह भी कि हमारे तमाम के रोजमर्रा शब्द मूल रूप से फ़ारसी से हैं जैसे-खरीदना, रसीद, पेंच, हवा, गुजारना,आमदनी साल, साहब,चाकू, सुबह , बच्चा, जवान आदि। फ़ारसी से हिन्दी रूपान्तरण पढ़ते हुये लगता है जैसे किसी शायर का कलाम अपनी भाषा में ही पेश किया गया है। कहीं अटकाव/खटकाव नहीं लगता। जैसे ये देखिये:
हर कोई भूल जाता है अपने शहर को,
उतरता है जब भी खाबों की डगर को
और यह भी:
पा गये हो दोस्त तुम कुछ चार दिन के
भूल गये दोस्त, नाता पुराना साथ जिनके
इसी तरह और तमाम रूपान्तरण देखकर अजित वडनेरकर की कही बात-अभय के अनुवाद की सबसे अच्छी बात हमें जो लगी वह यह कि यह सरल ही नहीं, सरलतम है। दोहराने का मन करता है।
रूमी काव्य की खासियत शायद यह है कि उसमें आध्यात्म की ऊंचाई तो है लेकिन जीवन का निषेध नहीं है। जैसा अभय ने लिखा भी है:
रूमी में एक तरफ़ तो माशूक के हुस्न का नशा है, विशाल की आरजू व दर्द है; और दूसरी तरफ़ नैतिक और आध्यात्मिक ज्ञान की गहराईयों से निकाले मोती हैं। रुमी सिर्फ़ कवि ही नहीं हैं , वे सूफ़ी हैं, वे आशिक हैं, वे ज्ञानी हैं और सब से बढ़कर वे गुरु हैं।
रूमी काव्य का पूरा मजा लेने के लिये तो पूरी किताब पढ़नी पड़ेगी। कुछ अंश बीच-बीच से जो मुझे पहली नजर में ज्यादा जमें वे यहां पेश करता हूं। रूमी की नजर में देखिये इंसाफ़ क्या है:
इंसाफ़ क्या? किसी को सही जगह देना
जुल्म क्या है? उस को गलत जगह देना।
बनाया जो भी खुदा ने बेकार नहीं कुछ है
गुस्सा है, जज्बा है, मक्कारी है, नसीहत है।

इन में से कोई चीज अच्छी नहीं पूरी तरह,
इनमें से कोई चीज बुरी नहीं पूरी तरह।
रूमी कहते हैं- भूख के बगैर खाना दरवेशों के लिये सबसे संगीन गुनाह है। भूख शीर्षक कविता में देखिये वे क्या कहते हैं:

अभय तिवारी रा्जीव टंडन
भूख सब दवाओं की है सुल्तान ,खबरदार
उसे कलेजे से लगा के रख, मत दुत्कार।

बेस्वाद सब चीजें भूख लगने पर देती मजा,
मगर पकवान सारे बिन भूख हो जाते बेमजा।
कभी कोई बन्दा भूसे की रोटी था खा रहा
पूछा किसी ने तुझे इसमें कैसे मजा आ रहा।
बोला कि सबर से भूख दुगुनी हो जाती है
भूसे की रोटी मेरे लिये हलवा हो जाती है।
ये वाकया पढिये मजेदार है:
अपने आशिक को माशूक़ ने बुलाया सामने
ख़त निकाला और पढ़ने लगा उसकी शान में

तारीफ़ दर तारीफ़ की ख़त में थी शाएरी
बस गिड़गिड़ाना-रोना और मिन्नत-लाचारी
माशूक़ बोली अगर ये तू मेरे लिए लाया
विसाल के वक़त उमर कर रहा है ज़ाया
मैं हाज़िर हूं और तुम कर रहे ख़त बख़ानी
क्या यही है सच्चे आशिक़ों की निशानी?
जो लोग अपने पर चुटकुले सुनकर तड़क-भड़क जाते हैं उनको रूमी का लिखा यह पढ़ना चाहिये:
लतीफ़ा एक तालीम( शिक्षा) है, गौर से उसको सुनो
मत बनो उसके मोहरे,जाहिरा(प्रत्यक्ष) में मत बुनो।

संजीदा(गम्भीर) नहीं कुछ भी लतीफ़ेबाज के लिये
हर लतीफ़ा सीख है एक, आकिलों(ज्ञानियों) के लिये
इसी बात को टी.एस.इलियट ने इस रूप में कहा है- ” हास्य गम्भीर बात कहने का एक तरीका है। ”
अब देखिये रूमी ने क्या अंदाज से खूबसूरती के किस्से कहे हैं:
गुलाबी गाल तेरे जब देख पाते हैं,
झोंके खुशगवार पत्थरों में राह पाते हैं।

इक बार घूंघट जरा फ़िर से हटा दो,
दंग होने का दीवानों को मजा दो।
काव्य के अलावा सवाल-जबाब के रूप में गद्य में भी रूमी ने तमाम बातें कहीं हैं। निषेध के नकारात्मक असर को समझाते हुये रूमी कहते हैं:
अभय तिवारी
जितना तुम अपनी बीबी को बोलोगे, “परदे में रहो। ” उसके भीतर अपनी नुमाइश करने और लुभाने की उतनी ही खुजली होगी। और उनके परदे में रहने से (गैर )मर्द उनके लिये और उत्सुक हो जाता है। और तुम बीच में बीच में बैठकर दोनो तरफ़ की आग भड़काये जाते हो और समझते हो कि तुम बड़ा सुधार कर रहे हो! क्यों? यही तो भ्रष्टाचार की जड़ है। अगर उनके अन्दर बुरा करने का कुदरती गुन है तो तुम उन्हें रोको या न रोको वो अपने तबियत और बनावट के मुताबिक चलेंगे। तो आराम से रहो और परेशान न हो। अगर वे हम से उलटे हैं , तो वे अपने ही रास्ते चलेंगे; उनको रोकने से सच्चाई बदलती नहीं बस उनकी चाहत और बढ़ जाती है।
रूमी का यह उपदेश मजेदार है। यह उन लोगों को शायद कुछ तसल्ली दे सके जो दुनिया के लोगों से भलमनसाहत की सीख देते हुये हलकान होते रहते हैं लेकिन लोग जैसे हैं वैसे ही बने रहते हैं।
किताब के बारे में रवीश कुमार ने लिखा है मोटी किताब है लेकिन हिन्द पाकेट बुक्स ने इसे हल्का कर दिया है। आप आसानी से उठाकर पढ़ सकते हैं। १९५ रुपये की कीमत इस किताब के लिए बिल्कुल ज़्यादा नहीं है। इतनी शानदार रचनाओं का संकलन है कि जब भी और जहां से भी पढ़ेंगे मजा आने लगेगा।
किताब की छपाई बेहतरीन है। कवर पेज शानदार चमकता हुआ एकदम अभय के मेहनत के पसीने की तरह। प्रूफ़ की कमियां कहीं दिखी नहीं मुझे। अभय ने अपने बारे में जहां भी लिखा है वो बेहद विनम्रता से लेकिन वह उसमें कृत्तिम दीनभाव नहीं है। अपनी समझ के हिसाब से अपने काम का आकलन करते हुये और इससे बेहतर करने की खुल्लम-खुल्ला नटखट चुनौती उछालते हुये अभय लिखते हैं –
मैं ये जानता हूं कि रूमी का फ़ारसी से हिन्दी में अनुवाद करने के लिये मैं सबसे योग्य पात्र नहीं हूं। न तो मैं सूफ़ी साधक हूं , न धर्मशास्त्रों का विद्वान हूं , न फ़ारसी भाषा का माहिर हूं और न ही तुक्कड़ या बेतुक्कड़ कवि हूं। लेकिन ये भी सच है कि मैं हर इलाके की कामचलाऊ जानकारी रखता हूं। और मैंने यह पाया कि अभी तक जो भी अनुवाद हुये हैं , उनसे बेहतर अन्जाम दे सकता हूं , इसलिये ऐसी गुस्ताखी की। इस काम की मंजिल तक पहुंच जाने के बाद भी मेरा आकलन यही है, कि शायद ये अनुवाद बहुत बुरा नहीं है। दी हुई सीमाओं -समय, साधन, और प्रतिभा में मैं जितना कर सकता था, ये सर्वश्रेष्ट है। निश्चित ही मेरे इस अनुवाद को देखकर तिलमिलाने वाले लोग होंगे और वे मुझसे बेहतर अनुवाद करेंगे ऐसी मेरी आशा है।
अभय तिवारी
अगर किताब की भूमिका से गुज़रकर उस काव्यानुवाद का महत्व पता चलता है तो आभार ज्ञापन वाले हिस्से से अभय के मन का। अपने तमाम मित्रों सहयोगियों को धन्यवाद देने के साथ अभय ने अपनी पत्नी तनु को के प्रति आभार व्यक्त करते हुये लिखा- मैं अपनी पत्नी तनु का आभारी हूं जिसने मुझे हमेशा एक नैतिक बल दिया और मेरे ऊपर सांसारिकता की सीढियां चढने का कोई दबाब नहीं बनाया।इसके बाद वे अपनी पेशेवर असफ़लताओं से हिसाब बराबर करने से बाज नहीं आते- अपनी उन पेशेवर असफ़लताओं का भी आभारी हूं जिन्होंने मुझे यह काम करने का आयाम उपलब्ध कराया।
अभय की इस किताब को पढ़कर मुझे रूमी , सूफ़ी परंपरा और उसके शब्दों, दर्शन परिचय हुआ साथ ही यह ललक भी जगी कि कोई एक भाषा और सीखी जा सकती है। इस बेहतरीन काम के लिये पेशेवर रूप से अब तक असफ़ल रहे अभय की इस शानदार सफ़लता पर मैं उनको मन से बधाई देता हूं।
पुस्तक विवरण
पुस्तक का नाम: कलामे रूमी
अनुवाद व संपादन: अभय तिवारी
प्रकाशक : हिन्द पाकेट बुक्स प्राइवेट लिमिटेड
जे-40, जोरबाग लेन, नई दिल्ली-110003
पुस्तक की कीमत: 195 रुपये
ई-मेल: fullcircle@vsnl.com
बेवसाइट:http://artfullcircle.com
यह पुस्तक देश-भर के प्रमुख रेलवे स्टेशनों, रोडवेज स्टेशनों व अन्य बुक स्टालों पर उपलब्ध है। न मिलने पर प्रकाशक को लिखें।

संदर्भित कड़ियां: 1.आया आया कलामे रूमी आया
2.आइए, कलामे रूमी से रूबरू हो लें…
3.पुस्तक अंश : कलामे रूमी
4.‘कलामे-रूमी’ : एक ‘कमाल-किताब’
5.रूमी हिन्दी

                                         ...............प्रस्तुतकर्ता अनूप शुक्ल

7 टिप्‍पणियां:

  1. अभय तिवारी जी का तार्रुफ़ अच्छा लगा

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  3. अनूप जी,

    अपने शहर के लोगों से परिचय इस प्रबुद्ध जगत के लोगों में तो होना ही चाहिए और आपने हम सब को अभय तिवारी जी से ही परिचितनहीं कराया बल्कि उनकी कृतियों से भी परिचित करा कर एक बहुत उपकारी कार्य किया है. इसके लिए आप बधाई के पात्र हैं.

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  4. आदरणीय बड़े भाई आपने मेरा अनुरोध स्वीकार किया इसके लिए मै अपनी कृतज्ञता ज्ञापित करता हूँ
    कानपुर में ऐसे ना जाने कितने प्रबुद्ध लोग होगे उनको इस मंच पर लाने में KBA का उद्द्येश्य निहित है.
    एक बार पुनः आपका आभार

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  5. its feel very good to read about the abhay ji . i had seen almost all the links which you earlier wrote about Abhay ji .
    thanks for introducing abhay ji with us.

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  6. बहुत अच्छा लगा ..रूमी के अनुवाद के अंश और निर्मल जी का परिचय , इस काम में सफल होने का मतलब ही ये हुआ कि वो दुनिया में यही काम परफेक्शन के साथ करने आये हैं ..

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  7. बहुत अच्छा क्काम रह हैं।


    डॉ. दिव्या श्रीवास्तव ने विवाह की वर्षगाँठ के अवसर पर किया पौधारोपण
    डॉ. दिव्या श्रीवास्तव जी ने विवाह की वर्षगाँठ के अवसर पर तुलसी एवं गुलाब का रोपण किया है। उनका यह महत्त्वपूर्ण योगदान उनके प्रकृति के प्रति संवेदनशीलता, जागरूकता एवं समर्पण को दर्शाता है। वे एक सक्रिय ब्लॉग लेखिका, एक डॉक्टर, के साथ- साथ प्रकृति-संरक्षण के पुनीत कार्य के प्रति भी समर्पित हैं।
    “वृक्षारोपण : एक कदम प्रकृति की ओर” एवं पूरे ब्लॉग परिवार की ओर से दिव्या जी एवं समीर जीको स्वाभिमान, सुख, शान्ति, स्वास्थ्य एवं समृद्धि के पञ्चामृत से पूरित मधुर एवं प्रेममय वैवाहिक जीवन के लिये हार्दिक शुभकामनायें।

    आप भी इस पावन कार्य में अपना सहयोग दें।
    http://vriksharopan.blogspot.com/2011/02/blog-post.html

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